Siddhidatri mata vrat katha : नवरात्रि के नौवें दिन करें मां सिद्धिदात्री की कथा
हिन्दू धर्म में 9 दिनों तक चलने वाला नवरात्रि का पर्व नवमीं के दिन समाप्त हो जाता है। नवरात्रि के 9 दिनों में भिन्न भिन्न देवियों की पूजा की जाती है।
Siddhidatri mata vrat katha |
Siddhidatri mata vrat katha in hindi : हिन्दू धर्म में 9 दिनों तक चलने वाला नवरात्रि का पर्व नवमीं के दिन समाप्त हो जाता है। नवरात्रि के 9 दिनों में भिन्न भिन्न देवियों की पूजा की जाती है। इसी प्रकार नवरात्रि के अंतिम दिन देवी दुर्गा के नौवें स्वरूप माता सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। 9 दिन तक धारण किए गए व्रत का उद्यापन भी नौवें दिन किया जाता है। माता सिद्धिदात्री की पूजन कथा, भोग इत्यादि करके कन्याओं को अपने घर बुलाकर भोजन करवाया जाता है। माना जाता है कि नवरात्रि के अंतिम दिन कन्याओं को भोजन कराने से माता रानी स्वयं कन्या के रूप में घर में पधारती हैं तथा भक्त का घर सुख समृद्धि से भर जाता है। आज हम आपके लिए माता सिद्धिदात्री की कथा लेकर आए हैं।
Siddhidatri mata ki vrat katha
माता सिद्धिदात्री की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक दिन भगवान शिव माता सिद्धिदात्री की घोर तपस्या कर रहे थे। उनकी तपस्या से माता सिद्धिदात्री प्रसन्न हो गई और उन्होंने भगवान शिव को आठ सिद्धियों की प्राप्ति का वरदान प्रदान कर दिया। इस वरदान के फलस्वरूप भगवान शिव का आधा शरीर देवी के रूप में परिवर्तित हो गया। इसके बाद से भगवान शिव को अर्धनारीश्वर का नाम प्राप्त हुआ। शिवजी का यह रूप संपूर्ण ब्रह्माण्ड में पूजनीय है।
धरती पर अनेकों राक्षसों का जन्म होने लगा था। ऋषि मुनियों तथा सज्जन लोगों का निवाश करना मुश्किल हो रहा था। इसी बीच जब पृथ्वी पर महिषासुर नामक दैत्य के अत्याचारों की अति हो गई थी, तब उस दानव के अंत हेतु सभी देवतागण भगवान शिव तथा विष्णु जी से सहायता लेने पहुंचे। उस दानव के अंत के लिए सभी देवताओं ने तेज उत्पन्न किया जिसके ज़रिए माता सिद्धिदात्री उत्पन्न हुई।
मां सिद्धिदात्री पूजा विधि (Maa Siddhidatri Puja Vidhi)
- शारदीय नवरात्रि की नवमी पर सबसे पहले स्नान करें।
- कमल या गुलाब के फूलों की माला मां को अर्पित करें।
- कन्या भोजन के लिए बनाए प्रसाद चना, हलवा, पूड़ी का प्रसाद चढ़ाएं।
- "ॐ ह्रीं दुर्गाय नमः मंत्र का एक 108 बार जाप करें।
- कन्या पूजन करें और फिर दान-दक्षिणा दें।
- कन्याओं से आशीर्वाद लेकर उन्हें विदा करें।
- अब अपना व्रत खोलें।
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