आत्म-ज्ञान
अगर तलाश के लिहाज से, अनुभव करने और जानने के लिहाज से बात की जाए, तो आत्मज्ञान से बढ़कर कुछ नहीं है। खोज करने के लिए वाकई कुछ और नहीं है।
![]() सद्गुरु |
लेकिन अगर जीवन जीने के लिहाज से बात की जाए तो उसके अलावा भी बहुत कुछ है। देखिए जीवन के आखिरी पलों में जब आपकी सांसें डूब रही होंगी, उस समय आपको आत्म-ज्ञान कराना मेरे लिए बच्चों का खेल होगा। क्योंकि उन क्षणों में आप बेहद संवेदनशील और ग्रहणशील हो जाते हैं। तब आपको आसानी से बदला जा सकता है। लेकिन अभी मैं आपसे कुछ भी कहता हूं तो कुछ देर बाद आप एक नये तर्क के साथ मेरे पास आ जाते हैं। मैं चाहे आपके साथ कुछ भी करूं, मैं आपको चाहे जैसे अनुभव कराऊं, लेकिन आप दो महीने बाद वापस आ जाएंगे और मुझसे पूछेंगे कि ‘यह क्या है?’ लेकिन फिलहाल हम आपका जीवन नहीं लेना चाहते, इसलिए हम इंतजार कर रहे हैं। हम बस आपके मरने का इंतजार कर रहे हैं। या फिर हम इसका इंतजार कर रहे हैं कि आप अपने सिस्टम पर पूरी महारत हासिल करें, ताकि आप आत्म-ज्ञानी हो जाएं और साथ ही इस शरीर में भी रह सकें।
आत्मज्ञान सरल है, यह परम प्रक्रिया है, लेकिन अपने आप में आसान है। कहा भी गया है-‘आत्मज्ञान अति सुलभम्। आत्म-ज्ञान पाना बहुत आसान है, लेकिन अपने इस शरीर को थामे रखने की तकनीक काफी जटिल है। इसके लिए जबरदस्त समझ, जुड़ाव, प्रज्ञा और साधना की जरूरत होती है। चलिए हम इसे ऐसे समझते हैं। मान लीजिए हमने आपके लिए फरारी का इंतजाम किया। आप पहले से ही कार चलाना जानते हैं, अभी तक आप मारुति कार चला रहे थे।
फरारी में जिस तरह की शक्ति होती है, उसके चलते हो सकता है कि शुरू में यह आपको थोड़ा बहुत नचाए व परेशान करे, लेकिन एक दिन में या फिर कुछ घंटों में आपको फरारी समझ में आने लगती है और तब आप इसे दौड़ाने लगते हैं। लेकिन अब आप चाहते हैं कि हर व्यक्ति के पास एक फरारी हो। अब आप अपने गांव में फरारी बनाना चाहते हैं। इसमें एक बिल्कुल अलग तरह की भागीदारी की जरूरत होगी। तो केवल उस संदर्भ में मैंने कहा कि अगर आपको आत्म-ज्ञान की तलाश है तो आप इंतजार कीजिए।
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