नई शिक्षा नीति: बदलेगा पढ़ने का तरीका

Last Updated 30 Jul 2020 10:53:19 AM IST

केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को नई शिक्षा नीति को अपनी मंजूरी प्रदान कर दी। इस नई शिक्षा नीति में स्कूली शिक्षा को लेकर कई बड़े बदलाव किए गए हैं। हालांकि नई शिक्षा नीति लागू होने के उपरांत भी 10वीं और 12वीं में बोर्ड परीक्षाओं की प्रासंगिकता बनी रहेगी।


(फाइल फोटो)

पहले की ही तरह इन कक्षा के छात्रों को बोर्ड की परीक्षाओं में शामिल होना होगा। नई शिक्षा नीति में भी छात्रों को 10वीं और 12वीं कक्षा में बोर्ड परीक्षा देनी होगी, लेकिन अब इन कक्षाओं में पढ़ाई का रंग-ढंग बदला जाएगा। रटने वाली शिक्षा के स्थान पर ज्ञानवर्धक पाठ्यक्रम लागू किए जाएंगे। यह पाठ्यक्रम छात्रों की रुचि के अनुरूप तैयार किए जाएंगे।

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय में स्कूली शिक्षा मामलों की सचिव अनीता करवाल ने कहा, "बोर्ड एग्जाम रटने पर नहीं, बल्कि ज्ञान के इस्तेमाल पर अधारित होंगे। नई प्रक्रिया के अंतर्गत छठी कक्षा के बाद से ही वोकेशनल एजुकेशन की शुरूआत हो जाएगी। सभी सरकारी और निजी उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए एक तरह के मानदंड होंगे।"

स्कूली शिक्षा में अब 10 प्लस दो की जगह 5 प्लस 3 प्लस 3 प्लस 4 का नया सिस्टम लागू किया गया है। इसके तहत छात्रों को चार विभिन्न वर्गों में बांटा में बांटा गया है। पहले वर्ग (5) में 3 से 6 वर्ष वर्ष की आयु के छात्र होंगे जिन्हें प्री प्राइमरी या प्ले स्कूल से लेकर कक्षा दो तक की शिक्षा दी जाएगी। इसके बाद कक्षा 2 से 5 तक का पाठ्यक्रम तैयार किया जाएगा। उसके उपरांत कक्षा 5 से 8 और फिर अंत में 4 वर्षों के लिए 9 से लेकर 12वीं तक के छात्रों को ध्यान में रखते हुए शैक्षणिक कार्यक्रम बनाया गया है।

ड्रॉपआउट दर को कम करने के लिए और सार्वभौमिक पहुंच सुनिश्चित की गई है। विभिन्न उपायों के माध्यम से वर्ष 2030 तक समस्त स्कूली शिक्षा के लिए 100 सकल नामांकन अनुपात प्राप्त करना लक्षित किया गया है।

कोई भी बच्चा जन्म या पृष्ठभूमि की परिस्थितियों के कारण सीखने और उत्कृष्टता प्राप्त करने के किसी भी अवसर से वंचित न रहें। सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित समूहों पर विशेष जोर दिया जाएगा। वंचित क्षेत्रों के लिए विशेष शिक्षा क्षेत्र और अलग से लिंग समावेश निधि की स्थापना की जाएगी।

करियर और खेल-संबंधी गतिविधियों में भाग लेने के लिए एक विशेष डे-टाईम बोर्डिंग स्कूल के रूप में 'बाल भवन' स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।

'एमफिल' निरस्त, पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद सीधे पीएचडी

देश की नई शिक्षा नीति लागू होने के बाद अब छात्रों को एमफिल नहीं करना होगा। एमफिल का कोर्स नई शिक्षा नीति में निरस्त कर दिया गया है। नई शिक्षा नीति लागू होने के बाद अब छात्र ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रेजुएशन और उसके बाद सीधे पीएचडी करेंगे।

शिक्षा सचिव अमित खरे ने कहा, "नई शिक्षा नीति में छात्रों के लिए विभिन्न शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में मल्टिपल एंट्री और एग्जिट सिस्टम होगा। पहले साल के बाद सर्टिफिकेट, दूसरे साल के बाद डिप्लोमा और उसके साल बाद डिग्री दी जाएगी। नई शिक्षा नीति के मुताबिक यदि कोई छात्र इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम 2 वर्ष में ही छोड़ देता है तो उसे डिप्लोमा प्रदान किया जाएगा 1 वर्ष में सर्टिफिकेट और कोर्स पूरा करने पर डिग्री प्रदान की जाएगी।"

नई शिक्षा नीति के तहत एमफिल कोर्सेज को खत्म किया जा रहा है। कानून और चिकित्सा कॉलेजों को छोड़कर सभी उच्च शिक्षण संस्थान एक ही नियामक द्वारा संचालित होंगे। निजी और सार्वजनिक उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए साझा नियम होंगे। विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए कॉमन एन्ट्रेंस एग्जाम होंगे

5वीं तक पढ़ाई के लिए मातृ भाषा या स्थानीय भाषा

पांचवी तक पढ़ाई के लिए मातृ भाषा या स्थानीय भाषा माध्यम का इस्तेमाल किया जाएगा। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने लक्ष्य निर्धारित किया गया है कि जीडीपी का छह फीसदी शिक्षा में लगाया जाए जो अभी 4.43 फीसदी है।

केंद्रीय शिक्षा सचिव ने कहा, "अमेरिका की नेशनल साइंस फाउंडेशन की तर्ज पर भारत में नेशनल रिसर्च फाउंडेशन लाया जाएगा। इसमें विज्ञान के साथ सामाजिक विज्ञान भी शामिल होगा और शोध के बड़े प्रोजेक्ट्स की फाइनेंसिंग करेगा। ये शिक्षा के साथ रिसर्च में हमें आगे आने में मदद करेगा।"

बुधवार को जारी की गई नई शिक्षा नीति में कहा गया है कि शिक्षकों को मजबूत एवं पारदर्शी प्रक्रियाओं के माध्यम से भर्ती किया जाएगा। पदोन्नति योग्यता-आधारित होगी, तथा मूल्यांकन बहु-स्रोत आवधिक प्रदर्शन पर आधारित होगा। शैक्षिक प्रशासक या शिक्षक प्रशिक्षक बनने के लिए शिक्षकों को प्रगति पथ उपलब्ध होंगे।

विज्ञान के छात्र भी ले सकेंगे संगीत विषय

अब छात्रों के समक्ष विज्ञान, कॉमर्स और आर्ट्स के रूप में सीमाएं नहीं होंगी। विज्ञान या इंजीनियरिंग के छात्र अपनी रुचि के मुताबिक, कला या संगीत जैसे विषयों का चयन कर सकते हैं।

क्या है मल्टीपल एंट्री और एग्जिट सिस्टमः आज की व्यवस्था में अगर चार साल इंजीनियरिंग पढ़ने या 6 सेमेस्टर पढ़ने के बाद किसी कारणवश आगे नहीं पढ़ पाते हैं तो कोई उपाय नहीं होता‚ लेकिन मल्टीपल एंट्री और एग्जिट सिस्टम में 1 साल के बाद सर्टिफिकेट‚ 2 साल के बाद डिप्लोमा और 3–4 साल के बाद डिग्री मिल जाएगी। वहीं‚ जो छात्र रिसर्च में जाना चाहते हैं उनके लिए 4 साल का डिग्री प्रोग्राम होगा‚ जबकि जो लोग नौकरी में जाना चाहते हैं वो तीन साल का ही डिग्री प्रोग्राम करेंगे। नई व्यवस्था में एमए और डिग्री प्रोग्राम के बाद एफफिल करने से छूट की भी एक व्यवस्था की गई है।

34 साल बाद आई नई शिक्षा नीतिः सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़़ेकर ने बताया कि 34 साल से शिक्षा नीति में परिवर्तन नहीं हुआ था‚ इसलिए यह बेहद महत्वपूर्ण है। गौरतलब है कि वर्तमान शिक्षा नीति 1986 में तैयार की गई थी और इसमें 1992 संशोधन किया गया था। नयी शिक्षा नीति का विषय 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र में शामिल था।

पिछले वर्ष सौंपी थी मसौदा रिपोर्टः इसरो के पूर्व अध्यक्ष के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति ने पिछले वर्ष मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को नयी शिक्षा नीति का मसौदा सौंपा था जब निशंक ने मंत्रालय का कार्यभार संभाला था।

स्कूली शिक्षा: प्रमुख बदलाव
 

  • 12 साल की स्कूली शिक्षा और 3 साल की आंगनवाड़ी/प्री–स्कूलिंग के साथ नए 5 + 3+ 3+4 स्तर का स्कूली पाठ्यक्रम
  • 3 से 6 वर्ष के बच्चों के लिये केयर एजुकेशन खेल आधारित पाठयक्रम लागू किया जाएगा।
  • 6 से 9 वर्ष के छात्रों के लिए साक्षरता व संख्या ज्ञान पर फोकस करते हुए एक नेशनल मिशन बनाया जाएगा।
  • स्कूलों में पाठ्यक्रम व पढ़ाने के तरीके में बदलाव होगा।
  • बच्चों का रिपोर्ट कार्ड होलेस्टिक होगा जिसमें तीन तरीके का मूल्यांकन होगा जिसमें एक मूल्यांकन स्वयं बच्चे द्वारा‚ दूसरा मूल्यांकन उसके सहपाठी द्वारा व तीसरा मूल्यांकन शिक्षक द्वारा होगा।
  • अध्यापकों के लिए भी मानक तैयार किए जाएंगे‚ जो पूरे देश में लागू होंगे।
  • बच्चों में पढ़ने की प्रवृति को बढ़ाने के लिए डिजिटल लाइब्रेरी बनाई जायेंगी।
  • साल 2030 तक ऐसे सभी बच्चों को स्कूलों में लाया जायेगा जो स्कूलों से बाहर हैं।
  • सरकारी और प्राइवेट स्कूलों के मानक एक स्तर के ही होंगे।
  • पांचवीं तक पढ़ाई के लिए मातृभाषा या स्थानीय भाषा माध्यम का इस्तेमाल किया जाएगा।
  • हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओं के अलावा आठ क्षेत्रीय भाषाओं में भी ई–कोर्स होगा।
  • बालिकाओं की शिक्षा में सुधार के तहत सभी कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय 12वीं तक बनेंगे।


उच्च शिक्षा: प्रमुख बदलाव

  • कानून और चिकित्सा कॉलेजों को छोड़कर सभी उच्च शिक्षण संस्थान एक ही नियामक द्वारा संचालित होंगे।
  • स्टूडेंट्स अब ग्रेजुएशन‚पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद सीधे पीएचडी करेंगे।
  • छात्रों के लिए विभिन्न शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में मल्टिपल एंट्री और एग्जिट सिस्टम होगा।
  • निजी और सार्वजनिक उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए साझा नियम होंगे।
  • विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए कॉमन एन्ट्रेंस एग्जाम होंगे।
  • शिक्षा पर कुल जीडीपी का अभी करीब 4.43 फीसदी खर्च हो रहा है‚ लेकिन उसे 6 फीसद करने का लक्ष्य है। केंद्र और राज्य मिलकर इस लक्ष्य को हासिल करेंगे।
  • अमेरिका की नेशनल साइंस फाउंडेशन की तर्ज पर भारत में नेशनल रिसर्च फाउंडेशन लाया जाएगा।

एजेंसियां
नई दिल्ली


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