चीन पर बनाए रखना होगा दबाव : चेलानी
पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग सो (झील) इलाके में गतिरोध दूर करने को लेकर भारत और चीन के बीच हुए समझौते को सामरिक मामलों के विशेषज्ञ प्रोफेसर ब्रह्म चेलानी सीमित प्रकृति का मानते हैं।
सामरिक मामलों के विशेषज्ञ प्रोफेसर ब्रह्म चेलानी |
खासकर, कैलाश रेंज से भारत के पीछे हटने की बात स्वीकार करने पर सवाल उठाते हुए उनका मानना है कि बचे हुए मुद्दों के समाधान के लिए भारत को चीन पर दबाव बनाए रखना चाहिए।
सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में सामरिक विषयों के प्रोफेसर ब्रह्म चेलानी ने कहा कि चीन के साथ पूर्वी लद्दाख में सेना वापसी का जो समझौता हुआ है उसके तहत पैंगोंग क्षेत्र में दोनों पक्ष अग्रिम मोच्रे से सेना की वापसी करेंगे। चीन अपनी सेना की टुकड़ियों को उत्तरी किनारे में ‘¨फगर 8’ के पूरब की तरफ रखेगा। भारत अपनी सैन्य टुकड़ियों को ‘¨फगर 3’ के पास स्थित स्थायी बेस थापा पोस्ट पर रखेगा। पैंगोंग से लेकर के दक्षिणी किनारे की पोस्ट पर भी दोनों सेनाएं इसी तरह की कार्रवाई करेंगी। किसी भी सौदे में कुछ दिया जाता है और कुछ लिया जाता है लेकिन भारत ने चीन के साथ जो समझौता किया है वह सीमित है।
कई दौर की सैन्य स्तर और राजनयिक स्तर की बातचीत के बाद हुए समझौते को कितना सार्थक मानते हैं, इस बारे में उन्होंने कहा कि दो देशों के बीच समझौते लेनदेन पर आधारित होते हैं लेकिन चीन के साथ भारत का समझौता केवल पैंगोंग इलाके तक सीमित है। ऐसा लगता है कि भारत पैगोंग इलाके को लेकर समझौता कर ‘नो मैन्स लैंड’ बनाने पर तैयार हो गया है जो मांग चीन पहले से करता रहा है। अब तक भारत, चीन के आक्रामक रवैये के खिलाफ खड़ा रहा है और उसने दिखाया है कि युद्ध की पूरी तैयारी के साथ भारत हिमालय की सर्दियों के मुश्किल हालातों में भी डटा रह सकता है। ऐसे में बड़े मुद्दों का हल तलाश करने की जगह अपनी मुख्य ताकत कैलाश रेंज से पीछे हटने से भारत की ‘मोलतोल’ की ताकत कमजोर होगी। अभी देपसांग सहित कई ऐसे इलाकों कों लेकर कोई निर्णय नहीं हुआ है जहां गतिरोध बरकरार है।
कैलाश रेंज से पीछे हटने का क्या प्रभाव पड़ेगा, के बारे में उन्होंने कहा कि पूर्वी लद्दाख में गतिरोध की स्थिति में कैलाश रेंज ने हमें लाभ की स्थिति प्रदान की है। हमें समझना होगा कि इस गतिरोध में चीन अब उस स्थिति में पहुंच गया था जहां उसे कोई लाभ की स्थिति नहीं दिखाई दे रही थी। ऐसे में कैलाश रेंज से पीछे हटने के बाद हमारी लाभ की स्थिति और मोलतोल की ताकत कम हो जाएगी।
रणनीति पर कायम रहें : लद्दाख में चीन के साथ बाकी बचे हुए मुद्दों के समाधान के लिए क्या रणनीति हो, उन्होंने कहा कि इस बात पर सहमति बनी है कि पैंगोंग झील से पूर्ण तरीके से सेनाओं के पीछे हटने के बाद वरिष्ठ कमांडर स्तर की बातचीत हो तथा बाकी बचे हुए मुद्दों पर भी हल निकाला जाए। ऐसे में हमें यह देखना होगा कि चीन ने छल-कपट से अतिक्रमण कर लद्दाख में यथास्थिति को बदल दिया है। भारत चाहता है कि यथास्थिति बरकरार रहे। इस पृष्ठभूमि में भारत को ऐसे चीनी आक्रामकता के खिलाफ खड़े होने की रणनीति को नहीं छोड़ना चाहिए। देपसांग और कुछ अन्य सेक्टरों में भी पीछे हटने को लेकर भारत को चीन पर दबाव बनाए रखना चाहिए।
’वन चाइना‘ पर हो फिर से विचार : पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ संतुलन बनाने के लिए अतिरिक्त क्या करने की जरूरत है के सवाल पर उन्होंने कहा कि भारत को एक चीज पर जरूर ध्यान देना चाहिए और अपनी ‘वन-चाइना’ नीति पर पुन: विचार करना चाहिए। तिब्बत चीन की दुखती रग है और ऐसे में कम से कम उसे (भारत) तिब्बत पर चीन की नीतियों का समर्थन करना बंद करना चाहिए।
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