रमन सिंह के राजनांदगांव सीट से चुनाव लड़ने की अटकलें
महाराष्ट्र की सीमा से सटी और कभी कांग्रेस का गढ़ रही छत्तीसगढ़ की राजनांदगांव संसदीय सीट पर पिछले दो चुनावों से लगातार बना कब्जा बरकरार रखने के लिए भारतीय जनता पार्टी के एक बार फिर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के मैदान में उतारने की अटकलें तेज हैं।
![]() डॉ रमन सिंह (फाइल फोटो) |
छत्तीसगढ़ की संस्कारधानी मानी जाने वाली राजनांदगांव संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व कांग्रेस महासचिव और अविभाजित मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा और छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह कर चुके हैं।
इस सीट पर 1957 से अब तक हुये चुनाव में नौ बार कांग्रेस, छह बार भाजपा और एक बार जनता पार्टी का उम्मीदवार निर्वाचित हुआ है।
डॉ सिंह इस संसदीय सीट के तहत आने वाली राजनांदगांव विधानसभा सीट से इस समय विधायक हैं जबकि उनके बेटे अभिषेक सिंह राजनांदगांव सीट से सांसद है। राज्य में बदले राजनीतिक हालात में इस सीट से इस बार डॉ सिंह के चुनाव लड़ने की अटकलें तेज हैं। डॉ सिंह इस सीट का 1999 में प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। उस समय उन्होंने कांग्रेस के कद्दावर नेता मोतीलाल वोरा को लगभग 26 हजार मतों से हराया था। डॉ सिंह बाजपेयी मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री भी रह चुके हैं।
इस सीट से 1977 में जनता पार्टी की लहर में मदन तिवारी निर्वाचित हुए थे उन्होंने कांग्रेस के रामसहाय पांडे को लगभग 87 हजार मतों से शिकस्त दी थी। 1980 में कांग्रेस के शिवेन्द्र बहादुर सिंह ने जनता पार्टी के जे.एल. फ्रांसिस को 58 हजार मतो से शिकस्त देकर जीत दर्ज की। कांग्रेस के टिकट पर शिवेन्द्र बहादुर सिंह 1984 में फिर निर्दलीय किशोरीलाल शुक्ला को एक लाख से अधिक मतों से शिकस्त देकर चुने गए।
भाजपा का इस सीट पर पहली बार कब्जा 1989 में हुआ। पार्टी के धर्मपाल गुप्ता ने कांग्रेस के शिवेन्द्र बहादुर सिंह को 70 हजार से अधिक मतों से शिकस्त दी। 1991 में कांग्रेस के शिवेन्द्र बहादुर सिंह ने भाजपा के धर्मपाल गुप्ता को 47 हजार से अधिक मतों से हराकर फिर से इस सीट पर कब्जा किया। 1996 में हुए चुनाव में भाजपा के अशोक शर्मा ने कांग्रेस के शिवेन्द्र बहादुर सिंह को लगभग 59 हजार मतों से हराया। 1998 में हुए चुनाव में कांग्रेस के मोतीलाल वोरा ने भाजपा के अशोक शर्मा को लगभग 52 हजार मतों से शिकस्त देकर लोकसभा पहुंचे।
नवम्बर 2000 में छत्तीसगढ़ के अस्तित्व में आने के बाद पहली बार 2004 में हुए आम चुनाव में भाजपा के प्रदीप गांधी ने कांग्रेस के देवब्रत सिंह को लगभग 14 हजार मतों से शिकस्त दी। संसद में सवाल पूछने के बदले कथित रूप से पैसे लेने के मामले में प्रदीप गांधी की लोकसभा सदस्यता समाप्त कर दी गई। इसके बाद 2007 में हुए उप चुनाव में कांग्रेस के देवब्रत सिंह ने भाजपा के लीलाराम भोजवानी को लगभग 51 हजार मतों से शिकस्त दी।
2009 में हुए आम चुनावों में भाजपा के मधुसूदन यादव ने कांग्रेस के देवब्रत सिंह को एक लाख 19 हजार से अधिक मतो से शिकस्त दी। भाजपा ने 2014 के आम चुनाव में प्रत्याशी बदलकर तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के बेटे अभिषेक सिंह को मैदान में उतारा। उन्होंने कांग्रेस के कमलेश्वर वर्मा को दो लाख 35 हजार से अधिक मतों से शिकस्त दी।
अविभाजित मध्य प्रदेश में दुर्ग जिले को विभाजित कर 1973 में आस्तित्व में आए गौरवशाली अतीत, सुंदर प्रकृति और संसाधनों की बहुतायत वाला राजनांदगांव जिला महाराष्ट्र के गोदिया और मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले से लगा हुआ है। जिले के कई क्षेत्र नक्सल प्रभावित हैं। जिले के डोगरगढ़ में मां बम्लेश्वरी देवी का प्रसिद्ध मन्दिर है जहां आसपास के राज्यों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु सालभर आते रहते हैं। यह जिला शैक्षणिक और व्यावसायिक रूप से काफी सम्पन्न माना जाता है।
मुख्यमंत्री का 15 साल तक चुनाव क्षेत्र रह चुके इस क्षेत्र का काफी विकास हुआ है। राज्य का पहला डेन्टल कॉलेज यहीं खुला। इस समय यहां मेडिकल कॉलेज, आयुर्वेदिक कॉलेज और निजी क्षेत्र के आसपास के राज्यों में भी ख्यातिलब्ध युगान्तर और अन्य शैक्षणिक संस्थान हैं।
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