भारत इस समय वायु प्रदूषण के स्तर में चिंताजनक वृद्धि का सामना कर रहा है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा है।
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जैसे-जैसे देश इस बढ़ते संकट से जूझ रहा है, विशेषज्ञ और अधिकारी आबादी पर प्रदूषित हवा के खतरनाक प्रभाव को कम करने के लिए तत्काल समाधान तलाश रहे हैं। विशेषकर पिछले कुछ वर्षों के दौरान प्रदूषण का बढ़ता स्तर एक बढ़ती हुई चिंता का विषय बन गया है।
औद्योगिक उत्सर्जन, वाहन प्रदूषण, निर्माण गतिविधियां, कृषि पद्धतियां और मौसम संबंधी स्थितियों सहित कई कारणों से कई प्रमुख शहरों और क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता खराब हुई है।
भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अधिकारी ने कहा, ''कम तापमान और शांत हवा का संयोजन देश भर में प्रदूषण स्तर में वृद्धि का एक कारण है। उन्होंने कहा कि एक बार हवा की गति बढ़ने पर हवा की गुणवत्ता में सुधार होने की उम्मीद है।''
जब हवा की गति लगभग 10 किमी प्रति घंटे से अधिक न हो तो प्रदूषण शांत परिस्थितियों में जमा हो जाता हैं। 15 किमी प्रति घंटे या उससे अधिक की गति प्रदूषण के फैलाव में सहायक होती है जो वस्तुतः हवा को साफ करती है।
विशेषज्ञों का कहना है, "हवा किस दिशा में बहती है यह उसकी गति जितनी ही महत्वपूर्ण है। पराली जलाने के मौसम में मध्यम गति की उत्तर-पश्चिमी हवाएं पंजाब और हरियाणा में खेतों की आग से निकलने वाले धुएं को एनसीआर और उससे आगे तक ले जाती हैं। दिसंबर, जनवरी में पूर्वी हवाएं प्रदूषकों को भारत के गंगा के मैदानी इलाकों से एनसीआर की ओर धकेल सकती हैं।''
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, कई भारतीय शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक लगातार बहुत खराब से खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है। देश की राजधानी अक्सर खुद को इस संकट में सबसे आगे पाती है, जहां पीएम2.5 और पीएम10 का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा अनुशंसित सुरक्षित सीमा से अधिक है। मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और बैंगलोर जैसे अन्य शहर भी उच्च स्तर के प्रदूषण से जूझ रहे हैं।
इस वायु प्रदूषण संकट के स्वास्थ्य परिणाम गंभीर हैं। अध्ययनों ने खराब वायु गुणवत्ता के लंबे समय तक संपर्क को विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं से जोड़ा है, जिनमें श्वसन समस्याएं, हृदय रोग और यहां तक कि समय से पहले मौत भी शामिल है। बच्चे और बुजुर्ग वायु प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील हैं।
पर्यावरणविद और हरियाणा के पूर्व वैज्ञानिक चंद्र वीर सिंह ने कहा, "सरकार को अब दिल्ली में अन्य स्थानों पर जहां प्रदूषण का स्तर बढ़ गया है, वहां सम-विषम यातायात नियम जैसे उपाय लागू करने चाहिए। सम-विषम लाइसेंस प्लेट नंबरों के आधार पर वाहन के उपयोग को प्रतिबंधित करता है, साथ ही स्वच्छ परिवहन विकल्पों को बढ़ावा देता है। इलेक्ट्रिक वाहनों की तरह प्रदूषण के स्तर को भी कम करता है।"
इसके अतिरिक्त, जीआरएपी चरण-III के कार्यान्वयन के साथ सख्त प्रवर्तन और निगरानी के साथ औद्योगिक नियमों और उत्सर्जन मानकों को कड़ा कर दिया गया है।
मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, साकेत के विवेक नांगिया ने कहा कि वायु प्रदूषण सबसे बड़े वैश्विक पर्यावरणीय स्वास्थ्य खतरे के रूप में उभरा है, जिससे बीमारियां और समय से पहले मौतें हो रही हैं।
उन्होंने कहा, "2012 में यह लगभग 7 मिलियन मौतों के लिए जिम्मेदार था, जो दुनिया भर में आठ मौतों में से एक के बराबर थी। 2015 तक यह आंकड़ा लगभग 9 मिलियन मौतों तक बढ़ गया था, जो सभी वैश्विक मौतों का लगभग 16 प्रतिशत या वायु प्रदूषण के कारण होने वाली छह मौतों में से एक थी। यह संख्या भारत में एचआईवी, टीबी और मलेरिया से होने वाली संयुक्त मौतों की तुलना में तीन गुना अधिक थी, उस अवधि के दौरान लगभग 25 लाख मौतों का अनुमान लगाया गया था।''
आगे कहा, "2019 में स्थिति और खराब हो गई और अकेले भारत में वायु प्रदूषण के कारण लगभग 1.7 मिलियन मौतें हुईं। विशेष रूप से इंडो गैंगेटिक बेल्ट में वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर के कारण यह संख्या बढ़ने की उम्मीद है। चौंकाने वाले शोध से यह भी पता चला है कि इस समस्या के कारण हमारा जीवनकाल लगभग 12 वर्ष कम हो रहा है।''
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