अजगरों को मजा आ रहा है नेशनल केवलादेव अभयार
Last Updated 01 Mar 2009 11:45:59 AM IST
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भरतपुर। खुद अपना घर नहीं बनाकर परायों के घरों पर कब्जा कर रहने के आदी अजगरों को इस साल राष्ट्रीय केवलादेव घना अभयारण्य में जमकर आनंद आ रहा है।
मजा आने की वजह भी है। घना में कई साल बाद विदेशी बबूल के सफाये से अजगर परिवार तेज धूप का आनंद उठा रहे है और उनका शरीर नुकीली शूलों की चुभन से भी बच रहा है। वन्य जीव विशेषज्ञों के अनुसार राजस्थान में मौजूदा समय में करीब पांच हजार से अधिक इंडियन राक पायथन प्रजाति के अजगर हैं। इनमें सबसे अधिक करीब एक हजार अकेले राष्ट्रीय केवालादेव घना अभयारण्य में हैं। डब्ल्यू डब्ल्यू एफ संस्था के वरिष्ठ परियोजना अधिकारी सत्य प्रकाश मेहरा और नेचर कलब के मानद सचिव डा सूरज जिद्दी के अनुसार राजस्थान में राष्ट्रीय केवलादेव घना अभ्यारण्य को अजगर की स्वर्ण स्थली कहा जा सकता है। करीब चौदह किलोमीटर परिधि में फैले घना के अधिकांश इलाके में 2007 से पूर्व विदेशी बबूलों ने अजगर का जीना दुभर कर रखा था। बबूलों का सफाया होने के कारण अजगर के परिवार मस्त है। मेहरा के अनुसार घना में इन दिनों अजगर काफी संख्या में आसानी से दिख रहे हैं कुछ साल पहले इसी घना में बमुश्किल एक दो अजगर ही दिखते थे। लेकिन इन दिनों पेडों पर लटके जमीन पर पडे अजगर असानी से देखे जा सकते हैं। अजगर सर्दी के दौरान अपनी खोह (घर) से बाहर निकल कर धूप सेंकते है वर्षा ओर गर्मी में अजगर पूरे समय अपनी खोह में रहने के कारण नजर नहीं आते। मेहरा और डा जिद्दी ने कहा कि विदेशी बबूल का सफाया हो जाने के कारण घना अजगर की वंशवृद्वि के लिए उपयुक्त स्थल बन गया है। उन्होेंने कहा कि घना के बाद राजस्थान के अरावली क्षेत्र तथा दक्षिणी राजस्थान के सांगवाडा धरियावाद इलाकों में भी अजगरों की संख्या अधिक है। मेहरा ने कहा कि अजगर की वंशवृद्वि तथा पर्यटकों को अजगर नजर आये इसके लिए घना प्रशासन को विदेशी बबूल पर नियंत्रण रखना होगा। पानी की उपलब्धता लगातार बनाये रख कर विदेशी बबूल पर अंकुश पाया जा सकता है उन्होंने कहा कि अजगर की वंशवृद्वि प्राकृतिक माहौल में ही संभव है। डा जिद्दी के अनुसार अजगर कभी अपना घर (खोह) नहीं बनाता। वह दूसरों के ही जैसे चूहों उदबिलाव द्वारा खोदे गये खोहों को ही अपनी शरणस्थली बनाता है। राजस्थान में अजगरों की गणना नहीं हुई है लेकिन अनुमान है कि राजस्थान में पांच हजार से अधिक अजगर नहीं हैं। मेहरा और जिद्दी के अनुसार अजगर कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता। हल्की आहट से ही अजगर अपना रास्ता बदल लेता है।
वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि इंडियन वाक पायथन प्रजाति के अजगर को बचाने एवं इसकी वंशवृद्वि पर सरकार के साथ लोगों को भी ध्यान देना होगा। नेचर क्लब के मानद सचिव डा जिद्दी का मानना है कि आम लोगों को मन से यह निकाल देना चाहिए कि अजगर नुकसान पहुंचायेगा। अजगर थोडी सी आवाज पर ही अपना रास्ता बदल लेता है। उन्होंने अपील की कि यदि अजगर नजर आये तो उसे मारे नहीं बल्कि उसे रास्ता दें या वन अधिकारी को सूचित करें जिससे वे उसे पकडकर वन क्षेत्र में ले जाकर छोड़ सके।
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