समृद्धि और सुरक्षा के रास्ते
समय में जब दुनिया बहुत संवेदनशील दौर से गुजर रही है, हमें विश्व स्तर पर अमन-शांति के प्रयासों में भरपूर सहयोग देना चाहिए, पर साथ में अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करना भी बहुत जरूरी है, और इसके लिए हमें बहुत सावधानी से अपनी राह बनानी होगी।
भारत डोगरा : समृद्धि और सुरक्षा के रास्ते |
यह एक बहुपक्षीय चुनौती है पर फिर भी यदि संक्षेप में कहें तो ये चार राहें हमारे देश को सुरक्षा और समृद्धि की राह पर ले जाती हैं।
पहली राह तो यह है कि राष्ट्रीय एकता को बहुत उच्च प्राथमिकता दी जाए और धर्म, जाति, क्षेत्र, रंग, लिंग आदि हर तरह के भेदभाव को समाप्त किया जाए और सभी लोगों को भारतीय नागरिक के रूप में एक से अधिकार, सम्मान और गरिमा प्राप्त हों। यह सरकारी नीति के लिए और लोगों के व्यवहार,दोनों के लिए जरूरी है कि किसी को सामाजिक विषमता, भेदभाव या अनुचित व्यवहार का अहसास न हो। जिन्होंने ऐतिहासिक स्तर पर बहुत विषमता सही है, उनके लिए संवैधानिक स्तर पर जो विशेष लाभ दिए गए वे इस समता के उद्देश्य के अनुकूल हैं, संविधान-सम्मत हैं, और उन्हें भी सम्मान मिलना चाहिए। दूसरी राह यह है कि विभिन्न राजनीतिक दलों और अन्य राजनीतिक-सामाजिक ताकतों में टकराव सीमा से आगे न बढ़े और आपसी मतभेदों के भिन्न विचारों के बावजूद वे बड़े राष्ट्रीय हितों पर एक-दूसरे से सहयोग ही करते रहें। इसके लिए जरूरी है कि एक-दूसरे के विरुद्ध अपमानजनक भाषा या अतिश्योक्तिपूर्ण आलोचना से बचा जाए। लोकतंत्र में तो यह निश्चित है कि विभिन्न राजनीतिक दल और अन्य राजनीतिक-सामाजिक संगठन अपने-अपने विचारों के साथ आगे बढ़ें और एक-दूसरे के विचारों की आलोचना करें। लोकतंत्र का एक बड़ा आधार ही यह है कि ऐसे मतभेद हिंसा और नफरत का रूप न लें और लोकतांत्रिक तौर-तरीकों के आधार पर इन विभिन्न विचारों के बीच बेहतर राह निकाल कर देश आगे बढ़ सके।
आज लोकतंत्र में यह भूमिका कई जगह संकटग्रस्त हो रही है। अपने को लोकतंत्र का शिखर मानने वाले पश्चिमी देशों के लोकतंत्र पर भी सवाल उठ रहे हैं। दूसरी ओर, कुछ छोटे-बड़े अन्य देशों में मनभेदों और महत्त्वाकांक्षाओं का टकराव अनियंत्रित हो जाने के कारण गृह युद्ध हो चुके हैं, या हो रहे हैं, जिनमें लाखों निदरेष लोग मारे गए हैं। हम अपने आस-पड़ोस में ही देखें-बांग्लादेश और पाकिस्तान, श्रीलंका और नेपाल-तो स्थिति चिंताजनक ही नजर आएगी। अत: आवश्यक है कि इन अनुभवों से सबक लेते हुए देश के विभिन्न विचारों वाले राजनीतिक दलों और अन्य संगठनों की कुछ ऐसी व्यवस्था बनाएं जिससे उनके आपसी टकराव अनुशासन और शालीनता की सीमा में रहें और अनुचित या अवैध तौर-तरीकों का उपयोग एक-दूसरे के विरुद्ध न किया जाए। तीसरा मुद्दा, जो इससे जुड़ा हुआ है, यह है कि हमें आपसी एकता से तय कर लेना है कि हम विदेशी ताकतों के हाथों में नहीं खेलेंगे। विश्व के जिन देशों में हाल के दशकों में सर्वाधिक विनाश हुआ है, जैसे इराक, अफगानिस्तान, सीरिया, लेबनान, लीबिया, सुडान और सोमालिया आदि, में इस विनाश में सबसे शक्तिशाली विदेशी ताकतों की बड़ी भूमिका रही है। अनेक अन्य छोटे-बड़े देशों में भी इन सबसे शक्तिशाली देशों ने तरह-तरह से अनिश्चय लाने की नीतियां अपनाई, उन्हें कमजोर करने और वहां ऐसे तत्वों को आगे बढ़ाने की कोशिश की जो इन शक्तिशाली देशों का साथ दे सकते हों। इन देशों में यदि ऐसी सरकारें हैं जो बड़ी शक्तियों की मनमानी में बाधा हैं तो इन सरकारों को कमजोर या अस्थिर करने या हटाने तक के प्रयास इन सबसे शक्तिशाली देशों ने किए। अत: इस बारे में हमारे देश में व्यापक एकता बननी चाहिए कि जहां तक बाहरी ताकतों के नापाक इरादों और साजिशों का सवाल है, तो उनका सामना हम एकता से करेंगे। यह देशभक्ति की ऐसी राह है, जिसे हमें कभी नहीं छोड़ना है।
चौथी राह यह है कि हमें देश और दुनिया के मूल सिद्धांतों के रूप में अमन-शांति, न्याय और समता, पर्यावरण की रक्षा और सभी जीवों के प्रति करुणा को स्वीकार कर लेना चाहिए। हां, विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों के लिए इन सिद्धांतों की व्याख्या अलग हो सकती है और सभी के अपने रीति-रिवाजों और लोकतांत्रिक अधिकारों का तो सम्मान करना ही पड़ेगा। अपने-अपने विचारों और सोच के आधार पर भी विभिन्न व्यक्ति और संगठन इन सिद्धांतों को अलग ढंग से परिभाषित करेंगे और फिर लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के चलते जो तय होगा उस पर ही देश चलेगा और साथ में लोकतांत्रिक बहस भी चलती रहेगी। इन चार रास्तों पर भली-भांति धैर्य, समझदारी और दृढ़ निश्चय और साहस से चला जाए तो ये चारों रास्ते एक ऐसे चौराहे पर मिलते हैं जिसका नाम है देश की स्थाई सुरक्षा और समृद्धि। बढ़ता सैन्य खर्च भी देश को वह सुरक्षा नहीं दे सकता जो ये चार रास्ते दे सकते हैं, बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का निवेश भी वह समृद्धि नहीं दे सकता जो ये चार रास्ते दे सकते हैं। इस तरह की सोच को लोगों के बीच विशेषकर युवाओं के बीच ले जाना बहुत जरूरी है क्योंकि वे ही तो देश का भविष्य हैं। युवाओं के लिए इसी सोच से जुड़ा यह संदेश है कि इस समय सार्थक और जरूरी बदलाव के लिए सबसे जरूरी कार्य है न्याय, अमन-शांति और पर्यावरण रक्षा पर आधारित एक ऐसा एजेंडा लोगों के बीच ले जाना है, जिसके विभिन्न लक्ष्य एक दूसरे से मेल रखते हों। इसके लिए लोकतंत्र और लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं बहुत जरूरी हैं, पारदर्शिता बहुत जरूरी है, खुला विमर्श बहुत जरूरी है। अत: सार्थक सामाजिक बदलाव की राह पर अग्रसर युवाओं को अहिंसा और पारदर्शिता की राह को ही चुनना चाहिए। देश ही नहीं, दुनिया के स्तर पर भी मौजूदा दौर में अहिंसक क्रांति का अर्थ है अधिसंख्य लोगों को समय रहते अमन-शांति, न्याय और पर्यावरण रक्षा के एजेंडे के लिए तैयार करना। यह कठिन चुनौती है, जिसके लिए बहुत मेहनत से, समझदारी से, निरंतरता से कार्य करने की जरूरत है।
इसी तरह गृह युद्ध, अलगाववादी हिंसा, सांप्रदायिकता, धार्मिक कट्टरता और उन्माद से जुड़ी हिंसा, धार्मिक कट्रता से जुड़े अलगाववाद को भी नकारना और विभिन्न समस्याओं के लोकतांत्रिक समाधानों को प्रतिष्ठित करना जरूरी है। समता और न्याय का मूल उद्देश्य सदा महत्त्वपूर्ण रहा है, और नई गंभीर समस्याओं के आने के बावजूद यह उद्देश्य आज भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। समानता और न्याय का अर्थ आर्थिक समानता और न्याय से ही नहीं है अपितु जाति, धर्म, नस्ल, रंग और लिंग आधारित सब तरह के भेदभाव को दूर करना व्यापक सामाजिक समता को प्रतिष्ठित करना भी उतना ही जरूरी है।
विभिन्न देशों की आंतरिक समानता के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों की समानता भी बहुत जरूरी है ताकि साम्राज्यवादी सोच, इस पर आधारित प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष शोषण और अन्याय तथा इससे जुड़ी हिंसा और युद्ध की आशंकाओं पर सदा के लिए रोक लग सके। अत: साम्राज्यवादी ताकतों के हाथ में खेलना या उनसे मिल कर अपने हित साधना बहुत अनुचित है क्योंकि जरूरत तो साम्राज्यवाद का सामना कर इसके प्रतिकूल असर को हटाने या न्यूनतम करने की है। अपने और भावी पीढ़ियों के भविष्य को भयानक पर्यावरणीय विनाश और महाविनाशक हथियारों की क्षति से बचाने के लिए सभी को एकता से अमन-शांति, पर्यावरण रक्षा, समता और न्याय के एजेडे को लेकर तेजी से और हिम्मत से आगे बढ़ना चाहिए।
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