कहीं ऐसा ना हो कि जीतन राम मांझी की पार्टी ही खत्म हो जाए ?
जीतन राम मांझी के महागठबंधन से अलग होने के बाद बिहार की राजनीति गरमाई हुई है। अपना समर्थन वापस लेने के बाद जीतन राम मांझी इस समय दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं।
Nitish and jeetan ram manjhi |
उन्हें उम्मीद है कि कोई बड़ी पार्टी उन्हें बुलाकर उनके मन के मुताबिक़ उन्हें और उनके बेटे को सम्मान देगी, कोई न कोई बड़ा पद देगी। यानी दिल्ली में बैठकर जीतन राम मांझी ख्याली पुलाव पका रहे हैं। जबकि उन्ही की पार्टी के लगभग आधे दर्जन नेता जदयू में शामिल होकर उनके ख्याली पुलाव का मजा किरकिरा करने की पूरी तैयारी कर चुके हैं। आज से लगभग चार दिन पहले महागठबंधन में शामिल हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा ने सरकार से किनारा कर लिया था। मंत्रिमंडल में शामिल जीतन राम मांझी के बेटे संतोष मांझी ने नीतीश कुमार मंत्रिमंडल से स्तीफा दे दिया था। उनके स्तीफा देने के बाद ऐसा लगा था कि बिहार की राजनीति में भूचाल आ गया है।
विपक्ष की पार्टी भाजपा ने तरह-तरह के आरोप लगाने शुरू कर दिए थे। उनके स्तीफ़े की चर्चा इसलिए भी जोर पकड़ने लगी थी कि कुछ दिनों बाद ही बिहार की राजधानी पटना में विपक्षी पार्टियों की बैठक होने वाली थी। ऐसे में चर्चा यह होने लगी थी कि नीतीश कुमार जब अपने ही गठबंधन में शामिल दलों को नहीं संभाल पा रहे हैं तो भला विपक्ष के नेताओं को कैसे एकजुट कर पाएंगे।
यहां तक कहा जाने लगा था कि जब वो अपने घर को ही ठीक से नहीं चला पा रहे हैं तो दूसरा घर कैसे बना पाएंगे। हालांकि जीतन राम मांझी के जाने के बाद उनके बेटे के इस्तीफा देने के बाद नीतीश कुमार ने उन्हीं की बिरादरी के रत्नेश सदा को मंत्रिमंडल में स्थान देकर बहुत हद तक उसकी भरपाई कर ली थी। कुछ दिन बाद ही द माउंटेन मैन के नाम से विख्यात रहे दशरथ मांझी के बेटे भागवत मांझी और उनके दामाद मिथुन मांझी को भी नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी में शामिल करवा लिया था। इन दोनों व्यक्तियों के जदयू में आने के बाद जीतन राम मांझी की भरपाई पूरी तरह से कर ली गई थी। जीतन राम मांझी की बिरादरी के नेताओं का जदयू में शामिल होना यहीं नहीं रुका।
जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष ध्रुव लाल मांझी ने मोर्चा के आधा दर्जन नेताओं के साथ जदयू की सदस्यता ग्रहण कर ली। हालांकि हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा ने एक बयान जारी कर कहा है कि उनके पार्टी का सिर्फ एक ही नेता जदयू में शामिल हुआ है। अपने पार्टी अध्यक्ष को लेकर "हम' ने कहा है कि वह पहले से ही जदयू के संपर्क में थे। उनके जाने से पार्टी पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। वैसे देखा जाए तो जीतन राम मांझी की पार्टी का बिहार में कोई ठोस आधार नहीं है, और जिस तरीके से उन्ही की बिरादरी के कद्दावर नेता उनसे किनारा करने लगे हैं, उसके बाद ऐसी संभावनाएं व्यक्त की जा रही हैं कि उनकी पार्टी और भी कमजोर हो जाएगी।
ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि जिस किसी के कहने पर या किसी के प्रलोभन पर उन्होंने अपने बेटे का नीतीश मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिलवाया है, उसका उन्हें फायदा मिलेगा? कथित तौर पर भाजपा की तरफ से उन्हें कुछ विशेष ऑफर मिले हैं। उन्ही ऑफरों के चलते शायद उन्होंने दिल्ली कूच किया है। जिस तरीके से उनकी पार्टी में उथल-पुथल मची हुई है, उसे देखते हुए यह आशंका होने लगी है कि कहीं ऐसा ना हो कि बड़ा पाने के चक्कर में अपना बना बनाया एक मुकाम तो वो गंवा ही चुके हैं, कहीं ऐसा ना हो कि अपनी वह राजनीतिक जमीन भी खो दें। यह सबको पता है कि नीतीश कुमार की मेहरबानियों की बदौलत ही आज जीतन राम मांझी कद बढ़ा हुआ है। अगर नीतीश कुमार ने उन्हें मुख्यमंत्री ना बनवाया होता तो शायद आज भी बिहार में जीतन राम मांझी हाशिए पर ही बने रहते।
| Tweet |