'वफादार' 'असंतुष्टों' पर पड़े भारी, सोनिया ही संभालेंगी कांग्रेस पार्टी की कमान
कांग्रेस कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) की कई घंटे तक चली बैठक के बाद सोमवार शाम को फैसला लिया गया है कि फिलहाल सोनिया गांधी ही कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष बनी रहेंगी।
सोनिया गांधी अंतरिम कांग्रेस पार्टी प्रमुख |
सीडब्ल्यूसी की बैठक में जो फैसला आया है, उससे स्पष्ट है कि 'वफादार' 'असंतुष्टों' पर भारी पड़े। बैठक में तय हुआ कि सोनिया गांधी अंतरिम पार्टी प्रमुख बनी रहेंगी, जब तक एक नया अध्यक्ष नहीं चुना जाता है। अगली बैठक छह महीने बाद बुलाई जाएगी।
पार्टी के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि नए अध्यक्ष का चुनाव पार्टी के अधिवेशन की बैठक में किया जाएगा। पार्टी प्रवक्ताओं ने पार्टी में सुधार को लेकर 23 नेताओं की चर्चित चिट्ठी के बारे में कहा कि पार्टी ने तय किया है कि अब हमें इसे भूलकर आगे की ओर बढ़ना है।
रणदीप सुरजेवाला ने कहा, "उनमें से कई महत्वपूर्ण नेतागण इस कार्यसमिति में शामिल थे और उनकी सहमति से ही पार्टी कार्यसमिति ने सर्वसम्मिति से एक प्रस्ताव पारित किया है।"
सुरजेवाला ने कहा कि बैठक के अंत में सोनिया गांधी ने कहा कि हम एक बड़ा परिवार हैं और कई मौकों पर हमारी राय भिन्न-भिन्न हो सकती है, लेकिन आखिरकार हम एक ही हैं। सुरजेवाला ने यह भी बताया कि सोनिया गांधी ने कहा कि मैं किसी के प्रति कोई दुर्भावना नहीं रखती हूं, लेकिन पार्टी की बात पार्टी फोरम पर ही कहनी चाहिए।
पार्टी में टकराव से जुड़े सवाल पर सुरजेवाला ने कहा कि सोनिया गांधी ने सारी विषमताएं अपने अंदर समाहित करते हुए उनका निराकरण कर दिया है अब हम सब एक हैं।
वहीं वरिष्ठ पार्टी नेता के. सी. वेणुगोपाल ने कहा, "किसी को भी पार्टी और उसके नेताओं को कमजोर करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।"
सीडब्ल्यूसी की बैठक सोनिया गांधी के पद छोड़ने की पेशकश के साथ शुरू हुई और राहुल गांधी ने 'असंतुष्टों' द्वारा जारी पत्र के समय पर सवाल उठाया। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ऐसे पहले व्यक्ति रहे, जिन्होंने सोनिया को पद पर बने रहने का अनुरोध किया। वहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री ए. के. एंटनी ने पत्र को निर्मम बताया।
सूत्रों ने कहा कि राहुल गांधी ने पत्र के समय पर सवाल उठाया, क्योंकि सोनिया गांधी उस समय अस्पताल में थीं और पार्टी अपनी राजस्थान इकाई में उथल-पुथल का सामना कर रही थी।
सीडब्ल्यूसी की बैठक में अंबिका सोनी और अहमद पटेल सहित वफादारों ने असंतुष्टों को घेरा। उन्होंने पूछा, "ऐसे वरिष्ठ नेता इस तरह की गलती कैसे कर सकते हैं।" इस पर असंतुष्टों ने कहा कि उन्होंने नेतृत्व पर सवाल नहीं उठाया है, बल्कि वह तो संगठन के एक सुधार के लिए इसका पुनर्निर्माण करना चाह रहे थे।
आनंद शर्मा ने कहा कि यह अनुशासनहीनता नहीं है जबकि मुकुल वासनिक ने पार्टी में अपनी सेवाओं का उल्लेख किया। असंतुष्टों ने यह भी कहा कि उन्हें गांधी परिवार के नेतृत्व से कोई आपत्ति नहीं है और पार्टी को मजबूत करने में उनकी भूमिका के लिए सोनिया गांधी की प्रशंसा भी की।
सात घंटे की बैठक के दौरान कई बार विवाद हुआ, जब कई मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया कि राहुल गांधी ने दावा किया कि यह पत्र 'भाजपा के साथ मिलीभगत' में लिखा गया था।
दरअसल सोमवार को पार्टी कार्यसमिति की बैठक पार्टी के 23 बड़े नेताओं की सोनिया गांधी को लिखी एक चिट्ठी के बाहर आने के बाद आयोजित की गई थी।
इस पत्र पर कपिल सिब्बल, शशि थरूर, गुलाम नबी आजाद, पृथ्वीराज चव्हाण, विवेक तनखा और आनंद शर्मा जैसे वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं के हस्ताक्षर हैं।
गुलाम नबी आजाद हमेशा से गांधी परिवार के वफादार माने जाते रहे हैं, वो कांग्रेस कार्यसमिति के भी सदस्य हैं। यह कहा जा रहा है कि पार्टी नेतृत्व के मुद्दे पर बंट गई है और एक धड़ा जहां सामूहिक नेतृत्व की मांग कर रहा है तो वहीं दूसरा धड़ा नेहरू-गांधी परिवार में अपना विश्वास फिर से जता रहा है।
हालांकि, इस पत्र की खबर सामने आने के साथ ही पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पार्टी के कई अन्य वरिष्ठ एवं युवा नेताओं ने सोनिया और राहुल गांधी के नेतृत्व में भरोसा जताया और इस बात पर जोर दिया कि गांधी परिवार ही पार्टी को एकजुट रख सकता है।
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