Rohini vrat katha : 4 अक्टूबर को रखा जाएगा रोहिणी व्रत, जानिए पूजा विधि, कथा और महत्व
4 अक्टूबर को रखा जाएगा रोहिणी व्रत। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, कुल 27 नक्षत्र हैं जिसमें से एक है रोहिणी नक्षत्र।
Rohini vrat katha |
Rohini vrat katha : रोहिणी व्रत एक ऐसा व्रत है जो जैन समाज में बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। रोहिणी व्रत का पालन रोहिणी नक्षत्र के समापन पर मार्गशीष नक्षत्र में किया जाता है। इस व्रत की तिथि हर मास आती है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, कुल 27 नक्षत्र हैं जिसमें से एक है रोहिणी नक्षत्र। रोहिणी नक्षत्र जब सूर्य उदय के साथ प्रबल होता है तभी इस व्रत का पारण किया जाता है। जो भी स्त्री रोहिणी व्रत का पालन करती हैं उनके जीवन में सुख - समृद्धि तथा शांति का आगमन होता है। यश और धन धान्य से जीवन सुखमय हो जाता है। इस साल 4 अक्टूबर 2023 को रोहिणी व्रत रखा जाएगा। तो चलिए यहां पढ़ें रोहिणी व्रत की कथा
रोहिणी व्रत महत्व
रोहिणी व्रत पर परमपूज्य भगवान वासु स्वामी की पूजा-अर्चना की जाती है। भक्त श्रद्धा भाव भगवान वासु स्वामी की भक्ति में लीन होते है। इस दिन जैन मंदिरों में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। जैन धर्म में रोहिणी व्रत विशेष महत्व रखता है। इस दिन किए गए दान को बहुत फलदायी माना जाता है।
रोहिणी व्रत पूजा विधि
इस व्रत को रखने के लिए महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान करें।
इसके बाद भगवान वासुपूज्य की प्रतिमा की पूजा करें।
वासुपूज्य देव की आरधना करके नैवेध्य लगाया जाता हैं।
रोहिणी व्रत का पालन रोहिणी नक्षत्र के दिन से शुरू होता है और अगले नक्षत्र मार्गशीर्ष तक जारी रहता है।
रोहिणी व्रत के दिन गरीबों को दान देने का भी महत्व होता हैं।
रोहिणी व्रत कथा - Rohini vrat ki katha
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीनका में हस्तिनापुर नगर में वस्तुपाल नाम का एक राजा रहता था। उस राजा का धनमित्र नामक एक मित्र था। उसके मित्र धनमित्र की दुर्गंधा कन्या उत्पन्न हुई। धनमित्र को सदैव यह चिंता रहती थी कि उसकी कन्या का विवाह कैसे होगा जिस कारण धनमित्र ने धन का लालच देकर अपने मित्र के पुत्र श्रीषेन से उसका विवाह करवा दिया। परंतु वह दुगंध से परेशान होकर एक ही महीने में दुर्गंधा को छोड़कर चला गया। उसी समय अमृतसेन मुनिराज नगर में पधारे। धनमित्र ने अपनी पुत्री दुर्गंधा के दुखों को दूर करने के लिए अमृतसेन से उपाय पूछा जिस पर उन्होंने एक बात बताई कि गिरनार पर्वत के समीप एक नगर में राजा भूपाल राज्य करते थे। उनकी रानी का नाम सिंधुमती थी। एक दिन राजा रानी के साथ वन में क्रीडा के लिए गए थे तब उसी बीच मार्ग में उन्होंने मुनिराज को देखा। उन्हें देखकर राजा ने रानी से घर जाकर आहार की व्यवस्था करने का आदेश दे दिया।
राजा की आज्ञा के अनुसार रानी चली तो गई लेकिन क्रोधित होकर रानी ने मुनिराज को कड़वी तुम्बी का आहार दे दिया। इससे मुनिराज को अत्यंत परेशानी हो गई और उन्होंने प्राण त्याग दिए। जब इस बात की खबर राजा को मिली तब उन्होंने रानी को नगर से निकाल दिया। इस पाप से रानी के शरीर में कोढ़ उत्पन्न हो गया। जीवन भर दुख भोगने के पश्चात् उस रानी का जन्म अब तुम्हारे घर पुत्री के रूप में हुआ। यह सुनकर मुनिराज ने उन्हें रोहिणी व्रत धारण करने को कहा जिसके बाद दुर्गंधा ने श्रद्धापूर्वक रोहणी व्रत धारण किया। तत्पश्चात् फलस्वरूप उन्हें दुखों से मुक्ति मिली तथा अंत में वह मृत्यृ के बाद स्वर्ग में देवी स्वरूप बन गई।
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