टीम इंडिया की उपलब्धि पर हिंद को नाज है

Last Updated 24 Oct 2021 02:12:42 AM IST

भारत ने कोरोना के खिलाफ चल रही जंग में नई उपलब्धि हासिल की है। बीते गुरुवार को भारत ने महामारी से बचाव के लिए टीके की 100 करोड़ डोज का आंकड़ा पार कर लिया।


टीम इंडिया की उपलब्धि पर हिंद को नाज है

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस उपलब्धि को ऐतिहासिक, असाधारण और अतुलनीय जैसे विशेषणों से सुशोभित करते हुए बड़ी ही विनम्रता से इसका श्रेय ‘टीम इंडिया’ को दिया है। क्रिकेट के खेल में एक मशहूर कहावत है ‘अ कैप्टन इज एज गुड एज टीम’ यानी कप्तान उतना ही बेहतर हो सकता है, जितनी उसकी टीम। इसे यूं भी समझा जा सकता है कि अगर टीम के खिलाड़ी क्षमतावान हैं, तो कप्तान में भी इस क्षमता को पहचानने और सही समय पर सही जगह में उसके इस्तेमाल करने की सलाहियत होनी चाहिए वरना एक अच्छी टीम भी चुनौती से सामना होने पर ढेर हो जाती है।

इस पैमाने पर देश के सामर्थ्य को दिखाने वाली इस सफलता का बड़ा श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी जाता है, जिन्होंने चुनौतियों के हिसाब से संसाधनों का दूरदर्शी उपयोग किया और असंभव के खिलाफ 140 करोड़ लोगों के विश्वास की मजबूत नींव पर जनभागीदारी और देश के सामथ्र्य की ऐसी भव्य इमारत खड़ी कर दी, जिसे देख कर आज दुनिया भी हैरान है। यह सब इसलिए संभव हो सका क्योंकि प्रधानमंत्री ने देश को अपना परिवार माना, कोरोना जैसी महामारी के दौर में भी देश के लोगों से जुड़े रहे और सभी को सुरक्षा कवच देने का जो बीड़ा उठाया उसे कर के भी दिखाया। जब-जब संकट गहराया, सामने आकर प्रधानमंत्री ने देश का हौसला बढ़ाया, लेकिन यह सब आसान बिल्कुल नहीं था। जब शुरु आत हुई तो सफलताएं कम और बाधाएं ज्यादा थीं। अचानक आई आपदा के बीच कच्चे माल की कमी थी और सप्लाई चेन व्यवस्थित नहीं थी। कोविड की दूसरी लहर के दौरान सरकार पर प्रबंधन को लेकर भी सवाल उठे। राज्यों की स्वास्थ्य सेवाएं महामारी से मुकाबले के लिए अपर्याप्त थीं, अस्पतालों में ऑक्सीजन और बाजार में दवाइयों की किल्लत थी। इस मुश्किल घड़ी में देश को एकजुट रखने के लिए ताली-थाली और दीये जलाने के महाअभियान पर देश में ही तरह-तरह के ताने कसे गए। बार-बार ‘मेक इन इंडिया’ का हवाला देकर वैक्सीन की कमी पर सरकार और खासकर प्रधानमंत्री को निशाने पर लिया गया। राज्यों में भी ग्लोबल टेंडर जैसी निर्थक बहस को लेकर आपसी प्रतिस्पर्धा कम नहीं थी। एक तरह से पूरा वैक्सीन अभियान बिखरता दिख रहा था। ऐसी मुश्किल घड़ी में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कमान अपने हाथ में लेकर पूरे देश को मुफ्त वैक्सीन देने की चुनौती स्वीकारी और धीरे-धीरे सभी चीजें व्यवस्थित होने लगीं। लोगों में वैक्सीन और खासकर स्वदेशी टीके को लेकर झिझक को भी उन्होंने खुद आगे आकर दूर किया।

दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीनेशन अभियान इसलिए भी सफल रहा क्योंकि यह प्रधानमंत्री के दिए समानता के मंत्र पर आगे बढ़ा। शुरुआत से ही यह सुनिश्चित किया गया कि जिस तरह वैक्सीन कोई भेदभाव नहीं करती है, उसी तरह वैक्सीनेशन अभियान में भी कोई भेदभाव न करते हुए वीआईपी कल्चर को हावी न होने दिया जाए। इसके लिए प्रधानमंत्री ने मिसाल कायम करते हुए खुद अस्पताल जाकर वैक्सीन लगवाई। वैक्सीनेशन अभियान को देश का अभियान बनाने के लिए जरूरी था कि इसे राजनीतिक भेदभाव से मुक्त रखा जाए और प्रधानमंत्री इस फ्रंट पर भी खरे उतरे। वो राज्य चाहे बीजेपी शासित रहे हों या फिर दूसरी पार्टी की सरकार वाले, प्रधानमंत्री मोदी ने खुद पहल कर सभी राज्यों में टीकाकरण अभियान को सफल बनाने में एड़ी चोटी का जोर लगाया और राज्यों की सफलता का यथोचित गुणगान भी किया। केरल और महाराष्ट्र इसके बड़े प्रमाण रहे। प्रधानमंत्री के नेतृत्व में टीम इंडिया की इस संयुक्त लड़ाई का नतीजा यह निकला है कि भारत आज महामारी के प्रबंधन में बड़ी-बड़ी डींगें हांकने वाले विकसित देशों से बहुत आगे ही नहीं निकल गया है, बल्कि इन देशों को अब राह भी दिखा रहा है। संख्या के आधार पर 100 करोड़ टीकों का मतलब भारत की सफलता अमेरिका से दो गुना, जापान से पांच गुना, जर्मनी से नौ गुना और फ्रांस से 10 गुना ज्यादा है।

अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में कुल मिलाकर जितने टीके लगे हैं, उससे ज्यादा अकेले भारत में लग चुके हैं और यह सब केवल इसलिए नहीं हुआ है कि हमारी आबादी इन देशों से ज्यादा है, बल्कि इसलिए भी संभव हुआ है क्योंकि टीके लगाने की हमारी रफ्तार भी इन देशों से बेहतर है। इस साल 16 जनवरी को देश में कोरोना वैक्सीन का पहला टीका लगा और 281 दिन बाद 21 अक्टूबर को 100 करोड़वां टीका लगा यानी भारत ने औसतन हर दिन 35 लाख टीके लगाए। इसकी तुलना में अमेरिका का दैनिक औसत 14.50 लाख, ब्राजील का 11.30 लाख, रूस का 4.50 लाख और ब्रिटेन का 3.40 लाख है। वैक्सीनेशन के मोच्रे पर आए सकारात्मक नतीजों की डोज मिलने से देश की अर्थव्यवस्था भी उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन करने की राह पर चल पड़ी है। एनएसओ ने इस हफ्ते जो आंकड़े जारी किए हैं, उनके हिसाब से मौजूदा वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था 20.1 फीसद की रफ्तार से बढ़ी है, जबकि चीन में यह आंकड़ा 7.9 फीसद रहा है, जो हमारे मुकाबले दोगुना से भी कम है। प्रधानमंत्री की अगुवाई में पिछले सात साल में सरकार ने कई रणनीतिक सुधार किए हैं। कोरोना काल के 18-19 महीनों में भी देश में केवल महामारी का प्रबंधन नहीं हुआ है, बल्कि विभिन्न सुधारों की मदद से स्वास्थ्य, वित्तीय क्षेत्र और जीडीपी पर इसके नकारात्मक असर को सीमित करने की दिशा में बड़े कदम उठाए गए। इन समेकित प्रयासों से उम्मीद यह की जा रही है कि टीकाकरण की ही तरह भारत आने वाले दिनों में अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में भी सबसे तेज ग्रोथ का परचम लहरा सकता है।

इसलिए बात टीकाकरण की हो या फिर अर्थव्यवस्था की, हमारी सफलता दुनिया को भी प्रेरित कर रही है, लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना है कि कोरोना के खिलाफ जंग अभी खत्म नहीं हुई है। बेशक, देश की बड़ी आबादी को टीके की सुरक्षा मिल गई है, संक्रमण के मामले भी लगातार कम हो रहे हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि कोरोना पूरी तरह देश से चला गया है। जिस संयम और अनुशासन से देश यहां तक पहुंचा है, उसकी अब और भी ज्यादा जरूरत है। टीकाकरण को लेकर उठे हर सवाल का जवाब देने के बाद अब देशवासियों की जिम्मेदारी बनती है कि महामारी के खिलाफ देश के सामथ्र्य पर किसी नये सवाल को सिर उठाने का मौका ही न दिया जाए। 100 करोड़ डोज की सफलता का इससे बेहतर उत्सव भला और क्या हो सकता है?

उपेन्द्र राय


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