Buxar Panchkoshi Mela : बक्सर में पंचकोशी परिक्रमा मेला के अंतिम दिन सुरक्षा के कड़े इंतजाम, लिट्टी चोखा खाने का विधान

Last Updated 24 Nov 2024 12:33:40 PM IST

Buxar Panchkoshi Mela :बिहार के बक्सर जिले की सुप्रसिद्ध पंचकोसी परिक्रमा का रविवार को समापन होगा। जिसके मद्देनजर प्रशासन ने सुरक्षा व्यवस्था के तमाम इंतजाम किए हैं। पांच दिनों तक चलने वाले पंचकोसी परिक्रमा मेला में श्रद्धालु भारी संख्या में उमड़ने लगे हैं।


एक श्रद्धालु ने कहा कि बिहार में बक्सर विश्वामित्र की नगरी है। बहुत दूर दूर से लोग आते हैं और यहां लिट्टी चोखा बनाकर खाते हैं। यह पुराने समय से चली आ रही परंपरा है, उसी का निर्वहन हम लोग करते आ रहे हैं। ऐसा आयोजन विश्व में कहीं नहीं होता है। यहां हर जगह केवल लिट्टी चोखा दिखाई देगा। जो नहीं आ पाते वो घर में लिट्टी चोखा बनाकर खाते हैं।

वहीं एक दूसरे श्रद्धालु का कहना है कि पंचकोशी भगवान राजा रामचंद्र के साथ जुड़ा हुआ है। उन्होंने पंचकोसी में ऋषि महर्षियों से मुलाकात की थी और प्रसाद ग्रहण किया था। ऐसे में तीर्थ यात्रा पंचकोशी में भ्रमण करके भगवान राम को याद करते हैं। लोग दूर-दूर से यहां लिट्टी चोखा बनाने और खाने के लिए आते हैं। एक परंपरा का पालन किया गया है और आज भी हम उस परंपरा को जारी रख रहे हैं।

पंचकोसी परिक्रमा की मान्यता भगवान राम से जुड़ी हुई है। त्रेतायुग में भगवान राम, लक्ष्मण और महर्षि विश्वामित्र के साथ शिक्षा ग्रहण करने के लिए बक्सर आए थे। उस वक्त बक्सर में ताड़का, सुबाहु और मारीच समेत कई राक्षसों का वध भगवान राम ने किया था। हत्या के दोष से मुक्ति पाने के लिए भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण और महर्षि विश्वामित्र के साथ यात्रा कर अलग-अलग पांच क्षेत्र में पांच ऋषियों के आश्रम पहुंचे और अलग-अलग व्यंजनों का प्रसाद ग्रहण किया था। साथ ही उनका आशीर्वाद प्राप्त किया था।

पंच यात्रा के दौरान भगवान राम का पहला पड़ाव गौतम ऋषि के आश्रम अहिरौली में हुआ। जहां पत्थर रूपी अहिल्या को भगवान राम ने अपने चरणों से स्पर्श कर उद्धार किया था। जहां उत्तरायणी गंगा में स्नान कर भगवान राम ने पुआ पकवान का व्यंजन बनाकर भोजन ग्रहण किए था। इसके बाद दूसरे यात्रा के दौरान प्रभु राम नारद मुनि के आश्रम नदांव पहुंचे थे, जहां सरोवर में स्नान करने के बाद सत्तू और मूली का भोग उन्होंने लगाया था। इसके बाद तीसरे दिन में भार्गव ऋषि आश्रम भभूअर पहुंचे थे। इस दौरान चूड़ा दही व्यंजन का भोजन किया। वहीं चौथे पड़ाव में उद्दालक ऋषि आश्रम पहुंचे, जो नुआंव में स्थित है। वहां पर खिचड़ी बनाकर प्रसाद ग्रहण किया था।

पांचवें दिन अंतिम पड़ाव चरित्रवन में पहुंचकर गंगा में स्नान कर लिट्टी चोखा का भोग लगाकर उन्होंने प्रसाद स्वरूप इसे ग्रहण किया। उस वक्त से यह परंपरा चली आ रही है। जहां लोग भी पांचों दिन अलग-अलग व्यंजन के साथ-साथ इस परंपरा का निर्वहन आज तक करते चले आ रहे हैं। पंचकोशी यात्रा जीव के पांचों तत्व को पवित्र करती है।

बक्सर शहर के पूरे इलाकों के साथ साथ किला मैदान में चारों तरफ धुआं धुआं सा नजर दिखाई देता है। हर लिट्टी चोखा का प्रसाद बन रहा होता है। नाथ बाबा घाट से लेकर अन्य घाटों पर भी यही तस्वीर देखने को मिलती है।

आईएएनएस
बक्सर


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