किसानों को फिर वार्ता का न्योता, सरकार ने चार पेज का पत्र भेजा और पूछा, बिंदुवार बताएं अपनी आशंकाएं
सरकार ने रविवार देर शाम प्रदर्शनकारी किसानों को चार पेज का पत्र भेजकर आग्रह किया कि सभी किसान संगठन उसके पूर्व में भेजे गए प्रस्ताव पर विचार करके अपनी शेष शंकाएं बताने का कष्ट करें।
आंदोलन के दौरान अब तक जान गंवा चुके किसानों को दिल्ली-यूपी बार्डर पर आयोजित शहीद दिवस के मौके पर श्रद्धांजलि अर्पित करते भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत व अन्य किसान। |
इसी पत्र में किसानों से वार्ता के लिए अपनी सुविधा की तारीख बताने की भी बात कही गई है।
इस पर किसान संगठनों ने कहा है कि वह सोमवार को बैठक करके जवाब देंगे। इससे पहले रविवार को किसानों ने सोमवार से भूख हड़ताल और एनडीए नेताओं पर दबाव बनाने जैसे कई कार्यक्रमों की घोषणा कर दी थी। बताया जा रहा है कि वकीलों ने किसानों को संतुष्ट किया था कि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें आंदोलन धीमा करने के लिए कतई नहीं कहा है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सरकार इस बार वार्ता में किसान नेताओं से एक-एक क्लॉज पर उनकी आपत्ति पूछेगी।
हालांकि एक प्रमुख किसान नेता ने कहा कि वह पिछली बैठकों में क्लॉज वार अपनी आपत्ति और उसकी वजह कृषि मंत्री को बता चुके हैं। उन्होंने कहा कि किसानों को यह बात दोहराने में कोई दिक्कत नहीं है लेकिन सरकार को याद रखना होगा कि प्रमुख मांग कृषि कानून रद्द कराना है।
जल्द वार्ता शुरू करने के लिए हरियाणा के सीएम मनोहरलाल खट्टर, डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला, पंजाब से आने वाले केंद्रीय राज्य मंत्री सोमप्रकाश और राज्य के भाजपा नेता लगातार आग्रह किया था। इनका कहना था कि किसानों के प्रदर्शन की वजह से हरियाणा और पंजाब में राजनीतिक ही नहीं भारी आर्थिक नुकसान भी हो रहा है।
सरकार की ओर से भेजे गए इस पत्र में नए कृषि कानून को लेकर पंजाब में शुरू हुए किसान संगठनों के विरोध-प्रदर्शन से लेकर दिल्ली की सीमाओं पर बीते तीन सप्ताह से ज्यादा समय से चल रहे प्रदर्शन के दौरान सरकार की ओर से समस्याओं के समाधान की दिशा में की गई पहलों और प्रदर्शनकारी किसान संगठनों द्वारा उठाए गए कदमों का बिंदुवार जिक्र किया गया है।
पत्र में किसान नेता दर्शनपाल से उनके द्वारा 16 दिसंबर को भेजी गई ईमेल के संबंध में सवाल किया गया है कि ईमेल में प्रेषित संदेश संक्षिप्त है और स्पष्ट नहीं है कि यह उनका अपना विचार या सभी संगठनों का भी मत यही है। साथ ही, सरकार की ओर से नौ दिसंबर को भेजे गए प्रस्तावों को अस्वीकार किए जाने के कारण स्पष्ट नहीं होने की बात कही गई है।
बता दें कि केंद्र सरकार द्वारा बीते सितंबर महीने में लागू कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून 2020, कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 को निरस्त करवाने की मांग को लेकर किसान 26 नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले हुए हैं और इस दौरान सरकार के साथ उनकी कई दौर की वार्ताएं बेनतीजा रही हैं।
सबसे पहले अक्टूबर में पंजाब के किसान संगठनों के नेताओं के साथ 14 अक्टूबर को कृषि सचिव से वार्ता हुई थी। इसके बाद 13 नवंबर को यहां विज्ञान-भवन में केंद्रीय मंत्रियों के साथ उनकी वार्ता हुई, जिसमें केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, रेलमंत्री पीयूष गोयल और वाणिज्य एवं उद्योग राज्यमंत्री सोमप्रकाश मौजूद थे।
सरकार के साथ तीसरे, चौथे और पांचवें दौर की वार्ताएं क्रमश: एक दिसंबर, तीन दिसंबर और पांच दिसंबर को विज्ञान भवन में ही हुईं, जिनमें तीनों मंत्री मौजूद थे। इसके बाद आठ दिसंबर को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के साथ हुई बैठक के बाद सरकार की ओर से किसान संगठनों के नेताओं को कानूनों में संशोधन समेत अन्य मसलों को लेकर सरकार की ओर से एक प्रस्ताव नौ दिसंबर को भेजा गया, जिसे उन्होंने नकार दिया दिया था।
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