असम में विदेशियों के लिए 6 डिटेंशन सेंटर्स का नाम बदलकर 'ट्रांजिट कैंप' किया गया
असम सरकार ने विदेशियों के लिए स्थापित राज्य के छह डिटेंशन सेंटर्स का नाम बदलकर 'ट्रांजिट कैंप' कर दिया है। अधिकारियों ने गुरुवार को यह जानकारी दी। इन केंद्रों में वर्तमान में 181 बंदी रहते हैं, जिनमें से 61 विदेशी नागरिक घोषित किए गए हैं और 120 दोषी ठहराए गए विदेशी नागरिक हैं, जो निर्वासन का इंतजार कर रहे हैं।
'ट्रांजिट कैंप' |
राज्य के गृह और राजनीतिक विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि 12 साल पुरानी अधिसूचना में संशोधन कर छह डिटेंशन सेंटरों का नाम बदलकर ट्रांजिट कैंप कर दिया गया है।
असम के गृह और राजनीतिक विभाग के प्रमुख सचिव नीरज वर्मा की ओर से हस्ताक्षरित एक अधिसूचना में कहा गया है कि डिटेंशन सेंटर्स का नाम बदलकर ट्रांजिट कैंप कर दिया गया है। साथ ही बताया गया है कि यह 17 जून 2009 को जारी नोटिफिकेशन का आंशिक संशोधन है।
हालांकि अधिकारी ने डिटेंशन सेंटरों का नाम बदलने के कारण का खुलासा करने से इनकार कर दिया, मगर राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने महसूस किया है कि यह सामंजस्य स्थापित करने और डिटेंशन सेंटर्स से जुड़े नकारात्मक मनोवैज्ञानिक प्रभाव को कम करने के लिए किया गया है।
बता दें कि डिब्रूगढ़, गोलपारा, जोरहाट, कोकराझार, सिलचर और तेजपुर स्थित जिला जेलों के अंदर दोषी विदेशियों और घोषित विदेशियों को रखने के लिए 6 डिटेंशन सेंटर्स (जिन्हें अब ट्रांजिट कैंप कहा जाएगा) बनाए गए हैं।
मेघालय से सटे पश्चिमी असम के गोलपारा जिले के अगिया में 46 करोड़ रुपये की लागत से 3,500 विदेशियों को रखने की क्षमता वाला पहला स्टैंडअलोन डिटेंशन सेंटर निमार्णाधीन है।
इनमें से तीन केंद्रों - कोकराझार, सिलचर और तेजपुर में नौ माताओं के साथ 22 बच्चे हैं। 22 बच्चों में से दो 14 साल से ऊपर के हैं जबकि 20 बच्चे 14 साल से कम उम्र के हैं।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 23 दिसंबर, 2009 से 30 जून, 2021 के बीच 2,551 लोगों को डिटेंशन सेंटरों में भेजा गया है। जब उन्हें विभिन्न फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल (एफटी) द्वारा गैर-भारतीय नागरिक घोषित किया गया था, उसके बाद उन्हें वहां भेज दिया गया।
डिटेंशन कैंप में पहला बंदी गोलपारा जिले का कृष्ण बिस्वास था।
इन केंद्रों में अब तक 29 घोषित विदेशियों की मौत हो चुकी है, जबकि कई को 2009 से जमानत मिल चुकी है।
अधिकारियों के अनुसार, एफटी द्वारा 2,98,471 मामलों का निपटारा किया गया है, जबकि इन न्यायाधिकरणों में 30 अप्रैल तक 1,36,173 मामले लंबित थे।
एफटी द्वारा 30 अप्रैल तक कुल 1,18,216 लोगों को भारतीय नागरिक घोषित किया गया, जबकि 1,39,900 लोगों को विदेशी घोषित किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट के 10 मई, 2019 के आदेश के अनुसार, 273 घोषित विदेशियों को तीन साल की नजरबंदी के बाद उनकी अपील के बाद रिहा कर दिया गया था, जबकि 481 अन्य को पिछले साल अप्रैल में शीर्ष अदालत के एक अन्य आदेश के बाद रिहा कर दिया गया था और कोविड-19 महामारी के मद्देनजर उनकी नजरबंदी की अवधि को घटाकर दो साल कर दिया गया था।
असम पुलिस के बॉर्डर विंग को ऐसे विदेशियों या अवैध अप्रवासियों का पता लगाने का काम सौंपा गया है।
जिन लोगों पर उन्हें गैर-नागरिक होने का संदेह होता है, उन्हें 100 एफटी में से किसी के सामने पेश होने और अपनी भारतीय नागरिकता स्थापित करने के लिए संबंधित दस्तावेज जमा करने के लिए नोटिस दिया जाता है। ऐसा न करने पर उन्हें डिटेंशन सेंटर्स में भेज दिया जाता है या उन्हें निर्वासित कर दिया जाता है।
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