वन नेशन, वन इलेक्शन नहीं, अब वन नेशन, वन एजुकेशन, वन नेशन, वन हेल्थ सिस्टम को लेकर ऐसे होगी तकरार !
केंद्र की सरकार ने वन नेशन वन इलेक्शन का शिगूफा छोड़कर एक नई बहस को जन्म दे दिया है। शायद इसी पर चर्चा के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने की तैयारी भी कर ली गई है। उधर केंद्र सरकार के इस कदम के बाद तमाम विपक्षी पार्टियों ने अलग आलाप करना शुरू कर दिया है।
One Nation One Election |
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने कह दिया है कि वन नेशन वन इलेक्शन से क्या होगा ,इससे तो बेहतर यह होता कि सरकार वन नेशन वन एजुकेशन ,वन नेशन वन हेल्थ सिस्टम करती तो ज्यादा अच्छा होता। केंद्र की सरकार ने वन नेशन वन इलेक्शन का जो राग आलापा है,उस पर केजरीवाल का आलाप निश्चित तौर से भारी पड़ने वाला है। आगामी लोकसभा चुनाव में वन के नाम से बहुत सी चीजें सामने आने वाली हैं। ऐसे में एक बात तो आसानी से कही जा सकती है कि आगामी लोकसभा चुनाव में भले ही कितने मुद्दों की बातें की जाएंगी, लेकिन वन नेशन का मुद्दा जरूर छाया रहेगा। साथ ही साथ अरविन्द केजरीवाल ने वन एजुकेशन की बात शुरू करके उन लोगों की नीदें उड़ा दी हैं, जो शिक्षा के संस्थान बनाकर मोटी कमाई कर रहे हैं। ऐसे में यह तय है कि शिक्षा माफियाओं की नजर में अब केजरीवाल खटकने लगे होंगे।
वन नेशन वन इलेक्शन यानि एक राष्ट्र एक चुनाव का मामला बीजेपी नेतृत्व वाली केंद्र की सरकार ने उठाया है। केंद्र की सरकार चाहती है कि देश में लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभा के चुनाव एक साथ हों। केंद्र की सरकार ने शायद इसी पर चर्चा करने के लिए संसद का विशेष सत्र भी बुला लिया है। माना जा रहा है कि केंद्र की सरकार संसद में इस पर विपक्षी दलों के नेताओं के साथ चर्चा करेगी। इसे लागू करने का प्रयास करेगी, लेकिन यह काम व्यावहारिक रूप से इतना आसान नहीं है। वन नेशन वन इलेक्शन के पीछे केंद्र सरकार की मंशा क्या है ,अभी किसी को नहीं पता है, लेकिन केंद्र की सरकार ने वन नेशन वन इलेक्शन के नाम पर विपक्षियों को घेरने की जो कोशिश की है, वह बीजेपी के लिए शायद उल्टा पड़ सकता है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने एक सभा के दौरान लोगों से पूछ दिया कि इस देश में एक इलेक्शन नहीं बल्कि दस इलेक्शन हो जाएँ ,देश के लोगों को क्या मिलेगा? देश के लोगों को अच्छी शिक्षा , अच्छी स्वस्थ्य सुविधाएं चाहिए। इलेक्शन एक हों या दस हों, अगर सबको अच्छी शिक्षा नहीं मिलती है तो वह बेकार है। केजरीवाल का मानना है कि एक नेशन एक एजुकेशन होना चाहिए। ताकि अमीर ,गरीब और किसानों के बच्चे एक साथ पढ़ें। अगर ऐसा होता है तो लोकतंत्र की तस्वीर ही कुछ अलग होगी, लेकिन यह काम भी इतना आसान नहीं है। आज देश में हजारों शिक्षा के संस्थान चल रहे हैं। नर्सरी से लेकर इंटरमीडियट तक के हजारों संसथान हैं, जिनकी फीस इतनी ज्यादा है कि आम आदमी अपने बच्चों को उसमे पढ़ाने की सोच भी नहीं सकता।
इन हजारों स्कूल मालिकों ने अरबों रुपयों का निवेश कर कथित तौर पर इसे एक व्यवसाय बना लिया है। उसी तरह हजारों अस्पताल , सौकड़ों मेडिकल कालेज ऐसे हैं जिनमें अपने बच्चों को आम आदमी पढ़ाने की, सोच भी नहीं सकता। ऐसे ही देश में हजारों अस्पताल हैं, जहाँ इलाज कराना तो दूर ऐसे अस्पतलों के गेट पर भी आम आदमी जा नहीं सकता। ऐसे में केजरीवाल वन नेशन वन एजुकेशन ,वन नेशन वन हेल्थ व्यवस्था कैसे लागू करवा सकते हैं। कथित रूप से ऐसे शिक्षा और हेल्थ माफिया अपना नुकसान होता देख कैसे शांत रहेंगे।
इन मुद्दों को छेड़कर,अरविन्द केजरीवाल ने निश्चित तौर पर मधुमक्खी के छत्तों में अपना हाथ डाल दिया है। उधर बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने भी अरविन्द केजरीवाल के इस गुगली की अपेक्षा नहीं की होगी। कुलमिलाकर वन नेशन के साथ अब कई चीजें जुड़ने वाली है ,क्योंकि कुछ दिन पहले बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने भी वन नेशन वन हेल्थ की बात की थी। आगामी इलेक्शन में देशवासियों को वन नेशन की बातें खूब सुनने को मिलेंगीं। विपक्ष आगामी चूनावों में वन नेशन को लेकर सत्ता पक्ष को जरूर घेरने की कोशिश करेगा। अब यह देखना बड़ा ही दिलचस्प होगा कि देश में क्या-क्या एक जैसा होता है? और कब तक होता है?
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