कोरोना से मौत के डर की वजह से अग्रिम जमानत नहीं, हाईकोर्ट के फैसले पर रोक : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी, जिसमें कहा गया था कि कोविड-19 महामारी जैसे कारणों से मौत की आशंका अग्रिम जमानत देने का एक वैध आधार है।
![]() सुप्रीम कोर्ट |
न्यायाधीश विनीत सरन और न्यायमूर्ति बी. आर. गवई ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को अग्रिम जमानत देने के लिए एक मिसाल के रूप में उद्धृत नहीं किया जाना चाहिए और अदालतों को गिरफ्तारी पूर्व जमानत आवेदनों पर विचार करते समय हाईकोर्ट के फैसले ?की टिप्पणियों पर भरोसा नहीं करना चाहिए।
शीर्ष अदालत उच्च न्यायालय के 10 मई के आदेश को चुनौती देने वाली उत्तर प्रदेश सरकार की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। उत्तर प्रदेश सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जिस आरोपी को जनवरी 2022 तक अग्रिम जमानत दी गई थी, उसके खिलाफ 130 मामले लंबित हैं। उन्होंने कहा कि कई अन्य राज्यों में अग्रिम जमानत से जुड़े मामलों में उच्च न्यायालय के आदेश पर भरोसा किया गया।
पीठ ने मेहता से कहा, हम समझते हैं, आप व्यापक निर्देशों से व्यथित हैं। हम नोटिस जारी करेंगे।
शीर्ष अदालत ने आरोपी प्रतीक जैन से जवाब मांगा और जोर देकर कहा कि अगर वह अगली तारीख पर पेश नहीं होता है, तो वह उसकी जमानत रद्द करने पर विचार कर सकता है और मामले को जुलाई के पहले सप्ताह में सुनवाई के लिए निर्धारित कर दिया।
शीर्ष अदालत ने वरिष्ठ अधिवक्ता वी. गिरि को भी इस मामले में एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) नियुक्त किया, ताकि यह तय करने में मदद मिल सके कि क्या कोविड को अग्रिम जमानत देने का आधार माना जा सकता है।
इससे पहले महामारी के बीच जेलों में भीड़ कम करने के शीर्ष अदालत के निर्देश का हवाला देते हुए, उच्च न्यायालय ने कहा था, शीर्ष अदालत की टिप्पणियों और निदेशरें से जेलों की भीड़भाड़ के बारे में चिंता का पता चलता है और यदि यह अदालत उसकी अनदेखी करते हुए एक आदेश पारित करती है, जिसके परिणामस्वरूप जेलों में फिर से भीड़भाड़ होगी, तो यह काफी विरोधाभासी होगा।
| Tweet![]() |