मानवीय चेतना
शिक्षा का मतलब हमारे दिमागों में बस ढेर सारी जानकारियां डाल देना नहीं होना चाहिए पर यह होना चाहिए कि मनुष्य का पूरा विकास हो।
जग्गी वासुदेव |
अभी न तो मनुष्य का विकास हो रहा है, न ही उसके नजरिए या उसकी समझ को बड़ा किया जा रहा है। ज्यादातर शिक्षा बस जानकारी इकट्ठा करने, परीक्षा पास करने और कोई नौकरी पा लेने के लिए ही है। कुछ दशक पहले बहुत से देशों का आर्थिक स्तर ऐसा था कि शिक्षा का मूल उद्देश्य नौकरी पाना ही था, पर अब तो आर्थिक समृद्धि आ गई है तो यह नजरिया बदलना चाहिए। शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ नौकरी पा लेना नहीं है, बल्कि मनुष्य को उन्नत बनाना है।
आजकल हम लोग जिस तरह से जी रहे हैं, उसको जरा समझिए : हर दिन, लगभग 8000 बच्चे कुपोषण की वजह से मर रहे हैं। दुनिया भर में जो 80 करोड़ लोग हर रोज भूखे पेट सोते हैं, उनको खिलाने के लिए हमें हर महीने 97 से 98 करोड़ डॉलर की जरूरत होगी। और, यह वो रकम है जो एक महीने में सारी दुनिया सिर्फ वीडियो गेम खेलने में खर्च कर देती है। सारी दुनिया जितना पैसा भोजन पर खर्च करती है लगभग उतना ही शराब, तम्बाकू और नशीले पदाथरे का खर्चा है। दुनिया में लोग भोजन की कमी से भूखे नहीं हैं। इस वजह से भूखे हैं कि हमारे दिमाग विकृत हो गए हैं और हम गैर-जरूरी चीजें कर रहे हैं।
आज संसाधनों के मामले में हम जितने समृद्ध हैं, उतने पहले कभी नहीं थे। आज हमारे पास इतनी तकनीक हैं, जितनी पहले कभी नहीं थीं। काबिलियत, विज्ञान और ज्ञान के मामले में भी हम पहले के मुकाबले ज्यादा समृद्ध हैं। धरती पर किसी भी समस्या का निदान पाने के लिए आज हमारे पास जरूरी तकनीकें, संसाधन और काबिलियत है। मानवता के इतिहास में हम आज जितने काबिल हैं, उतने पहले कभी नहीं थे। सिर्फ एक ही बात की कमी है और वो है मानवीय चेतना। जरूरी यह है कि हम जागरूक मानवता को निर्मिंत करें। हम जितनी जागरूकता के साथ अभी काम कर रहे हैं, अगर उससे केवल 10% भी ज्यादा जागरूक हो कर काम करें तो कोविड-19 के बाद यह एक अद्भुत दुनिया होगी। और आज हमारी पीढ़ी के पास यह संभावना है-क्या हम ऐसा नहीं करेंगे?
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