ओबामा के उलट हैं मायावती

Last Updated 21 Apr 2009 10:28:51 PM IST


न्यूयार्क। मायावती के बड़ी विभाजनकारी राष्ट्रीय नेता बनने की संभावना है जो ओबामा के उलट होंगी और यह केवल घरेलू स्तर पर ही नहीं होगा। शीर्ष अमेरिकी पत्रिका ने अपनी आवरण कथा में मायावती को बराक ओबामा के उलट करार देते हुए कहा है कि अमेरिका के युवा अश्वेत राष्ट्रपति के विपरीत बसपा प्रमुख ने जन भावनाएं उत्तेजित कर वर्ग आधारित वैर भाव के आधार पर अपनी ताकत खड़ी की र्हैं और वह एक बड़ी विभाजनकारी राष्ट्रीय नेता बन सकती हैं। पत्रिका के अनुसार मायावती के समर्थक बसपा प्रमुख को ओबामा का भारतीय जवाब बताने की कोशिश कर रहे हैं। पत्रिका कहती है असल में मायावती और ओबामा के बीच कई बातें समान है। अपने पांच पृष्ठीय आलेख में पत्रिका ने कहा अमेरिकी राष्ट्रपति की तरह मायावती युवा हैं। वह उस देश में महज 53 वर्ष की हैं जहां अधिकतर राजनेता 70 से अधिक उम्र के हैं। वह एक बाहरी महिला हैं जो समाज के उस वर्ग यानी दलितों के वर्ग से आती हैं जो लंबे समय तक दमन का शिकार रहा है। पत्रिका के अनुसार लेकिन मायावती प्रतिष्ठापित व्यवस्था के लिये ओबामा से कहीं अधिक बड़ा संभावित खतरा है। पत्रिका के अनुसार न सिर्फ नस्ल से परे जाकर बल्कि पारंपरिक विचारधारा और भ्रष्ट अमेरिकी तरीकों से परे एक नयी राजनीति का वादा करने वाले ओबामा के विपरीत मायावती ने जन भावनाएं उत्तेजित कर वर्ग आधारित वैर भाव के आधार पर अपनी ताकत खड़ी की है। उनकी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं बढ़ने के साथ ही उन्होंने हाल ही में अगड़ी जाति के मतदाताओं की ओर हाथ बढ़ाना शुरू कर दिया है। पत्रिका की आवरण कथा कहती है कि बसपा प्रमुख ने संदेहास्पद रूप से दिखावटी संपत्ति जुटायी है और उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। पत्रिका के अनुसार कई दलित उनका आदर करते हैं लेकिन अक्सर यह सम्मान उनके लिए हासिल की गयी सीमित उपलब्धियों के बजाय उनकी ताकत और उनके आभूषणों के लिये अधिक होता है। आलेख कहता है कि अगर मायावती की जीत होती है तो इसे भारत के दबे-कुचले वर्गों के आगे बढ़ने के एक बड़े कदम के तौर देखा जा सकता है। लेकिन यह हास्यास्पद बात यह होगी कि यह उस जाति व्यवस्था को बढ़ाने में परिणत होगा जिसने उन्हें लंबे समय से बेड़ियों में जकड़ रखा था। कीनियाई पिता इंडोनेशियाई सौतेले पिता और अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण रखने वाले ओबामा की देश की सीमाओं के परे भी एक अपील है और उन्होंने अमेरिका को जार्ज डब्ल्यू बुश के एकपक्षीयवाद से दूर करने की शुरुआत भी कर दी है। इसके विपरीत मायावती अत्यधिक अनुदार हैं। वह विदेश नीति के बारे में लगभग कभी भी बात नहीं करतीं और जब करती हैं तो उनकी बात काफी अस्पष्ट और व्यावहरिक तौर पर निरर्थक होती है। पत्रिका ने मायावती के चिंता में डाल देने वाले रूख पर भी गौर किया है। पत्रिका कहती है कि वह ईरान को देश का पुराना दोस्त बताती हैं और उस पर प्रतिबंध लगाने के लिये भारत का समर्थन हासिल करने की अमेरिका की कोशिशों की निंदा करती हैं। वह वादा करती हैं कि अगर बसपा की सरकार बनेगी तो वह भारत-अमेरिका परमाणु करार पर दोबारा बातचीत करेंगी। पत्रिका ने अपने आलेख में मायावती के प्रभावशाली उदय पर भी प्रकाश डाला है जिसमें बताया गया है कि वह कैसे कांशीराम के मार्क्स की लेनिन बनीं। आलेख कहता है लेकिन इस बात के काफी कम प्रमाण हैं कि मायावती की नीतियां असल में उनके निष्ठावान समर्थकों के लिये ज्यादा कुछ कर पाती हैं। आज उत्तर प्रदेश में दलितों की स्थिति अन्य राज्यों में रह रहे दलितों की तुलना में बदतर है।



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