नव वर्ष : सरल कर व्यवस्था जरूरी
निश्चित रूप से देश के छोटे-बड़े सभी करदाता वर्ष 2025 में सरल कर व्यवस्था की अपेक्षा कर रहे हैं। यद्यपि सरकार सरल कर व्यवस्था के लिए एक के बाद एक लगातार कदम आगे बढ़ा रही है, लेकिन नये वर्ष में अभी और अधिक सरल कर व्यवस्था जरूरी दिखाई दे रही है।
नव वर्ष : सरल कर व्यवस्था जरूरी |
पिछली 21 दिसम्बर को जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) काउंसिल की जैसलमेर में हुई 55वीं बैठक में जीएसटी के सरलीकरण और राहत संबंधी कई महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए गए। खास तौर से छोटे कर्जदारों को राहत देते हुए कहा गया है कि ऋण शतरे का पालन नहीं करने पर ऋणदाताओं द्वारा जो जुर्माना लगाया जाएगा, उस पर कोई जीएसटी नहीं लगेगा। खास किस्म के फोर्टफिाइड चावल पर जीएसटी कम किया गया है। कैंसर की जीन थेरेपी को कर-मुक्त किया गया है। इस्तेमालशुदा यानी पुराने वाहनों की बिक्री पर कर दर 18 फीसद कर दी गई है।
उल्लेखनीय है कि इसी वर्ष अगस्त, 2024 में आयकर अधिनियम को सरल बनाने के लिए मुख्य आयकर आयुक्त वी. के. गुप्ता की अध्यक्षता में गठित समिति कर रियायतों को तर्कसंगत बनाने, कर गणना के तरीके का स्तर बढ़ा कर इसे विस्तरीय बनाने और अपील करने की व्यवस्था में जटिलता कम करने संबंधी सुधारों पर तेजी से काम कर रही है।
समिति कर विशेषज्ञों और विभिन्न निकायों से प्राप्त सिफारिशों की समीक्षा कर रही है। ज्ञातव्य है कि आयकर अधिनियम, 1961 की करीब 90 धाराएं अपनी प्रासंगिकता खो चुकी हैं। ये धाराएं विशेष आर्थिक क्षेत्र, दूरसंचार, पूंजीगत लाभ सहित कर छूट एवं कटौती जैसे मामलों में कारगर नहीं रह गई हैं। मौजूदा स्रेत पर कर कटौती (टीडीएस), स्रेत पर कर संग्रह (टीसीएस) व्यवस्था को सरल करने, सीमा शुल्क कानून की तरह ही यह समिति दरों की व्यापक अनुसूची बनाने पर आगे बढ़ रही है। इससे कानूनी जटिलताएं और मुकदमेबाजी में काफी कमी आएगी तथा कर कटौती प्रक्रिया अधिक सरल और पारदर्शी होगी। उम्मीद है कि गुप्ता समिति की रिपोर्ट शीघ्र प्रस्तुत होगी और इसके आधार पर विधि मंत्रालय की मदद से नये आयकर विधेयक का मसौदा तैयार किया जाएगा। निश्चित रूप से पिछले एक दशक में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों में तेज सुधारों का सिलसिला लगातार बढ़ा है, और इससे देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली है।
पिछले एक दशक से आयकर कानून में जो अहम सुधार किए गए हैं, उससे जहां आयकरदाताओं को सुविधा मिली है, वहीं आयकरदाताओं की संख्या बढ़ाने में भी मदद मिली है। वर्ष 2023-24 में व्यक्तिगत आयकर संग्रह लगभग चार गुना बढ़ कर 10.45 लाख करोड़ रु पये का रहा। यह भी कोई छोटी बात नहीं है कि आयकर वर्ष 2023-24 में 8.09 करोड़ से ज्यादा रिकॉर्ड आयकर रिटर्न दाखिल किए गए। साथ ही, मौजूदा वित्त वर्ष 2024-25 में पिछले वर्ष से अधिक आयकर रिटर्न और अधिक आयकर प्राप्ति का परिदृश्य उभरता दिखाई दे रहा है। जिस तरह देश में आयकर संबंधी सुधारों से आयकरदाताओं की संख्या और आयकर राशि में तेजी से इजाफा हुआ है, उसी तरह देश में अप्रत्यक्ष करों में भी सुधार हुआ है। ऐतिहासिक सुधार कहा जाने वाला वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) 1 जुलाई, 2017 से लागू हुआ है। पिछले वित्त वर्ष 2023-24 के लिए जीएसटी का संग्रहण 20.18 लाख करोड़ रु पये पहुंच गया, जो पूर्ववर्ती साल के मुकाबले 11.7 फीसद वृद्धि दिखाता है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में अप्रैल से नवम्बर, 2024 के बीच जीएसटी संग्रह पिछले वर्ष की इस अवधि के मुकाबले 9 फीसद बढ़ कर 14.56 लाख करोड़ हो गया है।
इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि दुनिया की तेज बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था के तहत बढ़ते उद्योग-कारोबार, सर्विस सेक्टर, शेयर बाजार और मध्यम वर्ग की क्रयशक्ति की नई ऊंचाइयों के कारण देश में टैक्स संग्रहण में तेज वृद्धि हो रही है। वस्तुत: कर संग्रह में तेज वृद्धि से बुनियादी ढांचे, सामाजिक सेवाओं और जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए सरकार की क्षमता बढ़ रही है। सरकार की मुट्ठी में बढ़ता कर राजस्व न केवल अर्थव्यवस्था के नवनिर्माण में मदद कर रहा है, बल्कि सरकार को अपने करदाताओं के प्रति जवाबदेह भी बना रहा है। चूंकि देश ने 2047 में विकसित भारत का लक्ष्य रखा है, उस दिशा में आगे बढ़ने के लिए कर सुधारों के साथ कर संग्रह में लगातार इजाफा जरूरी होगा और तकनीक के ज्यादा इस्तेमाल से कर संग्रह में वृद्धि तेज की जानी होगी।
ऐसे में उपयुक्त होगा कि आयकर अधिनियम को सरल बनाने के लिए गठित गुप्ता समिति शीघ्रतापूर्वक अपनी रिपोर्ट पूर्ण करते हुए इस बात पर ध्यान दे कि प्रति व्यक्ति आय के लिए छूट की सीमा को कम करने के मद्देनजर छूट के स्तर को निकट भविष्य में अपरिवर्तित रखा जाए। समिति को ध्यान देना होगा कि करदाताओं की संख्या में इजाफा कर व्यवस्था को अधिक निष्पक्ष बनाया जाए ताकि इससे कर भुगतान को लेकर दृष्टिकोण को सही दिशा में बढ़ावा मिल सके। इसी प्रकार जीएसटी की जटिलताएं कम करके इसे अधिक सरल और कारगर बनाना होगा। नई टेक्नोलॉजी के उपयोग से जीएसटी अनुपालन जितना अधिक कारगर होगा, उतना ही अधिक जीएसटी संग्रह बढ़ाया जा सकेगा।
इसके अलावा, जीएसटी चोरी के खिलाफ सरकार द्वारा प्रभावी अभियान चलाया जाना होगा क्योंकि कई कारोबारी फर्जी बिल के इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ उठा रहे हैं। टैक्स चोरी रोकने के लिए प्रशासनिक स्तर पर भी प्रभावी बदलाव किए जाने होंगे। जीएसटी दरों को कम करने के साथ जीएसटी स्लैब को तर्कसंगत बनाना होगा। समय आ गया है कि जीवन और स्वास्थ्य बीमा की खरीदारी पर लगने वाले 18 फीसद जीएसटी में राहत सुनिश्चित की जाए। क्विक कॉमर्स कंपनियों पर जीएसटी को लेकर निर्णय लिया जाए। पेट्रोलियम उत्पादों और जमीन एवं रियल एस्टेट को भी जीएसटी के दायरे में लाया जाए। निस्संदेह ऐसे प्रयासों से सरकार को आयकर और जीएसटी की अधिक प्राप्ति हो सकेगी। देश की जीडीपी में कर राजस्व का योगदान बढ़ेगा और सरकार विकसित भारत के लिए अधिक रणनीतिपूर्वक आगे बढ़ते हुए दिखाई दे सकेगी।
(लेख में विचार निजी हैं)
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