दिल्ली विधानसभा में डीटीसी की कैग रिपोर्ट पेश, कार्यप्रणाली में गंभीर खामियां उजागर

Last Updated 24 Mar 2025 05:08:36 PM IST

दिल्ली विधानसभा में सोमवार को शुरू हुए बजट सत्र के दौरान दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) की कैग रिपोर्ट सदन के पटल पर रखी गई। यह रिपोर्ट शराब और मोहल्ला क्लीनिक के बाद पेश की जाने वाली तीसरी कैग रिपोर्ट है। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने इस रिपोर्ट को पेश किया। रिपोर्ट में डीटीसी के कामकाज पर कई गंभीर खामियां उजागर की गई हैं, जो निगम की बिगड़ती स्थिति को दर्शाती हैं।


डीटीसी की कैग रिपोर्ट

रिपोर्ट के अनुसार, डीटीसी पिछले कई वर्षों से लगातार नुकसान झेल रहा है, इसके बावजूद कोई ठोस व्यापार योजना या दृष्टि दस्तावेज तैयार नहीं किया गया। सरकार के साथ भी कोई समझौता ज्ञापन (एमओयू) नहीं हुआ, जिससे वित्तीय और परिचालन लक्ष्यों को तय किया जा सके। इसके अलावा, अन्य राज्य परिवहन निगमों के साथ प्रदर्शन की तुलना भी नहीं की गई। 2015-16 में निगम के पास 4,344 बसें थीं, जो 2022-23 तक घटकर 3,937 रह गईं। जबकि सरकार आर्थिक सहायता भी उपलब्ध थी, डीटीसी केवल 300 इलेक्ट्रिक बसें ही खरीद सकी।

रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि बसों की आपूर्ति में देरी के कारण निगम ने 29.86 करोड़ रुपये का जुर्माना भी वसूल नहीं किया। निगम के बेड़े में पुरानी बसों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। 2015-16 में जहां केवल 0.13 फीसदी बसें ओवरएज (अधिवर्षीय) थीं, वहीं यह आंकड़ा 2023 तक बढ़कर 44.96 फीसदी हो गया। नए बसों की खरीदारी न होने के कारण परिचालन क्षमता प्रभावित हो रही है। इसके कारण बसों की उपलब्धता और उनकी दैनिक उत्पादकता राष्ट्रीय औसत से कम रही। निगम की बसें प्रतिदिन औसतन 180 से 201 किलोमीटर ही चल सकीं, जो निर्धारित लक्ष्य (189-200 किमी) से कम था।

रिपोर्ट के अनुसार, बसों के बार-बार खराब होने और रूट प्लानिंग में खामियों के कारण 2015-22 के बीच 668.60 करोड़ रुपये का संभावित राजस्व नुकसान हुआ। डीटीसी ने किराया निर्धारण की स्वतंत्रता न होने के कारण अपना परिचालन खर्च भी नहीं निकाला। दिल्ली सरकार 2009 के बाद से बस किराये में कोई वृद्धि नहीं कर पाई, जिससे निगम की आय प्रभावित हुई। इसके अलावा, विज्ञापन अनुबंधों में देरी और डिपो की खाली जमीन का व्यावसायिक इस्तेमाल न करने से भी निगम को संभावित राजस्व का नुकसान हुआ।

तकनीकी परियोजनाओं में भी डीटीसी की कई परियोजनाएं निष्क्रिय पड़ी हैं। स्वचालित किराया संग्रह प्रणाली (एफसीएस) 2017 में लागू की गई थी, लेकिन 2020 से यह निष्क्रिय है। 2021 में 52.45 करोड़ रुपये खर्च कर बसों में लगाए गए सीसीटीवी कैमरे भी अब तक पूरी तरह से चालू नहीं हो सके। रिपोर्ट में प्रबंधन और आंतरिक नियंत्रण की भी कमी देखी गई है। स्टाफ की सही संख्या तय करने की कोई नीति नहीं बनाई गई, जिसके कारण चालक, तकनीशियन और अन्य महत्वपूर्ण पदों पर भारी कमी रही, जबकि कंडक्टरों की संख्या आवश्यकता से अधिक पाई गई।

आईएएनएस
नई दिल्ली


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment