विशेष : सहाराश्री ने हर खास और आम के दिल को छुआ
अपने कर्मचारियों और सहयोगियों के बीच स्नेह और सम्मान से ‘सहाराश्री’ के रूप में लोकप्रिय श्री सुब्रत रॉय सहारा कारोबारी दिग्गज, राष्ट्रवादी और लोकोपकारी थे, जिन्होंने करोड़ों भारतीयों के दिल में जगह बनाई।
सहारा इंडिया परिवार के संस्थापक, प्रणेता, मुख्य अभिभावक और समूह के प्रबंध कार्यकर्ता एवं चेयरमैन माननीय ‘सहाराश्री’ सुब्रत रॉय सहारा मदर टेरेसा के साथ। |
उनका जन्म 10 जून, 1948 को श्री सुधीर चंद्र रॉय, जो शुगरकेन इंजीनियर थे और छबि रॉय के घर हुआ था। उनके माता-पिता संपन्न जमींदार परिवार से थे। रॉय ने शुरुआती पढ़ाई कोलकाता के हॉली चाइल्ड इंस्टीटय़ूट से की और बाद में गर्वनमेंट टेक्निकल इंस्टीटय़ूट, गोरखपुर से मैकेनिकल इंजीयिरिंग की। उन्होंने गोरखपुर से कारोबार आरंभ किया। प्रबंधन में कौशल से परिपूर्ण रॉय ने लोगों को इस कदर प्रभावित किया कि आम जन भी सपने देखने और उन्हें सच करने को तत्पर हुआ।
रॉय ने 1978 में मात्र 2 हजार रुपये की पूंजी से 10 गुणा 12 फुट के कार्यालय और दो सहयोगियों के साथ सहारा इंडिया परिवार की स्थापना की। उनके कारोबारी मॉडल ने भारत में लघु बचत के पूरे परिदृश्य को नया आयाम दे डाला। उन्होंने बैंकिंग की परिधि से बाहर हाशिये पर पड़े वित्तीय रूप से कमजोर पृष्ठभूमि वाले लोगों को प्रेरित करके उनमें बचत करने की आदत डाली। 2004 में टाइम मैगजीन ने सहारा समूह को भारतीय रेल के बाद भारत में दूसरा सबसे बड़ा नियोक्ता करार देते हुए कहा कि समूह समूचे देश में पांच हजार से ज्यादा प्रतिष्ठानों के माध्यम से कारोबार संचालित करता है, और सहारा इंडिया समूह के बैनर तले 12 लाख के करीब (फील्ड और ऑफिस स्टाफ दोनों) कर्मचारी कार्यरत हैं। पारिवारिक मूल्यों के प्रति सहराश्री में प्रगाढ़ भाव था और स्वयं को अभिभावक और अपने संगठन को परिवार कहलाने में उन्हें गर्व की अनुभूति थी। परिवार में सहारा समूह का हर कामगार शामिल था। आम तौर पर कारोबारी उद्यमों के नाम लोग अपने नाम पर रखते हैं। सुब्रत रॉय ने अपने नाम के साथ अपने संगठन का नाम जोड़ा।
वे सच्चे राष्ट्रवादी थे और उनकी दृष्टि में राष्ट्र प्रथम था। करगिल युद्ध, मुंबई आतंकी हमले और दंतेवाड़ा संहार में शहीदों के 320 परिवारों को उन्होंने वित्तीय सहायता दी। पीड़ित परिवारों के पुनर्वास, स्वास्थ्य देखभाल के लिए देश के सुदूर इलाकों तक मोबाइल हेल्थ वैन की व्यवस्था कराई। प्रभावित परिवारों की शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण और दिव्यांग जनों के पुनर्वास की दिशा में तमाम प्रयास किए। सभी धर्मो की गरीब कन्याओं के हर वर्ष 101 सामूहिक विवाह संपन्न कराए। करगिल युद्ध के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने शहीदों के 127 परिवारों को वित्तीय सहायता मुहैया कराने पर सुब्रत रॉय सहारा के नेतृत्व में सहारा इंडिया के कार्यों की सराहना की थी। अनेक अवसरों पर सहाराश्री को मदर टेरेसा से अगाध स्नेह प्राप्त हुआ।
सहाराश्री भारतीय खेलों को प्रोत्साहन और संरक्षण देने में अग्रणी रहे। बैडमिंटन खेलना उन्हें प्रिय था और हर दिन बैडमिंटन खेलते थे। उनका मानना था कि खेल स्वस्थ, ऊर्जावान और मजबूत इरादों वाले समाज का निर्माण करते हैं। उन्होंने खेलों को अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय यहां तक कि क्षेत्रीय स्तर पर भी प्रोत्साहन दिया। उन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम और हॉकी टीम को प्रायोजित किया। सहारा समूह ने भारतीय मुक्केबाजी, कुश्ती, तीरंदाजी, शूटिंग, ट्रैक एंड फील्ड, टेनिस और वॉलीबॉल टीम को प्रोत्साहित करने के साथ ही इन खेलों से जुड़े 101 खिलाड़ियों को पूरी तरह समर्थन दिया।
सहाराश्री ने अपनी पुस्तकों-‘शांति, सुख संतुष्टि’, ‘मान, सम्मान, आत्मसम्मान’, ‘लाइफ मंत्रास’ और ‘थिंक विथ मी’ में अपने दर्शन और विचार को सहेजा है। उन्होंने सामूहिक भौतिकवाद के कॉरपोरेट दर्शन का सिद्धांत प्रतिपादित किया जो सामूहिक वृद्धि के लिए सामूहिक प्रयासों और प्राप्त प्रतिफल के सामूहिक वितरण का विचार है। उनके विचारों और दर्शन को समूचे विश्व ने अनेक अवसरों पर सुना।
इस क्रम में उन्होंने हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी के छात्रों के अलावा आईआईटी, आईआईएम, बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी और अनेक अन्य संस्थानों को संबोधित किया। उन्हें ब्रुसेल्स में यूरोपियन पार्लियामेंट में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया था। यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट लंदन ने सहाराश्री को ऑनरेरी डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया। ललित नारायण मिथिला यूनिवर्सिटी ने उन्हें सर्वोच्च ऑनरेरी डिग्री ‘डी. लिट.’ से सम्मानित किया।
उन्हें 2011 में लंदन में पावरब्रांड्स हॉल ऑफ फेम अवार्डस में ‘बिजनेस आइकॅन ऑफ द ईयर’ पुरस्कार से नवाजा गया। ग्लोबल लीडरशिप अवार्ड (2004), बिजनेसमैन ऑफ द ईयर अवार्ड (2002), बेस्ट इंडस्ट्रियलिस्ट अवार्ड (2002), नेशनल सिटीजन अवार्ड (2001) से भी उन्हें विभूषित किया गया। भारत की अग्रणी पत्रिका इंडिया टूडे ने 2003 में उन्हें भारत के सर्वाधिक प्रभावशाली पचास भारतीयों में शामिल किया था।
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