अफगानिस्तान में तालिबान 2.0 से लड़ने वाला पहला फ्रंटलाइन राष्ट्र बनकर उभरा ताजिकिस्तान
तालिबान ने मंगलवार को अपनी सरकार की घोषणा की। हालांकि कुछ लोग इसे तालिबान की समय-समय पर की जाने वाली घोषणाओं के अनुसार एक अंतरिम यानी कार्यवाहक सरकार कह रहे हैं, मगर हमें अभी तक ऐसा कोई सुराग नहीं मिला है कि यह वास्तव में एक अंतरिम सरकार है या नहीं।
ताजिकिस्तान की स्वतंत्रता की 30वीं वर्षगांठ पर राष्ट्रपति इमामोली रहमोन का संबोधन करते हुए। |
फिर भी हल्के-फुल्के अंदाज में कहा जाए तो यह दिलचस्प है। सिराजुद्दीन हक्कानी (गृह मंत्री) जैसे अन्य कई मंत्री अंतराष्र्ट्ीय स्तर पर घोषित और वांछित आतंकवादी हैं।
जैसा कि अपेक्षित था, अहमद मसूद और पूर्व अफगान उप राष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह के नेतृत्व में राष्ट्रीय प्रतिरोध आंदोलन (विद्रोही गुट) ने सरकार की निंदा की है। उन्होंने घोषणा की है कि वे अपना प्रतिरोध जारी रखे हुए हैं और हाल ही में प्रांत में तालिबान द्वारा जीत की घोषणा के बावजूद पंजशीर ने तालिबान के सामने आत्मसमर्पण नहीं किया है।
अफगानिस्तान के दूतावास ने बुधवार को इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय की ओर से एक बयान जारी कर तालिबान सरकार की निंदा करते हुए इसे नाजायज और अनुचित बताया।
जबकि पाकिस्तान सहित अधिकांश अन्य सरकारें प्रतीक्षा और निगरानी मोड पर हैं, अफगानिस्तान की सीमा से लगे दो मध्य एशियाई देशों ने तालिबान सरकार के बारे में अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है।
उज्बेकिस्तान, जो लंबे समय से तालिबान के साथ जुड़ा हुआ था और यहां तक ??कि तालिबान प्रतिनिधिमंडलों की मेजबानी भी करता था, ने अफगानिस्तान में सरकार के गठन की घोषणा की सराहना की है।
उज्बेकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि उसे उम्मीद है कि यह एक व्यापक राष्ट्रीय सहमति की उपलब्धि और देश में स्थायी शांति और स्थिरता की स्थापना की शुरूआत है। अपने समर्थन का संकेत देते हुए, बयान में आगे कहा गया है कि देश अफगानिस्तान के नए राज्य अंगों के साथ एक रचनात्मक बातचीत और व्यावहारिक सहयोग विकसित करने के लिए तैयार है।
जबकि पड़ोसी तुर्कमेनिस्तान ने चुप्पी साध रखी है, हालांकि 15 अगस्त को काबुल पर कब्जा करने के बाद से तालिबान के साथ पहले से संपर्क में रहा है, ताजिकिस्तान पंजशीर प्रतिरोध के पक्ष में ²ढ़ता से सामने आया है। संयोग से, उज्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान दोनों रूस के नेतृत्व वाले सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन (सीएसटीओ) का हिस्सा नहीं हैं।
दुशांबे ने ताजिकिस्तान की स्वतंत्रता की 30वीं वर्षगांठ मनाई और इस दौरान राष्ट्रपति इमामोली रहमोन ने राष्ट्र के नाम एक संबोधन दिया। पाकिस्तान का नाम लिए बिना उन्होंने जोर देकर कहा कि अफगानिस्तान की अस्थिरता और त्रासदी देश में विदेशी हस्तक्षेप का परिणाम है, जो अब तक जारी है।
राष्ट्रपति ने जोर देकर कहा कि पिछले एक महीने में दुर्भाग्य से, देश की स्थिति अधिक जटिल और दुखद हो गई है और यह क्षेत्र और दुनिया के देशों के लिए बहुत चिंता का विषय है।
राष्ट्रपति ने अफगानों को उन शक्तियों द्वारा त्याग दिए जाने पर खेद व्यक्त किया, जिन्होंने उनका उपयोग किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इसकी वजह से अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को अफगान लोगों के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए और राष्ट्रीय सरकार के गठन के लिए तत्काल और सामूहिक उपायों की जरूरत है। अफगानिस्तान में रहने वाले सभी लोगों और अल्पसंख्यकों के हितों को ध्यान में रखते हुए ऐसा जरूरी है।
तालिबान द्वारा अपनी सरकार की घोषणा के तुरंत बाद यह टिप्पणी तालिबान की सरकार की अस्वीकृति के अलावा और कुछ नहीं है।
लेकिन यह सब यहीं नहीं रुका। राष्ट्रपति के भाषण के बाद दुशांबे में अफगान राजदूत मोहम्मद जोहिर अगबर ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। तालिबान सरकार को खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि इसने देश पर बलपूर्वक नियंत्रण में लिया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि पंजशीर में प्रतिरोध जारी रहेगा और अहमद मसूद और अमरुल्ला सालेह दोनों अभी भी पंजशीर में मौजूद हैं। इसके साथ ही राजदूत ने पाकिस्तानी हस्तक्षेप की ओर भी इशारा किया और बाहरी ताकतों का हस्तक्षेप अफगानों पर थोपने की आलोचना की। उनका बयान ऐसे समय पर आया, जब पाकिस्तानी जासूसी एजेंसी आईएसआई प्रमुख काबुल पहुंचे थे। यही नहीं पाकिस्तान पर पंजशीर में प्रतिरोधी गुट को कुचलने के लिए अपनी वायु शक्ति के समर्थन का आरोप भी है।
राजदूत ने आगे संकेत दिया कि यह संभावना से अधिक है कि अफगानिस्तान में एक परिषद का गठन किया जा सकता है जिसमें एनआरएफ के झंडे के नीचे अहमद मसूद, अमरुल्ला सालेह, मार्शल राशिद दोस्तम और अन्य शामिल होंगे और जो तालिबान से लड़ सकते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि एनआरएफ में न केवल ताजिक शामिल हैं, बल्कि उज्बेक, पश्तून और हजारा भी शामिल हैं, जिन पर अफगान लोगों का एक विश्वास भी है।
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