चंद्रयान-3 के बाद ISRO की नजरें अब दो सितंबर को ‘आदित्य-एल1’ का प्रक्षेपण करने पर

Last Updated 26 Aug 2023 04:51:01 PM IST

चंद्रयान-3 अभियान के सफल रहने के बाद, सूर्य का अध्ययन करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अब एक हफ्ते के अंदर ‘आदित्य-एल1’ सौर मिशन भेजने की तैयारियों में जुट गया है।


आदित्य-एल1 मिशन को दो सितंबर को भेजे जाने की संभावना है। इस अंतरिक्ष यान को सौर कोरोना (सूर्य की सबसे बाहरी परतों) के दूरस्थ अवलोकन और एल1 (सूर्य-पृथ्वी लाग्रेंज बिंदु) पर सौर वायु के यथास्थिति अवलोकन के लिए तैयार किया गया है। एल1 पृथ्वी से करीब 15 लाख किलोमीटर की दूरी पर है।

यह सूर्य के अवलोकन के लिए पहला भारतीय अंतरिक्ष मिशन होगा।

आदित्य-एल1 मिशन का लक्ष्य एल1 के चारों ओर की कक्षा से सूर्य का अध्ययन करना है।

यह अंतरिक्ष यान सात पेलोड लेकर जाएगा, जो अलग-अलग वेव बैंड में फोटोस्फेयर (प्रकाशमंडल), क्रोमोस्फेयर (सूर्य की दिखाई देने वाली सतह से ठीक ऊपरी सतह) और सूर्य की सबसे बाहरी परत (कोरोना) का अवलोकन करने में मदद करेंगे।

इसरो के एक अधिकारी ने कहा कि आदित्य-एल1 पूरी तरह से स्वदेशी प्रयास है, जिसमें राष्ट्रीय संस्थानों की भागीदारी है।

बेंगलुरु स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (आईआईए) की ‘विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ पेलोड’ के विकास में अहम भूमिका है, जबकि पुणे के ‘इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स’ ने मिशन के लिए ‘सोलर अल्ट्रावॉयलेट इमेजर पेलोड’ विकसित किया है।

आदित्य-एल1, अल्ट्रावॉयलेट पेलोड का उपयोग करके सूर्य की सबसे बाहरी परत (कोरोना) और एक्स-रे पेलोड का उपयोग कर सौर क्रोमोस्फेयर परतों का अवलोकन कर सकता है।

पार्टिकल डिटेक्टर और मैग्नेटोमीटर पेलोड आवेशित कणों के बारे में जानकारी प्रदान कर सकते हैं।

उपग्रह को दो सप्ताह पहले आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित इसरो के अंतरिक्ष केंद्र पर लाया गया है।

इसरो के एक अधिकारी ने कहा, ‘‘प्रक्षेपण दो सितंबर को होने की अधिक संभावना।’’

अतंरिक्ष यान को सूर्य-पृथ्वी लाग्रेंज बिंदु की एल1 हेलो कक्षा के पास स्थापित करने की योजना है।

इसरो ने कहा कि एल1 बिंदु के आसपास हेलो कक्षा में स्थापित उपग्रह को सूर्य को बिना किसी ग्रहण के लगातार देखने का बड़ा फायदा मिल सकता है।

इसने कहा है, ‘‘इससे वास्तविक समय में सौर गतिविधियों और अंतरिक्ष मौसम पर इसके प्रभाव का पता लगाया जा सकेगा।’’
 

भाषा
बेंगलुरु


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