जोशीमठ में भूधसाव के पैरेनियल स्ट्रीम और कच्ची चट्टानें भी जिम्मेदार: भूगर्भ शास्त्री

Last Updated 12 Jan 2023 07:20:05 AM IST

उत्तराखंड के जोशीमठ में भूधसाव के कारण सैकड़ो भवनों में दरारें आ गई हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अनियंत्रित तरीके से हुआ निर्माण तो इसके लिए जिम्मेदार है ही, इसके साथ ही आपदा प्रबंधन प्राधिकरण एवं विशेषज्ञों ने इस त्रासदी के लिए कुछ और मुख्य कारणों को भी चिन्हित किया है।


जोशीमठ में भूधसाव के पैरेनियल स्ट्रीम और कच्ची चट्टानें भी जिम्मेदार: भूगर्भ शास्त्री

आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक जोशीमठ में भूधसाव के लिए पैरेनियल स्ट्रीम (लगातार पानी का बहाव बने रहना) भी काफी हद तक जिम्मेदार है। दरअसल जोशीमठ चारों ओर से नदियों से घिरे पहाड़ पर बसा है। जोशीमठ चारों ओर ढकानाला, कर्मनासा, अलकनंदा और धौलीगंगा नदियां हैं।

आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के मुताबिक नदियों से घिरे होने के कारण यहां सतह के नीचे व ऊपर पानी का बहाव रहता है। इससे सतह पर नमी है। वहीं जमीन के भीतर की चट्टानें कमजोर हैं जो पैरेनियल स्ट्रीम से और भी कमजोर हो चुकी हैं।

गौरतलब है कि जोशीमठ में हो रहे भूधसाव के कारण कुल 723 भवनों में दरारें ²ष्टिगत हुई हैं। सुरक्षा के ²ष्टिगत कुल 131 परिवारों को अस्थाई रूप से विस्थापित किया गया है। जोशीमठ नगर क्षेत्रान्तर्गत अस्थाई रूप से 1425 क्षमता के 344 राहत शिविर के साथ ही जोशीमठ क्षेत्र से बाहर पीपलकोटी में 2205 क्षमता के 491 कक्षों को चिन्हित किया गया है।

प्रसिद्ध भूगर्भ शास्त्री एके धामा के मुताबिक जोशीमठ से ऊपर बर्फबारी और तेज बारिश होती है। मौसम सुधारने पर यह बर्फ पिघल कर जोशीमठ के चारों ओर बहने वाली नदियों का जलस्तर बढ़ा देती है। नदियों में तेज बहाव होने के कारण भूमि का कटाव होता है जो भूस्खलन का बड़ा कारण है।

जूलॉजिस्ट बताते हैं कि जमीन के नीचे की चट्टानों को तीन भागों में बांटा जाता है जिसमें सबसे ऊपरी सतह को मेटामॉर्फिक चट्टान कहते हैं। मेटामॉर्फिक चट्टानों पर जब अधिक दबाव और तापमान पड़ता है, तो नीस चट्टानें बनती हैं। जोशीमठ के अधिकतर क्षेत्रों में ऐसी ही नीस चट्टानें हैं। नीस चट्टान अपक्षयी होती हैं और इन चट्टानों में टूट-फूट होती है।



जूलॉजिस्ट और डिपार्टमेंट ऑफ फॉरेस्ट्री के वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक जोशीमठ टूटे हुए पहाड़ों के जिस मलबे पर बसा है, वह तेजी धंस रहा है। जूलॉजिस्ट कहते है कि अब इसे रोकना संभव नहीं दिख रहा है। उत्तराखंड के डिपार्टमेंट ऑफ फॉरेस्ट्री का मानना है कि स्थिति काफी गंभीर हो चुकी है, यही कारण है कि अब यहां लोगों को स्थानांतरित करने के काम को पहली प्राथमिकता दी जा रही है। कई रिपोटरे का भी कहना है कि जोशीमठ की स्थिति काफी विकट हो चुकी है और इन भवनों का ध्वस्त होना लगभग तय है। इस बीच जोशीमठ में चल रहे सभी निर्माण प्रोजेक्ट रोक दिए गए हैं।

प्रसिद्ध इतिहासकार शिवप्रसाद डबराल ने अपनी किताब में बताया है कि सैकड़ो वर्ष पूर्व यहां लैंडस्लाइड की बड़ी घटना हुई थी। इतिहासकारों के मुताबिक तब जोशीमठ को कार्तिकेयपुर शिफ्ट किया गया था। वहीं 80 साल से भी पहले वर्ष 1939 में आई पुस्तक 'सेंट्रल हिमालय जूलॉजिकल ऑब्जरवेशन ऑफ द स्पेस एक्सपीडिशन' में भी जोशीमठ लैंडस्लाइड के ढेर पर बसने की बात लिखी गई थी। स्विस एक्सपर्ट इस पुस्तक के लेखक थे।

आईएएनएस
नई दिल्ली


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