आत्मघाती कदम
आमतौर पर माना जाता रहा है कि एशिया और अफ्रीका के अविकसित और पिछड़े देशों में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हो रही हैं और यहां की लोकप्रिय सरकारें अपने लोकतांत्रिक दायित्वों का निर्वाह अच्छे से कर रही हैं।
आत्मघाती कदम |
राजतंत्र, तानाशाही और फौजी शासन की परंपराएं कमजोर पड़ने लगी हैं, लेकिन म्यांमार में सैनिक तख्ता पलट से इस धारणा को धक्का लगा है।
सेना ने देश की सर्वोच्च नेता और देश की स्टेट काउंसलर आंग सान सू की और राष्ट्रपति विन मिंट सहित कई वरिष्ठ नेताओं को बंदी बनाकर लोकतंत्र का गला घोंट दिया है। फिर सत्ता पर कब्जा कर लिया है। तख्ता पलट की कार्रवाई से अमेरिका सहित पूरी दुनिया स्तब्ध है। आंग सान सू की लोकतंत्र की प्रतीक थीं। उन्हें देश में लोकतंत्र की स्थापना के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा था। उनकी गिरफ्तारी के बाद कहना मुश्किल है कि म्यांमार में लोकतंत्र की वापसी कब होगी?
इसकी बड़ी वजह यह हो सकती है कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय, दोनों स्तरों पर आंग सान सू की की छवि अब पहले जैसी नहीं रही। रोहिंग्या मुसलमानों के प्रति उनके नजरिए को पश्चिमी देशों ने पसंद नहीं किया। म्यांमार में सैनिक तख्ता पलट क्यों हुआ, यह कहना अभी मुश्किल है, क्योंकि आंग सान सू की सेना के साथ कदम मिला कर सत्ता चला रही थीं। हालांकि कहा जा रहा है कि पिछले चुनाव में बड़े पैमाने पर धांधली हुई थी। दो हजार बीस के नवम्बर में जो चुनाव हुए थे, उनमें आंग सान सू की की पार्टी एनएलडी को 80 फीसद वोट मिले थे।
गौरतलब है कि रोहिंग्या मुसलमानों के कथित नरसंहार के बावजूद आंग सान सू की सरकार को इतना भारी जन समर्थन मिला था कि म्यांमार के राष्ट्रपति मिंट स्वे ने कहा है कि चुनाव आयोग आम चुनाव में सूची की गड़बड़ियां ठीक करने में असफल रहा। लेकिन वास्तविकता है कि सेना और विपक्षी दल के पास आरोपों को साबित करने के लिए पुख्ता सबूत नहीं हैं। विश्व के अनेक देशों के नेताओं ने म्यांमार में सैनिक तख्ता पलट की निंदा की है। भारत ने सधी हुई और संतुलित प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि म्यांमार के घटनाक्रम पर हम नजर रखे हुए है। बेशक, सेना का कदम आत्मघाती साबित हो सकता है, क्योंकि वहां के नागरिक अब सैनिक शासन को बर्दाश्त नहीं कर सकते।
Tweet |