संगम की रेती पर कल्पवासियों का आगमन शुरू

Last Updated 09 Jan 2020 03:54:17 PM IST

धार्मिक और आध्यात्मिक नगरी प्रयागराज में माघ मेला में कल्पवास करने आने वाले श्रद्धालुओं के वाहनों का रेला पहुंचने लगा है।


पतित पावनी गंगा, श्यामल यमुना और अन्त: सलिला स्वरूप में प्रवाहित सरस्वती के विस्तीर्ण रेती पर 10 जनवरी से शुरू हो रहे माघ मेला के पहले स्नान ‘‘पौष पूर्णिमा’’ से एक माह का कल्पवास शुरू करेंगे। इसके लिए कुछ कल्पवासी पहले ही यहां पहुंच कर अपने शिविर तैयार कर चुके हैं और जो पहुंच रहे हैं वह अपने शिविरों को सजाने में व्यस्त है।

प्रयागराज में संगम तट एक बार फिर धर्म और आध्यात्म के समागम के लिए तैयार हो गया है। एक मास तक चलने वाले कल्पवास के दौराना त्रिवेणी की तट पर आध्यात्म की बयार बहती नजर आऐगी। चारों तरफ शिविरों और बड़े पंड़ालो से भजन-कीर्तन, सत्संग, कथा आदि की स्वर लहरियां कानों में गुंजायमान होती रहेंगी। साधु-संतों की गूगल वाली धूनि से उठती आध्यात्मिक धुंआ पूरे मेला क्षेत्र को पवित्र वातावरण प्रदान करेगी।

कल्पवासी एक माह तका त्रिवेणी के तट पर ध्यान, स्नान और दान का पुण्य प्राप्त करेंगे। खराब मौसम में भी मांडा, कोरांव, मेजा, कौशाम्बी, हंडिया, मऊआइमा, प्रतापगढ़, जौनपुर समेत आस-पास के जिलो समेत दूरदराज मध्य प्रदेश आदि से बड़ी संख्या में कल्पवासी गृहस्थी और शयन के सामान के साथ साधु-संतो का काफिला भी पहुंचने लगे हैं।

काली मार्ग से कल्पवासी झूंसी अपने तीर्थ पुरोहित के यहां पहुंचने लगे हैं। कल्पवासी और उन्हें पहुंचाने आने वाले श्रद्धालु गाते-बजाते आस्था से सराबोर नजर आ रहे हैं। वे तीर्थ पुरोहित से मुलाकात कर निर्धारित भूमि पर टेंट का आध्यात्मिक शिविर लगाने में व्यस्त हो गये। कल्पवासियों के लिए शिविर के अन्दर ‘‘पुआल’’ बिछाया गया है।

महाबीर मार्ग पर स्थित गंगा पर बने पंटून पुल नंबर एक के आस-पास खली भूमि  का बड़ा हिस्सा पहले से ही दलदल था। इसे रेत और मिट्टी और बालू डालकर डालकर  समतल बनाकर संस्थाओं को बसाने योज्ञ प्रयास किया गया था लेकिन बारिश ने  फिर कीचड और दलदली कर दिया। बारिश एवं कीचड़ और दलदल के कारण आस्था प्रत्येक परेशानी पर भारी पड़ रही है। संस्थायें और कल्पवासी बावजूद परेशानियों के शिविर को तैयार करने में मशगूल हैं।

गंगा के गीत गुनगुनाती बुजुर्ग महिलाओं को देख कल्पवास में आस्था की महत्ता को महसूस किया जा सकता है।  कल्पवासी और उनके परिजन ऊबड़-खाबड़ जमीन को समतल करने में व्यस्त हो गये हैं। बीच-बीच में हल्की बारिश और हाड़तोड़ ठंड उनकी आस्था को ड़िगा नहीं पा रही है।

प्रयागवाल महासभा के महामंत्री राजेन्द्र पालीवाल ने बताया कि हर साल माघ मेले में आसपास के जिलों के अलावा दूसरे प्रदेशों से भी कल्पवासी यहां एक महीने तक रूक कर संयम, अहिंसा, श्रद्धा एवं कायाशोधन के लिए एक महीने का ‘‘कल्पवास’’ करते हैं।

उन्होने बताया कि माघ मेला में कल्पवास आध्यत्मिक चेतना और मानवता का प्रवाह है। तीर्थयीगण को पवित्रता, मांगलिकता और अमरत्व के भाव का स्नान करने का एक अवसर प्राप्त होता है।त्रिवेणी का स्नान अपने आप में एक पुण्यदायी है लेकिन माघ मास में स्नान करने का अलग ही महत्व है।
 
पालीवाल ने बताया कि गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीरामचरित मानस के बालकाण्ड में ‘‘माघ मेला’’ का वर्णन करते हुए लिखा है ‘‘माघ मकरगति रवि जब होई, तीरथपतिहि आव सब कोई,देव दनुज किन्नर नर श्रेणी,सादर मज्जहि सकल त्रिवेणी।’’

उन्होंने बताया कि कल्पवास में कल्पवासी अपनी भौतिक सुख सुविधा का परित्याग कर गंगा की रेती पर बसे तंबुओं और टेंट की आध्यातमिक नगरी में प्रवास करता है। उन्होने बताया कित्रिवेणी कल्पवास में आने की तैयारी दिनचर्या सचमुच मन में उदारता भरता है और  सेवा, सहायता और अपनत्व का सछ्वाव करता है। कल्पवास पविा विचारों का संचार तथा अहं को तोड़ता है।

 

 

वार्ता
प्रयागराज


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