क्या मोबाइल के इस्‍तेमाल से होता है कैंसर ? जानिए क्या कहते हैं डॉक्टर

Last Updated 24 Feb 2025 07:04:31 PM IST

क्या मोबाइल चलाने से कैंसर होता है? इससे संबंधित कई सामग्रियां इंटरनेट पर हैं, लेकिन किसी में भी ठोस जानकारी नहीं दी गई है। वहीं, इसे लेकर कई बार शोध भी हो चुके हैं, लेकिन अब तक हुए शोध में यह बात सामने नहीं आई है कि मोबाइल से कैंसर हो सकता है और ना ही अब तक कोई ऐसा मामला सामने आया है। इसी को लेकर आईएएनएस ने फोर्टिस अस्पताल के मोहित अग्रवाल और सीके बिरला अस्पताल के डॉ. नितिन से बात की।


दोनों डॉक्टरों ने इस बात को सिरे से खारिज कर दिया है कि मोबाइल चलाने से किसी भी प्रकार का कैंसर होता है। हां, ऐसा जरूर है कि मोबाइल चलाने से स्वास्थ्य संबंधित दूसरी समस्याएं हो सकती हैं, लेकिन कैंसर का इससे कोई लेना देना नहीं है।

डॉ. नितिन बताते हैं कि इस बात को नकारा नहीं जा सकता है कि कई जगह इस तरह की बातें कही गई हैं। इस तरह के कई दावे किए गए हैं, जिसमें कहा गया है कि मोबाइल से कैंसर हो सकता है। इस संबंध में बाकायदा कई शोध भी हुए हैं, लेकिन अभी तक किसी भी शोध में इस तरह की कोई जानकारी सामने नहीं आई है, जिसमें यह दावे के साथ कहा जाए कि मोबाइल से किसी भी प्रकार का कैंसर हो सकता है।

दरअसल, कई रिपोर्ट्स में यहां तक दावा किया गया कि मोबाइल और वाई फाई डिवाइस रेडियो फ्रीक्वेंसी विकिरण उत्सर्जित करते हैं। रेडियो फ्रीक्वेंसी विकिरण के ज्यादा संपर्क में रहने से इंसान के शरीर में कैंसर सेल्स बनते हैं।

डॉ. नितिन स्पष्ट करते हुए बताते हैं कि इस संबंध में कई शोध हो चुके हैं, लेकिन अभी तक किसी भी शोध में इस बात के सबूत सामने नहीं आए हैं, जिससे यह कहा जा सके कि मोबाइल चलाने से कैंसर होता है।

डॉ, बताते हैं कि मैंने अपने करियर में अब तक ऐसा नहीं देखा है, जिसमें मोबाइल चलाने से कैंसर के होने की बात सामने आई हो। इसे लेकर अभी भी शोध जारी है, लेकिन मुझे लगता है कि इसमें बहुत समय लगेगा।

डॉ. नितिन के मुताब‍िक विश्व स्वास्थ्य संगठन भी इसे लेकर शोध कर चुका है, लेकिन इसमें कैंसर होने के कारण की बात अब तक सामने नहीं आई है।

वो बताते हैं कि अब तक इस बात को लेकर किसी भी प्रकार की स्टडी नहीं हुई है, जिसमें यह कहा जाए कि कितने घंटे मोबाइल फोन चलाना उचित रहेगा, लेकिन हां बतौर डॉक्टर मैं यही कहूंगा कि मोबाइल का कम से कम इस्तेमाल करें, क्योंकि इससे एकाग्रता भंग होती है और कई मौकों पर देखा गया है कि दूसरे कामों में भी मन लगना बंद हो जाता है। ऐसी स्थिति में लोगों को यही सलाह ही दी जाती है कि वो मोबाइल का कम से कम इस्तेमाल करें।

फोर्टिस अस्पताल के डॉ. मोहित अग्रवाल बताते हैं कि मोबाइल फोन और वाईफाई एक रेडियो फ्रीक्वेंसी छोड़ते हैं, जो नॉन-आयोनाइजिंग रेडिएशन का एक टाइप है। ये नॉन आईनेजरी एक्सरे और गामा की तरह पावरफुल नहीं होता है, इसलिए यह डीएनए को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं और सीधा कैंसर का कारण नहीं बनते हैं।

डॉ. बताते हैं कि डब्ल्यूएचओ और इंटरनेशनल रिसर्च ऑन कैंसर ने रेडियो फ्रीक्वेंसी को संभावित रूप से कैंसर का कारण माना है। इसको हम ग्रुप टू बी कैटेगरी में रखते हैं। इसका मतलब है कि इस बात के पक्का सबूत नहीं हैं कि यह कैंसर का कारण बनते हैं। लेकिन, इसे लेकर कुछ स्टडी हुए हैं, जिसमें कनेक्शन दिखाया गया है, लेकिन अभी इसे लेकर और ज्यादा शोध की जरूरत है।

वो बताते हैं कि इंटरनेशनल रिसर्च ऑन कैंसर और यूएस में इसे लेकर कई शोध हो चुके हैं, लेकिन अब तक ऐसा कोई भी सबूत नहीं मिला है, जिससे यह साफ हो सके कि मोबाइल से कैंसर होता है। लेकिन, कुछ स्टडी ऐसी हुई है, जिसमें हैवी मोबाइल यूजर में ग्लियोमा का खतरा दिखाया गया है। खैर, इसे लेकर वैज्ञानिक शोध कर रहे हैं।

वो बताते हैं कि कोशिश करें कि मोबाइल का कम से कम यूज हो। सोते समय मोबाइल को अपने शरीर से दूर रखें।

आईएएनएस
नई दिल्ली


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