टनल में 40 मज़दूरों की जिंदगी दांव पर, प्राकृतिक आपदा या निर्माणाधीन कंपनी की गलती ?
उत्तराखंड के यमुनोत्री हाइवे पर बन रहे टनल में भूस्खलन की वजह से लगभग चालीस मजदूर फंसे हुए हैं।
Natural disaster or mistake of the construction company? |
यह हादसा बीते रविवार को सुबह पांच बजे के आस-पास हुआ था। ऐसा कहा जा रहा है कि एक जगह टनल का कुछ हिस्सा धंस गया है, जिसकी वजह से वहां काम कर रहे मजदूर फंसे पड़े हैं। यह टनल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऑल वेदर प्रोजेक्ट का अहम् हिस्सा है। बताया जा रहा है कि टनल के मुख्य द्वार से दो सौ मीटर की दुरी पर भूस्खलन हुआ है जबकि मजदूर 2800 मीटर की दुरी पर फंसे हैं। जहाँ टनल बन रहा है, वहां कई जगह भूस्खलन ज़ोन के रूप में चिन्हित किए गए थे, बावजूद इसके वहां ऐसा हादसा हो गया और आज 40 मजदूरों की जिंदगी दांव पर लगी हुई है जबकि टनल शुरू होने के पहले निर्माणाधीन कम्पनी ने दावा किया था कि सुरंग बनाने में यूरोपियन तकनिकी का इस्तेमाल किया जा रहा है, ऐसे में सवाल पैदा होता है कि आखिरकार यह हादसा कैसे हो गया और हो भी गया तो वो सुरक्षा के सारे इंतजाम कहां धरे रह गए, जिसका निर्माणाधीन कम्पनी ने दावा किया था।
क्या इसे प्राकृतिक आपदा बताकर निर्माणाधीन कम्पनी के अधिकारियों को क्लीन चिट दे दी जाएगी ? क्या इसे प्राकृतिक आपदा ही माना जायेगा ? आगे बढ़ने से पहले आइए जान लेते हैं कि निर्माणाधीन कम्पनी के एक जिम्मेदार अधिकारी ने इसके निर्माण के समय बरती जाने वाली सावधानियां और सुरक्षा के इंतजाम को लेकर क्या कहा था? उस समय निर्माण एजेंसी के असिस्टेंट जनरल मैनेजर राजेंद्र कुमार ने बताया था कि सुरंग बनाने में आधुनिक यूरोपियन तकनीकी का इस्तेमाल किया जाएगा। इसमें उच्च तकनीकी के वेंटिलेशन उपकरण और अग्निशमक यंत्र तो लगेंगे ही, एनएचआइडीसीएल( National Highway Infrastructure Devlopment Corporation limited) की तरफ से वहां अग्निशमन दस्ता भी मौजूद रहेगा। यह सारा सिस्टम हाईटेक सीसीटीवी कैमरों से लैस रहेगा, ताकि किसी भी अनहोनी से निपटा जा सके।
उन्होंने बताया था कि इस डबल लेन सुरंग में एक भाग रिजर्व रहेगा, जो किसी भी अनहोनी की स्थिति में वाहनों को निकालने के उपयोग में लाया जाएगा। अब आप खुद ही सोचिए कि सुरक्षा को लेकर जो दावे किए गए थे, अगर वैसा ही रहा होता तो आज जो हादसा हुआ है वो होता? बिलकुल नहीं। यहाँ बता दें कि यह टनल ऑल वेदर प्रोजेक्ट का हिस्सा है। चूँकि उत्तराखण्ड में चार धामों की यात्रा कुछ समय के लिए रोक दी जाती है। उसकी वजह है वहां मौसम की खराबी और बरसात के समय में जगह जगह भूस्खलन होना। ऑल वेदर प्रोजेक्ट के तहत अब किसी भी मौसम में केदार नाथ ,बदरीनाथ ,गंगोत्री और यमुनोत्री की यात्रा की जा सकती है। इन चारों धामों में विदेशी यात्री कभी भी जा सकते हैं। साढ़े चार किलोमीटर लम्बी सुरंग उत्तरकाशी के सिलक्यारा और डण्डालगांव के बीच बनाई जा रही है।
बल्कि लगभग बनकर तैयार है। कुछ ही काम बाकी है। कार्यदायी संस्था NHIDCL यानि नेशनल हाइवे इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कार्पोरेशन लिमिटेड ने नवयुगा कम्पनी को कांट्रैक्ट दिया था। हालाँकि इस टनल का निर्माण 2022 में हो जाना था, लेकिन किसी वजह से यह लेट हो गया। खैर सवाल यह नहीं है कि यह कब बनकर तैयार होगा। बल्कि सवाल यह है कि सभी सुरक्षा के इंतजामों के दावे करने के बावजूद इतनी बड़ी घटना कैसे हो गई ? निर्माणाधीन कम्पनी को पता था कि वहां भूस्खलन हो सकता है, उसने सुरक्षा के इंतजाम भी किए थे, इसके बाद भी आज वहां चालीस मजदूर पिछले तीन दिन से क्यों फंसे पड़े हैं।
अभी तक यही जानकारी दी जा रही है कि वो सभी मजदूर सुरक्षित हैं, लेकिन उस सुरंग में एक डबल लेन सुरंग को रिजर्ब रखने की जो बात की गई थी, जिसके जरिए अनहोनी होने पर उस रास्ते से हादसे वाली जगह पर जाया जा सके ,वह रिजर्ब लेन कहां गई ? खैर सवाल ढेर सारे हैं। इसे प्राकृतिक आपदा कहकर बचने का प्रयास जरूर किया जायेगा, हालांकि यह आपदा प्राकृतिक तो है लेकिन मजदूरों की जान, मनुष्य रूपी गलतियों की वजह से हुई है। कुछ लोग इसे मानवीय भूल कहकर बचने या किसी को बचने का प्रयास करेंगे, लेकिन ऐसी भूल जिसमें दर्जनों लोगों की जान खतरे में पड़ी हो, ऐसी भूल को मानवीय भूल भी नहीं कह सकते। खैर, ईश्वर करे सुरंग में फंसे वो चालीस मजदूर सुरक्षित हों,उम्मीद जताई जा रही है कि उन सबको जल्दी से बाहर निकाल लिया जाएगा, लेकिन खुदा ना खास्ता अगर कुछ अनहोनी हो गई तो निश्चित तौर पर इस अनहोनी की जिम्मेदारी कार्यदायी संस्था और निर्माणाधीन कम्पनी की होगी।
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