Indore-1 Constituency: जातीय समीकरण अहम, विजयवर्गीय के मैदान में आने के बाद संजय शुक्ला को बदलनी पड़ी रणनीति

Last Updated 19 Oct 2023 12:38:35 PM IST

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों के दौरान सियासी दिग्गजों की उम्मीदवारी के कारण चर्चित सीटों में इंदौर-1 भी शामिल है।


Kailash Vijayvargiya vs Sanjay Shukla: राज्य में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस सीट से अपने राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय (67) को चुनावी समर में उतारा है जिसके बाद कांग्रेस के कब्जे वाली इस सीट पर पार्टी के मौजूदा विधायक संजय शुक्ला को अपनी रणनीति बदलनी पड़ी है जो एक बार फिर इंदौर-1 से किस्मत आजमा रहे हैं।

संजय शुक्ला वर्ष 2018 के पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान इंदौर के शहरी क्षेत्र की सभी पांच सीटों में कांग्रेस के इकलौते विजयी उम्मीदवार थे और शेष चारों सीटें भाजपा की झोली में चली गई थीं। हालांकि, वर्ष 2022 के पिछले नगर निगम चुनावों में शुक्ला को महापौर पद पर भाजपा उम्मीदवार पुष्यमित्र भार्गव के हाथों हार का सामना करना पड़ा था।

अब विधानसभा चुनाव में शुक्ला का मुकाबला भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव विजयवर्गीय से है। अपनी रणनीति बदलते हुए शुक्ला अब जातीय समीकरणों को साधने, चुनाव प्रचार के लिए दिग्गज नेताओं को अपने क्षेत्र में लाने और खुद के स्थानीय होने पर विशेष जोर देते हुए विजयवर्गीय को ‘मेहमान’ बता रहे हैं।

वैश्य समुदाय से ताल्लुक रखने वाले विजयवर्गीय को भाजपा ने 10 साल के लम्बे अंतराल के बाद टिकट दिया है।

कांग्रेस ने अपने मौजूदा विधायक संजय शुक्ला (49) पर दोबारा भरोसा जताते हुए उन्हें उम्मीदवार बनाया है। ब्राह्मण समुदाय के शुक्ला इंदौर-1 क्षेत्र के ही मूल निवासी हैं, जबकि विजयवर्गीय इंदौर-2 क्षेत्र के रहने वाले हैं।

कुल 3.64 लाख मतदाताओं वाले इंदौर-1 क्षेत्र का चुनाव परिणाम तय करने में ब्राह्मण और यादव समुदायों के लोगों की भूमिका चुनाव में अहम रहती है।

अनुभवी विजयवर्गीय के अचानक मैदान में उतरने के कारण शुक्ला को इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा बरकरार रखने के लिए अपनी चुनावी रणनीति बदलनी पड़ी है।

शुक्ला के नजदीकी सूत्रों ने बताया कि जातीय समीकरण साधने के लिए कांग्रेस नये सिरे से योजना बना रही है। इसके साथ ही, विपक्ष के राष्ट्रीय स्तर के नेताओं की सिलसिलेवार सभाओं की तैयारी भी की जा रही है।

चुनाव प्रचार में स्वयं को स्थानीय उम्मीदवार और विजयवर्गीय को "मेहमान" बता रहे शुक्ला अपने लिए ‘‘नेता नहीं, बल्कि बेटा’’ का जुमला इस्तेमाल कर रहे हैं। उधर, विजयवर्गीय अपने मुख्य चुनावी प्रतिद्वंद्वी की इस चाल की काट के तौर पर मतदाताओं के सामने खुद को समूचे इंदौर के नेता के तौर पर पेश करने की कोशिश में हैं।

सार्वजनिक कार्यक्रमों में भजन गाने के अपने शौक के लिए मशहूर विजयवर्गीय इंदौर-1 के तेज विकास और नशे के अवैध कारोबार पर अंकुश लगाने के वादों के साथ मतदाताओं का भरोसा जीतने की कवायद में जुटे हैं।

दूसरी ओर, पिछले पांच साल के दौरान कई धार्मिक कार्यक्रमों और भंडारों का आयोजन कर चुके शुक्ला अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों के सुख-दुःख में लगातार खड़े होने का दावा करते हुए ताकत आजमा रहे हैं।

विजयवर्गीय अपने 40 साल लम्बे सियासी करियर में अब तक कोई भी चुनाव नहीं हारे हैं। वह इंदौर जिले की अलग-अलग सीटों से 1990 से 2013 के बीच लगातार छह बार विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं।

राजनीति के स्थानीय समीकरणों पर बरसों से नजर रख रहे वरिष्ठ पत्रकार कीर्ति राणा ने ‘‘पीटीआई-’’ से कहा, ‘‘विजयवर्गीय राज्य का मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा रखते हैं। इन दिनों वह अपने बयानों से इसके संकेत भी दे रहे हैं।’’

भाषा
इंदौर


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