नागरिकों के जीवन की रक्षा करने में राज्य व हम सब विफल हुए : हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि नागरिकों के जीवन के अधिकार की रक्षा करने में राज्य व ‘हम सब विफल रहे हैं।’
दिल्ली हाईकोर्ट |
अदालत ने यह टिप्पणी तब की जब उसे कोविड-19 से एक व्यक्ति की मौत की सूचना दी गई जिसका परिवार पिछले तीन दिन से आईसीयू बिस्तर के लिए याचना कर रहा था।
मरीज के रिश्तेदार ने अदालत से आग्रह किया कि वह अधिकारियों से आईसीयू बिस्तर का प्रबंध करने को कहे क्योंकि रोगी के महत्वपूर्ण अंगों ने काम करना कम कर दिया है तथा वह एक अस्पताल के आपातकालीन वार्ड में है।
उसने कुछ मिनट के भीतर अदालत को सूचित किया कि उसके बीमार रिश्तेदार की मौत हो गई है। याचिकाकर्ता ने कहा, ‘मैं हार गया हूं, मेरे रिश्तेदार की मौत हो गई है, इसलिए और प्रयासों की आवश्यकता नहीं है।’
न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की पीठ ने इस पर कहा, ‘नहीं, राज्य विफल हो गया है। हम सब विफल हो गए हैं। हमें सूचित किया गया है कि मरीज की मौत हो गई है।
हम स्थिति में अपनी पूर्ण असमर्थता दर्ज कर सकते हैं। हम केवल यह कह सकते हैं कि राज्य संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त नागरिकों के जीवन के अधिकार की रक्षा करने में विफल हो गया है।’
पीठ ने कहा कि किसी ने भी नहीं सोचा था कि इस तरह से हमला होगा। समस्या पैसे की नहीं है, बल्कि बुनियादी ढांचे की है। डॉक्टर भी रो रहे हैं। उसने यह बात बार काउंसिल के अध्यक्ष रमेश गुप्ता की उस अर्जी पर सुनवाई करते हुए कही, जिसमें उन्होंने कहा था कि रोजाना 20 वकीलों के परिजन मर रहे हैं। उनके लिए कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। मैंने एक रेस्ट हाउस 100 बेड का करवाया बुक भी करवाया है तो उसमें आईसीयू बेड की कमी है। इस तरह से इस रेस्ट हाउस को किसी बड़े अस्पताल से अटैच किया जाए।
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