कश्मीर का भविष्य तय करने के लिए जनमत संग्रह कराएं : प्रशांत भूषण

Last Updated 25 Sep 2011 11:15:25 PM IST

टीम अन्ना के प्रमुख सदस्य प्रशांत भूषण ने कहा कि कश्मीर का भविष्य तय करने के लिए जनमत संग्रह कराया जाए.


काशी पत्रकार संघ की ओर से पराडकर स्मृति भवन में प्रेस से मिलो कार्यक्रम में प्रशांत भूषण ने कहा कि कश्मीर का भविष्य तय करने के लिए जनमत संग्रह कराया जाना चाहिए. हालांकि उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि यह उनकी निजी राय है.

2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में उभरे चिंदबरम, प्रणव मतभेद एवं उस पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की राय पर प्रशांत भूषण ने कहा कि मनमोहन ऐसे ईमानदार व्यक्ति है, जो खुद पैसा नहीं लेते लेकिन अपने सभी मंत्रियों को पैसा दिलाते हैं. उन्होंने इसकी खुली छूट दे रखी है. इस लिहाज से देखें तो प्रधानमंत्री को भी दोषी माना जाना चाहिए.

उन्होंने जनप्रतिनिधियों के प्रति आक्रोश जताते हुए कहा कि अगर भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना का आंदोलन विस्तार पाता गया तो वह दिन दूर नहीं जब आपराधिक प्रवृति वाले जनप्रतिनिधि को जनमानस सार्वजनिक रूप से अपमानित करेगा.

योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया का नाम लेते हुए प्रशांत भूषण ने कहा कि बड़े ओहदों पर बैठे नौकरशाह कानूनी भ्रष्टाचार को बढ़वा दे रहे हैं. मोंटेक जैसे लोग जो वि बैंक से भी जुड़े रहे हैं, वि बैंक की कई आर्थिक नीतियों को देश पर थोपना चाहते है. यह हमें स्वीकार नहीं है.

टीम अन्ना खुद पार्टी बनाकर चुनाव मैदान में क्यों नहीं आती, इस सवाल पर प्रशांत भूषण ने कहा कि पार्टी बनाकर ईमानदार लोगों की खोज करना और उन्हें चुनाव क्षेत्र में उतारने में तमाम समस्याएं है. आम जन का यह प्रयास होना चाहिए कि भ्रष्टाचारियों को सत्ता से दूर रखा जाय और इसके लिए जन दबाव ही सबसे बड़ा हथियार है.

प्रशांत भूषण ने कहा कि वर्तमान में हम भ्रमित लोकतंत्र में जी रहे हैं और लोकतंत्र एक ढकोसला मात्र रह गया है. जनप्रतिनिधि निर्णय लेने में खुद मुख्तार हो गये हैं, जबकि वास्तविक लोकतंत्र तभी स्थापित होगा, जब जनता की इच्छा से सरकार बने और उसकी कार्य पण्राली पारदर्शी हो.

एक अन्य प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि आज सबसे बड़ा सवाल व्यवस्था परिवर्तन का है. जो नीति व कानून बनाये गये हैं वह जनहित की अनदेखी कर कुछ कंपनियों के मुनाफे के लिए है. इसके कारण सामाजिक विषमताएं बढ़ रही हैं. जिसका परिणाम माओवाद, नक्सलवाद और आतंकवाद के रूप में सामने है. खदानों के लिए आदिवासियों की जमीनों को औने-पौने दामों में लेकर उन्हें भारी मुनाफे पर बेचा जा रहा है. हम इस व्यवस्था के खिलाफ है. यही वजह है कि हम इसमें परिवर्तन की बात करते हैं.
 



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