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- संगम की रेती पर संयम, श्रद्धा और कायाशोधन का ‘कल्पवास’
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प्रयागराज में जब बस्ती नहीं बल्कि आस-पास घोर जंगल था। जंगल में अनेक ऋषि-मुनि जप-तप करते थे। उन लोगों ने ही गृहस्थों को अपने सान्निध्य में ज्ञानार्जन और पुण्यार्जन करने के लिये अल्पकाल के लिए कल्पवास का विधान बनाया था। इस योजना के अनुसार अनेक धार्मिक गृहस्थ ज्ञारह महीने तक अपनी गृहस्थी की व्यवस्था करने के बाद एक महीने के लिए संगम तट पर ऋषियों मुनियों के सान्निध्य में जप तप साधना आदि के द्वारा पुण्यार्जन करते थे। यही परम्परा आज भी कल्पवास के रूप में विद्यमान है।
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