सत्यार्थी: तंग गलियों से नोबल तक का सफर

PICS: सत्यार्थी को नोबल पुरस्कार मिलते ही विदिशा विश्व पटल पर छाया

अचानक लोगों की भीड़ बढ़ने, पटाखा चलने और मिठाइयां वितरित होने के कारण यह गतिविधियां लोगों के लिए कौतुहल बन गयीं लेकिन जैसे ही उन्हें कैलाश सत्यार्थी की उपलब्धि के बारे में बताया गया तो वे भी गर्वांवित महसूस करने लगे. नगर में रहने वाली कैलाश सत्यार्थी की भाभी रतीदेवी शर्मा की आंखों में भी खुशी के आंसू थे. उन्होंने बताया कि भीख मांगने वाले बच्चों के प्रति वह शुरू से दया का भाव रखते थे. वह उन्हें भोजन कराते और पढ़ने-लिखने के लिए कापी-किताबों की व्यवस्था भी करते.

 
 
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