Hindutva और सिर्फ Modi के चेहरे पर अब कोई चुनाव क्यों नहीं जीत सकती BJP

Last Updated 10 Jun 2023 03:33:54 PM IST

भारतीय जनता पार्टी पर अक्सर यह आरोप लगता रहता है कि वह हर चुनाव में हिंदुत्व के मुद्दे को लेकर चुनाव मैदान में उतरने की कोशिश करती है, और उसे सफलता भी मिल जाती है। हालांकि ऐसी धारणा 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले बनाई गई थी, लेकिन 2014 के बाद लोकसभा 2019 का चुनाव बीजेपी ने हिंदुत्व के साथ-साथ मोदी के चेहरे के बलबूते भी जीत लिया था।


Hindutva और सिर्फ Modi के चेहरे पर अब कोई चुनाव क्यों नहीं जीत सकती BJP

उसके अलावा देशभर के अन्य राज्यों में भी चुनाव जिताने में प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा बहुत ही कारगर साबित हुआ। लेकिन अब पार्टी के रणनीतिकारों को लगने लगा है कि बस इतने भर से ही अब चुनाव जीतना आसान नहीं है। हालांकि इस बात को बीजेपी के किसी बड़े नेता या केंद्र के किसी मंत्री ने स्वीकार नहीं किया है। लेकिन आरएसएस का मुख्य पत्र कहे जाने वाले ऑर्गेनाइजर मैगजीन के संपादक ने इस बात का खुलासा कर दिया है।

इस मैगजीन के संपादक ने स्पष्ट तौर से बता दिया है कि  लोकसभा का चुनाव या विधानसभा का चुनाव भाजपा सिर्फ हिंदुत्व और मोदी के नाम पर नहीं जीत सकती है। ऑर्गेनाइजर की इस संपादकीय की चर्चा आज पूरे देश में हो रही है। विपक्षी पार्टी कांग्रेस को शायद इस बात का पहले से ही आभास हो गया था, इसलिए उन्होंने उन मुद्दों को लेकर चुनाव मैदान में उतरने की कोशिश की थी, जो सीधे-सीधे देश की जनता को प्रभावित करते हैं। ऐसा करने से कांग्रेस को इसका फायदा भी मिला है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक का विधानसभा का चुनाव परिणाम। कांग्रेस ने बेरोजगारी और बढ़ती हुई महंगाई की बात की। उन्होंने साम्प्रदायिक सौहार्द की बात की। लोगों को कांग्रेस की बात समझ में आयी।

हिमाचल और कर्नाटक के परिपेक्ष्य में ऑर्गेनाइजर मैगजीन के संपादक की बात, बड़ी ही प्रासंगिक लगती है। यानी संपादकीय में जो बातें कही गईं हैं, उसका असर इन दोनों राज्यों के चुनाव में देखने को मिला है। इन दोनों राज्यों में बीजेपी ने हिंदुत्व का कार्ड भी बहुत खेला और प्रधानमंत्री मोदी ने भी जोर शोर से प्रचार किया, बावजूद इसके इन दोनों राज्यों में बीजेपी की करारी हार हुई। यानी जिसकी आशंका ऑर्गेनाइजर के संपादक ने व्यक्त की है, संभवत उस आशंका को कांग्रेस ने पहले से ही भांप लिया होगा।

यह भी संभव है कि बीजेपी का संगठन इस बात को बखूबी जानता हो, बीजेपी के बड़े-बड़े नेता भी इस बात को शायद पहले से जानते रहे होंगे, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि भाजपा का ऐसा कौन सा नेता है जो सार्वजनिक रूप से इस कमी को बताने की हिमाकत कर सके कि बीजेपी अब मोदी और हिंदुत्व पर आश्रित ना रहे। यानी संभव है कि इस बात को बहुत से नेता कहना चाहते होंगे, लेकिन कह नहीं पाए होंगे। आज जब ऑर्गेनाइजर ने इस बात का खुलासा कर दिया है तो जाहिर तौर पर यह बात अब सार्वजनिक हो गई है।

हालांकि ऑर्गेनाइजर ने मोदी सरकार की खूबियों का भी बहुत बखान किया है। उनके 9 साल के कार्यकाल को ऐतिहासिक करार दिया है, लेकिन साथ ही साथ उन्होंने बीजेपी के नेताओं को एक आईना दिखाने का भी काम कर दिया है। अब देखना यह होगा कि आगामी विधानसभा के चुनाव और लोकसभा के आम चुनाव में ऑर्गेनाइजर की संपादकीय बातों पर पार्टी कितना अमल करती है,और किस तरीके से चुनाव मैदान में उतरने की कोशिश करती है। वैसे भी बोलचाल की भाषा में कहते हैं कि एक ही चीज बार-बार की जाए तो कुछ दिनों के बाद उसके प्रति उदासीनता का भाव पैदा होने लगता है। एक ही चीज हमेशा खाई जाए तो उससे मन भरने लगता है। कुछ ऐसा ही चुनाव में भी देखने को मिलता है। एक ही मुद्दे को लेकर आप बहुत दिनों तक देश की जनता का भरोसा नहीं जीत सकते। एक समय के बाद कुछ बदलाव करने ही पड़ते हैं।

बीजेपी 2014 से उसी एक ढर्रे पर चलने की कोशिश कर रही है। एक बने बनाए पैटर्न पर चुनाव जीतने की उसकी रणनीति का अब शायद अंतिम पड़ाव है। अब उसे अपना पैटर्न बदलना ही पड़ेगा। लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि बीजेपी अगर हिंदुत्व के मुद्दे को छोड़ दे, प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे का इस्तेमाल ना करे तो फिर किन मुद्दों को लेकर वह चुनाव मैदान में उतरने की कोशिश करेगी। क्योंकि महंगाई, बेरोजगारी और इसी तरीके से जनता से जुड़े हुए तमाम मुद्दों के साथ कांग्रेस पहले से ही चुनाव मैदान में उतर रही है, जिसमें  उसे आंशिक रूप से सफलता भी मिलती जा रही है। ऐसे में विपक्ष के पास तो चुनाव मैदान में जाने के लिए भरपूर मुद्दे हैं। चुनौती भाजपा के सामने है। वह हिंदुत्व और मोदी को छोड़ नहीं सकती, तो फिर भाजपा और किन-किन मुद्दों को लेकर चुनाव में जनता के बीच जाएगी।

शंकर जी विश्वकर्मा
नई दिल्ली


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