विधायक दुर्गेश पाठक के खिलाफ चुनाव याचिका खारिज

Last Updated 08 Feb 2025 07:05:14 AM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि यदि कोई उम्मीदवार चुनाव खर्च का उचित हिसाब-किताब नहीं रखता है या अपने किए गए खर्च का सही-सही खुलासा नहीं करता है, तो यह जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 123 के तहत भ्रष्ट आचरण नहीं माना जाएगा।




विधायक दुर्गेश पाठक के खिलाफ चुनाव याचिका खारिज

न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा ने उक्त टिप्पणी करते हुए राजेंद्र नगर विधानसभा क्षेत्र से दिल्ली विधानसभा उपचुनाव, 2022 में आप उम्मीदवार दुर्गेश पाठक की जीत को चुनौती देने वाली रमेश कुमार खत्री की चुनाव याचिका को खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति पुष्करणा ने पाठक की चुनाव में जीत को चुनौती देने वाले मोहिंदर सिंह की एक अन्य चुनाव याचिका को भी खारिज कर दिया।

खत्री ने कहा था कि पाठक को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8(ए) के अनुसार छह साल के लिए विधानसभा चुनाव लड़ने से रोक दिया जाए, क्योंकि पाठक ने दैनिक व्यय रजिस्टर में मनगढ़ंत खर्च दिखाया था। इसके अलावा पाठक ने अपने चुनाव व्यय रजिस्टर में जलपान, होर्डिंग, बैनर, पंपलेट, झाड़ू आदि पर किए गए खर्च का सही हिसाब दर्ज नहीं किया था।

याचिका खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि यदि खत्री के लगाए गए आरोप प्रथम दृष्टया सही माने भी जाएं, तो भी वे जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 100(1)(बी) के तहत पाठक के चुनाव को रद्द करने का आधार नहीं बनेंगे। यदि याचिका में उचित लेखा-जोखा न रखने के आरोप सिद्ध भी हो जाएं तो भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार यह भ्रष्ट आचरण नहीं माना जाएगा।

इस तरह से याचिका में कार्रवाई का कोई कारण नहीं बताया गया है। उसने यह भी कहा कि खत्री की चुनाव याचिका में ऐसा कोई बात नहीं है जिससे यह पता चले कि पाठक ने चुनाव के लिए निर्धारित सीमा से अधिक राशि खर्च की है या सही लेखा-जोखा न देने के कारण चुनाव का परिणाम भौतिक रूप से प्रभावित हुआ है।

न्यायमूर्ति पुष्करणा ने पाठक की चुनाव में जीत को चुनौती देने वाले मोहिंदर सिंह की एक अन्य चुनाव याचिका को भी खारिज कर दिया। सिंह ने कहा था कि पाठक ने अपने पति या पत्नी का नाम छिपाकर एक दोषपूर्ण नामांकन पत्र दाखिल किया था। उनके शिकायत के बावजूद रिटर्निग अधिकारी ने कोई कार्रवाई नहीं की।

साथ ही पाठक ने सौ रुपए देकर बच्चों से चुनाव प्रचार कराया था। याचिका को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि नामांकन पत्र में पति/पत्नी के नाम के सामने वाले कॉलम में पाठक ने लागू नहीं होता लिखा था। रिकॉर्ड में ऐसा कोई तथ्य नहीं है जिससे यह पता चले कि पाठक ने कोई जानकारी छिपाई है।

उसने यह भी कहा कि उस तिथि, समय या स्थान के बारे में कोई विवरण नहीं है, जहां बच्चों को कथित तौर पर पाठक के पर्चे बांटते हुए देखा गया था। इस तरह से याचिका कार्रवाई का कारण बताने में विफल है।

समयलाइव डेस्क
नई दिल्ली


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