Dev Uthani Ekadashi 2024 : जागेंगे 4 माह से सोये भगवान विष्णु, तुलसी विवाह से शुरू हो जाएंगे सभी मांगलिक कार्य

Last Updated 11 Nov 2024 11:33:56 AM IST

चार मास से सोये भगवान लक्ष्मीनारायण देवोत्थान एकादशी पर जागेंगे। देवोत्थान एकादशी के बाद से ही सभी शुभ कार्य, विवाह, उपनयन आदि शुभ मुहूर्त देखकर शुरू किए जाते हैं। इस बार यह एकादशी गुरुवार (12 नवंबर) को पड़ रही है।


धार्मिक मान्यता के अनुसार आषाढ़ शुक्ल एकादशी तिथि को देव शयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन उठते हैं। इसीलिए इसे देवोत्थान या प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।

शास्त्रों अनुसार इस दिन क्षीर सागर में सोये हुए भगवान विष्णु चार माह के बाद जागे थे। इसी कारण उनके शयनकाल के चार मासों में हिंदू समाज में विवाह आदि मांगलिक कार्य करना निषेध माना गया है। भगवान हरि के जागने के बाद ही इस देवोत्थान एकादशी से शुभ कार्य प्रारम्भ हो जाते हैं।

तुलसी विवाह

प्रतिवर्ष देवप्रबोधिनी एकादशी के दिन  भगवान विष्णु की पूजा एवं व्रत रखा जाता है। भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप के साथ तुलसी जी का विवाह रचाने की परंपरा है।

शास्त्रों में कहा गया है कि जिन दम्पतियों के कन्या नहीं होती वे जीवन में एक बार तुलसी विवाह करके कन्यादान का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। इस दिन परिवार के साथ भगवान विष्णु सहित सभी देवी-देवताओं का विधिवत पूजन करने के बाद भगवान विष्णु को जगाना चाहिए। इसके बाद कथा सुननी चाहिए।

तुलसी की सहज उपस्थिति हमारे घर में भागवत ऊर्जा का संचार करती है और सकल परिवेश को अपनी पवित्र प्रेरणा से भर देती है।

यह विवाह एक ऐसी अरण्य-प्रार्थना है, जिसमें धरती के लिए सुख-समृद्धि, भरपूर वर्षा और उन्नत फसल के साथ लोक-मंगल की पवित्र अभीप्सा छिपी हुई है।

देवता जब जागते हैं, तो सबसे पहली प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की ही सुनते हैं, इसीलिए तुलसी विवाह को देव जागरण के पवित्र मुहूर्त के स्वागत का सुंदर उपक्रम माना जाता है। तुलसी विवाह लोकव्यापी वनस्पति चेतना का उच्चतर लोक में आरोहण है।

तुलसी विवाह समग्र वैष्णवी चेतना के द्वारा देखा गया एक महास्वप्न है, जिसमें भगवान स्वयं नीचे उतरते हैं और इस लोक के अणु-अणु को अपने तेज से ओतप्रोत कर देते हैं।

तुलसी विवाह का सीधा अर्थ है, तुलसी के माध्यम से भगवान का आवाहन। तुलसी से की गई सब प्रार्थनाएं भगवान को पहुँचती हैं, इसलिए तुलसी सीधे-सादे, निष्कपट लोगों का कल्पवृक्ष ही है।

हममें भगवान तक पहुँचने की सामर्थ्य नहीं है, तो कुछ चिंता नहीं। धरती पर जब तक तुलसी है, वह नीरव शांति में पूरी संवेदना के साथ हमारे सब दुःख सुनती है और भगवान तक पहुँचाती है। यही तुलसी विवाह है।

बिना तुलसी विष्णुजी की पूजा अधूरी


प्राचीन काल में जालंधर नामक राक्षस ने चारों तरफ बड़ा उत्पात मचा रखा था। वह बड़ा वीर तथा पराक्रमी था। उसकी वीरता का रहस्य था, उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रता धर्म। उसी के प्रभाव से वह सर्वजयी बना हुआ था।

जालंधर के उपद्रवों से परेशान देवगण भगवान विष्णु के पास गए तथा रक्षा की गुहार लगाई। उनकी प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग करने का निश्चय किया।

बाद में वृंदा को भगवान का यह छल-कपट ज्ञात हुआ। उधर,उसका पति जालंधर,जो देवताओं से युद्ध कर रहा था, वृंदा का सतीत्व नष्ट होते ही मारा गया।

जब वृंदा को इस बात का पता लगा तो क्रोधित होकर उसने भगवान विष्णु को शाप दे दिया,‘जिस प्रकार तुमने छल से मुझे पति-वियोग दिया है,उसी प्रकार तुम भी अपनी स्त्री का छलपूर्वक हरण होने पर स्त्री-वियोग सहने के लिए मृत्यु लोक में जन्म लोगे।’

यह कहकर वृंदा अपने पति के शव के साथ सती हो गई। जिस जगह वह सती हुई वहां तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ। एक अन्य प्रसंग के अनुसार, वृंदा ने विष्णु जी को यह शाप दिया था कि तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है।

अतः तुम पत्थर बनोगे। विष्णु बोले, ‘हे वृंदा! यह तुम्हारे सतीत्व का ही फल है कि तुम तुलसी बनकर मेरे साथ रहोगी। जो मनुष्य तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा, वह परम धाम को प्राप्त होगा।’

बिना तुलसीदल के शालिग्राम या विष्णुजी की पूजा अधूरी मानी जाती है। शालिग्राम और तुलसी का विवाह भगवान विष्णु और महालक्ष्मी के विवाह का प्रतीकात्मक विवाह है।

 

समय लाइव डेस्क
नई दिल्ली


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