रीयल एस्टेट उद्योग की तरह हो गए हैं अस्पताल!

Last Updated 20 Jul 2021 09:48:10 AM IST

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि कोविड-19 महामारी के दौर में अस्पताल मानवता की सेवा करने के बजाए बड़े रीयल एस्टेट उद्योग की तरह हो गए हैं।


उच्चतम न्यायालय

इसके साथ ही न्यायालय ने निर्देश दिया कि आवासीय इलाकों में दो-तीन कमरे के फ्लैट में चलने वाले ‘नर्सिग होम’ आग और भवन सुरक्षा पर ध्यान नहीं देते हैं, इसलिए उन्हें बंद किया जाना चाहिए।

न्यायालय ने भवन उपनियमों के उल्लंघन में सुधार लाने के लिए समय सीमा अगले वर्ष जुलाई तक बढ़ाने पर गुजरात सरकार की ¨खचाई की और ‘पूर्णाधिकार पत्र’ अधिसूचना शीर्ष अदालत के 18 दिसम्बर के आदेश के विपरीत है और ऐसी स्थिति में आग लगने की घटनाओं से लोग मरते रहेंगे। शीर्ष कोर्ट ने कोरोना रोगियों के उचित इलाज पर स्वत: संज्ञान से लिए गए मामले की सुनवाई कर रहा था। मामले में सुनवाई की अगली तारीख दो हफ्ते बाद तय की।

न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने कहा, ‘‘आप (गुजरात सरकार) समय सीमा बढ़ाते रहे हैं, जिसे पिछले वर्ष 18 दिसंबर के हमारे फैसले के परिप्रेक्ष्य में नहीं किया जा सकता है। अस्पताल कठिनाई के समय में रोगियों को राहत प्रदान करने के लिए होते हैं, न कि नोट छापने की मशीन होते हैं।’’ आपदा के इस समय में अस्पताल बड़े उद्योग बन गए हैं और ‘आवासीय कॉलोनी में दो-तीन कमरे के फ्लैट से चलने वाले इस तरह के नर्सिग होम को काम करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए।’

पीठ ने कहा, ‘‘बेहतर है कि इन अस्पतालों को बंद कर दिया जाए और सरकार को आवश्यक सुविधाएं मुहैया करानी चाहिए। हम इन अस्पतालों एवं नर्सिग होम को काम जारी रखने की अनुमति नहीं दे सकते। यह मानवीय आपदा है।’’ अदालत ने महाराष्ट्र के नासिक का जिक्र करते हुए यह टिप्पणी की जहां पिछले वर्ष कुछ रोगी और नर्स मारे गए थे। कोर्ट ने संकेत दिए कि गुजरात सरकार को अधिसूचना वापस लेनी होगी। न्यायालय ने कहा कि यह अधिसूचना जारी करने के बारे में एक हफ्ते के अंदर जवाब मांगा है।
 

भाषा
नई दिल्ली


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