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- गुड्डे-गुड़ियों का गांव
उसके बाद उन्होंने अपने दोस्तों और रिश्तेदारों की याद में डॉल बनाने का सिलसिला शुरू कर दिया. अब सुकीमी इन डॉल्स को बेहद खुशी से सिलती हैं और किसी को अपना ताऊ तो किसी को चाचा कहती हैं. सुकीमी को गांव के बच्चे भी याद हैं जो अब वहां नहीं रहते. उन सबकी याद को अपनी डॉल्स में सहेज कर रखना सुकीमी का सपना बन गया है. इसलिए तो उसके बनाए गए गुड्डे-गुड़िया न सिर्फ बस स्टैंड या गांव के चौराहे पर ही नहीं, बल्कि स्कूल में पढ़ते हुए बच्चों व टीचर के रूप में भी दिखाई देते हैं. इसे 65 साल की सुकीमी की जिद व सनक ही कहा जाएगा कि जिसकी बदौलत वह एक ऐसा गांव बना पाने में सक्षम हुई जिसने पूरी दुनिया के कोने-कोने से लोगों को वहां आने पर मजबूर कर दिया. पहले तो वहां के स्थानीय निवासी ही गांव छोड़कर जा रहे थे, परंतु अब न सिर्फ आस-पास के लोग बल्कि दूर-दूर से भी लोग ‘विलेज ऑफ डॉल्स’ को देखने आते हैं.