बेहमई कांड में 43 साल बाद आया फैसला, जानिए क्या है मामला
बेहमई नरसंहार कांड के 43 बर्ष बाद कोर्ट का फैसला आया। 14 फरवरी 1981 को हुए बेहमई कांड की बरसी पर बुधवार को आये फैसले में कानपुर देहात की एंटी डकैती कोर्ट ने अस्सी वर्षीय आरोपी श्याम बाबू को उम्रकैद की सजा सुनायी जबकि एक आरोपी विश्वनाथ पचपन वर्षीय को बरी कर दिया।
![]() दस्यु सुंदरी फूलनदेवी |
दूसरी ओर इस कांड की बरसी पर बेहमई गांव किनारे स्थित स्मारक स्थल पर श्रद्धांजलि सभा आयोजित कर ग्रामीणों ने हवन के बाद दो मिनट का मौन धारण कर दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए प्रार्थना की।
14 फरवरी 1981 में दस्यु सुंदरी फूलनदेवी ने दोपहर करीब ढाई बजे अपने गैंग के साथ धावा बोला था और बेहमई गांव के बाहर एक कुएं के पास 25 लोगों को एक लाइन में खड़ाकर गोलियों से छलनी कर डाला था। इनमें 20 की मौत और पांच लोग घायल हुए थे।
नरसंहार के दौरान गैंग में उसके साथ दस्यु मुस्तकीम बाबा, राम प्रकाश और लल्लू गैंग के 36 लोग थे।
इस कांड में गांव के ठाकुर राजाराम सिंह ने इन सभी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था। ग्रामीणों की सुरक्षा के लिए कई वर्षों तक पीएसी ने गांव में कैंप किया था और बाद में यहां एक पुलिस चौकी बनायी गयी जो आज भी संचालित है।
बेहमई कांड में 43 साल बाद बुधवार को फैसला आ गया, इसमें कोर्ट ने जिंदा बचे एक आरोपी श्याम बाबू को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है और विश्वनाथ को साक्ष्यों के अभाव में दोषमुक्त कर दिया जबकि फूलनदेवी समेत 31 आरोपी मर चुके हैं। एक आरोपी मान सिंह अभी तक फरार घोषित है। पुलिस उसे नहीं ढूंढ पाई है।
यमुना बीहड़ पट्टी में बसे गांव बेहमई के लोगों पर फूलन को शक था कि वह ठाकुर बिरादरी के लालाराम व श्रीराम गिरोह को पनाह देते हैं। इस गिरोह से फूलन का गैंगवार चल रहा था।
फूलन ने गांव के लोगों को कई बार चेतावनी दी थी कि अगर इन्हें पनाह दी गई तो अच्छा नहीं होगा।
इस घटना से यूपी सरकार हिल गई थी और अंतोत्गत्वा तत्कालीन मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह को इस्तीफा तक देना पड़ा था।
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