'विधि आयोग का फैसला स्वागतयोग्य, लेकिन सहमति से संबंधों के लिए पॉक्सो में संशोधन जरूरी
वकीलों और बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने सहमति से संबंध बनाने की उम्र के साथ छेड़छाड़ न करने की विधि आयोग की सिफारिश का स्वागत किया है, लेकिन 16 से 18 वर्ष के युवाओं के बीच सहमति से संबंधों को लेकर पॉक्सो अधिनियम में विशिष्ट संशोधन की आवश्यकता पर बल दिया है।
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बाइसवें विधि आयोग ने यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा (पॉक्सो) अधिनियम के तहत सरकार को सहमति की मौजूदा उम्र के साथ छेड़छाड़ न करने की सलाह दी है और 16 से 18 वर्ष के बच्चों की स्वीकृति से जुड़े मामलों में सजा को लेकर निर्देशित न्यायिक विवेक के इस्तेमाल का सुझाव दिया है।
पॉक्सो अधिनियम 18 वर्ष से कम आयु के लोगों को बच्चे के रूप में परिभाषित करता है।
सहमति की उम्र 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष करने के खिलाफ विधि आयोग की रिपोर्ट में दी गई सिफारिशों का स्वागत करते हुए चाइल्ड राइट्स एंड यू (सीआरवाई) की मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) पूजा मारवाह ने कहा कि यह वास्तव में बाल अधिकारों के परिप्रेक्ष्य से एक सुविचारित कदम है।
उन्होंने कहा, ‘‘पिछले कुछ वर्षों में, कई बाल अधिकार संगठन कहते रहे हैं कि पॉक्सो अधिनियम की कड़ी रूपरेखा 16 से 18 वर्ष की आयु के किशोरों के बीच परस्पर सहमति से की गई यौन गतिविधियों को अपराध घोषित करती है और इसमें अधिक संतुलन की आवश्यकता है।’’
उन्होंने यह भी आगाह किया कि आयु सीमा को कम करने से कम उम्र में विवाह और बाल तस्करी के खिलाफ लड़ाई पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
बाल अधिकार कार्यकर्ता और वकील भुवन रिभु ने भी कहा कि सहमति से यौन संबंध की उम्र कम करने से 14 से 18 साल की लड़कियों की तस्करी और अन्य दुर्व्यवहार के सभी मामलों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।
उन्होंने कहा, ‘यह देखकर खुशी हो रही है कि विधि आयोग ने बाल संरक्षण पर समग्र दृष्टिकोण अपनाया है और सहमति की उम्र के मुद्दे को हमेशा के लिए सुलझा लिया है।’
हक सेंटर फॉर चाइल्ड राइट्स की सह-संस्थापक एवं कार्यकारी निदेशक भारती अली ने मौजूदा कानूनों के बारे में गंभीर सवाल उठाए।
हालांकि, प्रमुख मानवाधिकार वकील शिल्पी जैन ने विरोधी विचार व्यक्त करते हुए तर्क दिया कि प्रस्तावित परिवर्तन विकसित हो रही सामाजिक गतिशीलता को बेहतर ढंग से प्रतिबिंबित कर सकते थे।
उन्होंने तर्क दिया कि आज की परस्पर जुड़ी दुनिया में, जागरूकता और विशेषकर इंटरनेट के माध्यम से जागरूकता बढ़ने के कारण किशोर पहले ही परिपक्व हो जाते हैं।
जैन ने विवाह-पूर्व यौन संबंध और शीघ्र विवाह के बीच अंतर करने की आवश्यकता पर जोर दिया और सुझाव दिया कि सहमति से यौन संबंध बनाने की उम्र कम करके 16 वर्ष की जानी चाहिए।
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