--ऐसे तो नितिन गडकरी की मिशालें दी जाने लगेंगी, बाकियों की नींदें उड़ेंगीं !

Last Updated 01 Oct 2023 06:17:14 PM IST

मोदी सरकार में निर्विवाद रूप से किसी मंत्री की अगर सबसे ज्यादा चर्चा होती है, तो उनका नाम है, नितिन गडकरी। केंद्रीय सड़क परिवान और राजमार्ग मंत्री गडकरी की कार्यशैली उनकी भाषा और उनके व्यवहार से विपक्ष के नेता भी कायल रहते हैं।


Nitin Gadkari

अपनी छवि में इजाफा करते हुए उन्होंने कुछ ऐसा एलान कर दिया है, जिसके बाद आने वाले समय में उनकी मिशालें दी जाने लगेगीं। जी हाँ , उन्होंने कह दिया है कि आगामी लोकसभा चुनाव में वो अपना पोस्टर नहीं छपवाएंगे। खिलाना -पिलाना तो दूर की बात है, वो किसी को चाय के लिए भी नहीं पूछेंगे। उन्होंने यहां तक कह दिया है कि जिसे वोट देना हो, उन्हें वोट दे दे। नहीं देना है, तो ना दे, लेकिन वो इस बार चुनाव में कुछ भी पैसा खर्चा नहीं करेंगे। गडकरी ने ये बातें कह तो दी हैं, लेकिन अपनी ही पार्टी के साथ साथ विपक्ष के सैकड़ों-हजारों संभावित उम्मीदवारों की नींदें उड़ा दी हैं!

अगर बिना पैसे खर्च किए नितिन गडकरी चुनाव जीत जाते हैं, तो वो ना सिर्फ एक मिशाल बन जाएंगे बल्कि बाकियों के लिए मुशीबत खड़ी खरके चले जाएंगे।
पिछले कुछ वर्षों में चुनाव में पैसे पानी की तरह बहाए  जाते रहे हैं। एक धारणा सी बन गई है कि जिनके पास पैसे नहीं हैं, वह व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकता। ऐसी धारणा सिर्फ सांसद और विधायक के चुनाव में ही नहीं बनी है बल्कि जिला पंचायतों और नगर निगमों के चुनाव में भी बिना पैसे वाले व्यक्ति के लिए चुनाव लड़ना तो दूर की बात है, उसे शायद टिकट भी नहीं मिलता है। इसी देश में कुछ ऐसी पार्टियां आज भी हैं, जो उम्मीदवारों से पैसे लेकर टिकट देती हैं।

कुछ माह पूर्व उत्तर प्रदेश में संपन्न हुए नगर निगम चुनाव में ऐसी चर्चाएं हुई थीं कि भाजपा से पार्षद का टिकट पाने के लिए प्रदेश के सैकड़ों-हजारों उम्मीदवारों ने मोटे पैसे देकर टिकट हासिल किया था, जबकि वर्षों से पार्टी का झंडा बैनर ढोने वाले जुझारू कार्यकर्ताओं को टिकट से मरहूम कर दिया गया था, क्योंकि उनके पास टिकट खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। बहरहाल इस बात में कितनी सच्चाई है, इसका कोई प्रमाण तो नहीं है, लेकिन ऑफ द रिकार्ड, भाजपा के ही कई नेता इस बात की तस्दीक कर सकते हैं कि बहुतों को पैसे लेकर टिकट दिए गए थे। हालांकि ऐसा आरोप बसपा ,सपा समेत अन्य पार्टियों पर भी लगते रहते हैं।

एक समय वह भी था, जब उन लोगों को टिकट दिए जाते थे, जिनकी छवि अच्छी होती थी या जो पार्टी के लिए जी जान से जुटे रहते थे, लेकिन उस समय को गुजरे एक ज़माना हो गया। अब परिस्थितियां बदल गईं हैं। अब सबने मान लिया है कि अगर भरपूर पैसे नहीं हैं तो, चुनाव लड़ना तो दूर, टिकट के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता है। बिना पैसे खर्च किए अगर किसी को टिकट मिलता है तो वो पार्टी के शीर्ष नेता के रहमों कर्मों पर मिलता है। ऐसे लोगों को टिकट देने से पहले पार्टियां अपना नफा नुकसान भी पहले  देखती हैं।


बहरहाल बात हो रही है नितिन गडकरी की। नितिन गडकरी ने अपने आपको लेकर जो एलान किया है। उसकी तारीफ़ शायद चारों तरफ हो रही होगी और आगे भी होती रहेगी। क्योंकि आज की तारीख में शायद ही ऐसा कोई नेता हो, जो बिना पैसे खर्च किए चुनाव लड़ने के बारे सोचता होगा। अब नितिन गडकरी ने जब एलान कर दिया है तो वो वैसा ही करेंगे। उनके बारे में कहा जाता है कि उन्हें सभी वर्गों के लोगों का समर्थन मिलता रहा है। नागपुर से वो दूसरी बार सांसद बने हैं। केंद्रीय सड़क एवं राजमार्ग मंत्री के रूप में उन्होंने अब तक जो कुछ भी किया है, उसे पूरा देश देख रहा है।

जिस तरह से उनके कार्यों की प्रसंशा की जाती है ,उस हिसाब से अगर गडकरी देश के किसी भी कोने से चुनाव लड़ लें तो शायद चुनाव जीत जाएंगे। खैर वो ऐसा नहीं करेंगे। वो इस बार भी नागपुर से ही चुनाव लड़ेंगे। हालांकि भाजपा के अधिकांश  नेता पिछले दो चुनावों से प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर चुनाव जीतते आ रहे हैं। संभव है कि शायद पहली बार नितिन गडकरी भी मोदी के नाम पर या फिर भाजपा की वजह से चुनाव जीत गए हों, लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में उनकी जीत में उनकी खुद की भूमिका कुछ ज्यादा ही रही होगी।

इस बार वो चुनाव में बिलकुल पैसे नहीं खर्च करने वाले हैं। ऐसे में अगर वो चुनाव जीत गए तो ना सिर्फ राजनिति का परिदृश्य बदल जाएगा बल्कि ऐसे नेताओं के लिए एक उम्मीद की किरण बनकर उभरेंगे जो ईमानदार और मेहनती तो हैं लेकिन उनके पास पैसे  नहीं हैं। साथ ही साथ एक ऐसा फार्मूला सेट करने में कामयाब हो जाएंगे, जिसकी मिशालें अगले कई वर्षों तक दी जाती रहेंगी। इससे बढ़कर गडकरी के पक्ष में एक बात और भी हो सकती है। आगामी लोकसभा चुनाव में अगर भाजपा को सरकार बनाने लायक सीटें नहीं मिलती हैं, तो संभव है कि गडकरी को पीएम बनाने के नाम पर अन्य  कईं पार्टियां भी उनके सपोर्ट में खड़ी  हो जाएं।

 

शंकर जी विश्वकर्मा
नई दिल्ली


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