‘‘शिरिषा बांदला हमेशा आसमान में उड़ने का सपना देखती थी’’

Last Updated 12 Jul 2021 05:00:11 PM IST

‘सितारों से आगे जहां और भी है’ भारतीय अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री शिरिषा बांदला के लिए अल्लामा इकबाल की ये पंक्तियां बिल्कुल सटीक लगती हैं क्योंकि उनके सपनों में हमेशा आकाशगंगा ही रहती थीं।


भारतीय अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री शिरिषा बांदला

न्यू मैक्सिको से 34 वर्षीय एरोनॉटिकल इंजीनियर बांदला ने वर्जिन गैलेक्टिक के अंतरिक्ष यान टू यूनिटी में ब्रिटिश अरबपति र्रिचड ब्रैनसन और चार अन्य लोगों के साथ अंतरिक्ष के छोर पर पहुंचीं।

शिरिषा के दादा बांदला रागैया ने कहा, ‘‘बचपन में उसकी नजर हमेशा आसमान में रहती और वह तारों, हवाईजहाज और अंतरिक्ष की तरफ बेहद उत्सुकता से देखती रहती। उसका जुनून ऐसा था कि अंतत: वह अंतरिक्ष में गई और यह उसके लिये बेहद बड़ी उपलब्धि है।’’

जब वह छोटी थी तो रागैया हैदराबाद (अविभाजित आंध्र प्रदेश में) उसकी देखभाल करते थे क्योंकि उसके माता-पिता अमेरिका में बस गए थे। कुछ समय के लिये वह आंध्र प्रदेश के चिराला में अपने नाना-नानी के घर उनके साथ भी रही।

रागैया ने सोमवार को फोन पर बताया, ‘‘हम बहुत खुश हैं कि उसका सपना और काफी समय की इच्छा पूरी हुई। यह एक महान उपलब्धि है और हमें उस पर गर्व है।’’

अंतरिक्ष में जाने वाली तेलुगु मूल की पहली महिला शिरिषा जब चार साल की थी तब अपनी बड़ी बहन प्रत्यूषा के साथ माता-पिता के साथ रहने अमेरिका चली गई थी।

शिरिषा के पिता मुरलीधर अपने पिता की तरह एक कृषि वैज्ञानिक हैं और अब वह नयी दिल्ली में अमेरिकी दूतावास में पदस्थ हैं।

उन्होंने टिप्पणी की, ‘‘हम बहुत खुश हैं कि अंतरिक्ष के लिये वर्जिन गैलेक्टिक की उड़ान सफल रही। मैं इससे ज्यादा क्या कह सकता हूं।’’

इसबीच, आंध्र प्रदेश के राज्यपाल विभूषण हरिचंदन और मुख्यमंत्री वाई एस जगन मोहन रेड्डी ने बांदला को उनकी उपलब्धि पर बधाई दी है।

राज्यपाल ने एक संदेश में कहा, ‘‘यह पहली तेलुगु लड़की शिरिषा द्वारा एक ऐतिहासिक सफर था और वह अंतरिक्ष में जाने वाली भारतीय मूल की तीसरी महिला हैं (कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स के बाद)।’’

मुख्यमंत्री ने एक बयान में कहा कि यह राज्य के लिये गर्व की बात है कि गुंटूर में पैदा हुई शिरिषा ने अंतरिक्ष की उड़ान भरी।

बांदला ने अपने अनुभव को ‘‘अतुल्य’’ और ‘‘जिंदगी बदलने वाला’’ करार दिया।

उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘मैं अब भी खुद को वहीं महसूस कर रही हैं लेकिन यहां आना काफी अच्छा है। मैं एक बेहतर दुनिया के बारे में सोच रही थी और तब मेरे दिमाग में एक ही शब्द आ सकता था अतुलनीय वहां से धरती का नजारा देखना जिंदगी बदलने वाला पल होता है। अंतरिक्ष में जाना और वहां से लौटने की पूरी यात्रा शानदार थी।’’

बांदला ने इस पल को बेहद भावनात्मक करार देते हुए कहा, ‘‘मैं जब छोटी थी तब से अंतरिक्ष में जाने के सपने देख रही थी और वास्तव में यह सपने के सच होने जैसा है।’’

भाषा
गुंटूर (आंध्र प्रदेश)


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