सास-बहू के झगड़े
बहुसंख्यक परिवारों में सास-बहू के झगड़े चल रहे हैं। इसके अनेक कारण है। सास बहू को अपने नियंत्रण में रखकर अनुशासन करना चाहती है।
![]() श्रीराम शर्मा आचार्य |
अपनी आशानुसार उससे कार्य कराना चाहती है। कभी-कभी वह अपने पुत्र को बहका कर बहू की मरम्मत कराती है। प्राय: देखा गया है कि जहां कोई पुरु ष स्त्री को कष्ट देता है, तो उसके मध्य में अवश्य किसी स्त्री-सास, ननद या जिठानी रहती है। स्त्रियों में ईष्र्या भाव अत्यधिक होता है।
बहू का व्यक्तित्व प्राय: लुप्त हो जाता है तथा उसे रौरव नर्क की यंतण्राएं सहन करनी पड़ती हैं। कहीं पर पति बहू के इंगित पर नृत्य करता है और उसके भड़काने से वृद्धा सास पर अत्याचार करता है। वृद्धा से कठिन कार्य कराया जाता है वह धुएं में परिवार के निमित्त भोजन की व्यवस्था करती है जबकि बहू सिनेमा देखने या टहलने के लिए जाती है। ये दोनों ही सीमाएं नियं हैं। सास बहू के सम्बन्ध पवित्र हैं। सास स्वयं बहू को देखने के लिए लालायित रहती है। उसके लिए वह दिन बड़े गौरव का होता है जब घर बहू रानी के पदार्पण से पवित्र होता है। उसे उदार, स्नेही, बड़प्पन से परिपूर्ण होना चाहिए।
बहू की सहायता तथा पथ प्रदर्शन के लिए कार्य करना चाहिए। छोटी-मोटी भूलों को सहृदयता से माफ कर देना चाहिए इसी प्रकार बहू को सास में अपनी माता के दर्शन करने चाहिए और उसकी वही प्रतिष्ठा करनी चाहिए जो वह अपनी माता की करती रही है। यदि पुरु ष माता को माता के स्थान पर पूज्य माने, और पत्नी को पत्नी के स्थान पर जीवन सहचरी, मिष्ठभाषणी प्रियतमा माने तो ऐसे संकुचित झगड़े बहुत कम उत्पन्न होंगे। ऐसे झगड़ों में पुत्र का कर्त्तव्य बड़ा कठिन है। उसे माता की मान-प्रतिष्ठा का ध्यान रखना और पत्नी के गर्व तथा प्रेम की रक्षा करनी है।
एक प्रकार से कहें तो बेटे पर दोहरी जिम्मेदारी होती है। अत: उसे पूर्ण शांति और सुहृदयता से कर्त्तव्य भावना को ऊपर रखकर ऐसे झगड़ों को शांत करना उचित है। किसी को भी अनुचित रीति से दबा कर मानहानि न करनी चाहिए। यदि पति कठोर, नशेबाज, उग्र, लड़ने वाले स्वभाव का है, तो पारिवारिक शांति खुशहाली और समृद्धि भंग हो जाएगी। प्रेम और सहानुभूति से दूसरों के दृष्टिकोण को समझकर बुद्धिमत्ता से अग्रसर होना चाहिए।
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