सुस्त विकास और महंगाई : संतुलन बनाए रखना चुनौती

Last Updated 19 Dec 2024 01:41:11 PM IST

हाल में 12 दिसम्बर को सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, भारत की उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति दर बीते महीने नवम्बर में 5.48 प्रतिशत रही। इससे पहले अक्टूबर में खुदरा महंगाई दर 6.21 प्रतिशत थी।


सुस्त विकास और महंगाई : संतुलन बनाए रखना चुनौती

इसी प्रकार नवम्बर में थोक मूल्य मुद्रास्फीति घट कर 1.89 प्रतिशत पर आ गई जो अक्टूबर में 2.36 प्रतिशत थी। यद्यपि महंगाई दर में कमी आई है, फिर भी अभी यह भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के महंगाई के निर्धारित दायरे से अधिक है।

गौरतलब है कि 11 दिसम्बर को आरबीआई के नवनियुक्त 26वें गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा कि वे महंगाई नियंत्रण और विकास दर के बीच उपयुक्त संतुलन बनाने की डगर पर आगे बढ़ेंगे। अर्थव्यवस्था के लिए सर्वोत्तम काम करने की कोशिश भी करेंगे। गौरतलब है कि इस समय देश में धीमी विकास दर और महंगाई की चुनौती का परिदृश्य उभरता दिखाई दे रहा है। बीते दिनों राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2024-25 की दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 5.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि इसके पहले अप्रैल-जून की पहली तिमाही में 6.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। इस सुस्त विकास दर के परिदृश्य से प्रभावित हुए बिना हाल में 6 दिसम्बर को आरबीआई ने मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक में विकास दर बढ़ाने के लिए ब्याज दर में कमी नहीं करते हुए महंगाई नियंत्रण को प्राथमिकता दी है।

उल्लेखनीय है कि आरबीआई ने लगातार 11वीं बार ब्याज दर यानी नीतिगत दर (रेपो) में कोई बदलाव नहीं किया और इसे 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रखा। रेपो वह ब्याज दर है, जिस पर कमर्शियल बैंक अपनी तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लिए केंद्रीय बैंक यानी आरबीआई से कर्ज लेते हैं। आरबीआई मुद्रास्फीति को काबू में रखने के लिए इस दर का उपयोग करता है। हालांकि अर्थव्यवस्था में नकदी बढ़ाने के मकसद से आरबीआई ने कैश रिजर्व रेश्यो (सीआरआर) को 4.5 प्रतिशत से घटा कर चार प्रतिशत कर दिया। इस कदम से बैंकों में 1.16 लाख करोड़ रु पये की अतिरिक्त नकदी उपलब्ध होगी। इससे बैंकिंग क्षेत्र में नकदी की स्थिति में सुधार होगा। ज्ञातव्य है कि सीआरआर के तहत कमर्शियल बैंकों को अपनी जमा का एक निर्धारित हिस्सा कैश रिजर्व के रूप में आरबीआई के पास रखना होता है।  यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि आरबीआई की मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक में आरबीआई ने मौजूदा स्थिति को देखते हुए चालू वित्त वर्ष के लिए जीडीपी ग्रोथ के अनुमान को 7.2 प्रतिशत से घटा कर 6.6 प्रतिशत कर दिया है। आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष में खुदरा महंगाई के अनुमान को भी 4.5 प्रतिशत बढ़ा कर 4.8 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है।

आरबीआई के पूर्व गवर्नर शक्तिकांत दास ने दिसम्बर, 2024 की मौद्रिक नीति के निर्णय के परिप्रेक्ष्य में कहा था कि निकट भविष्य में, कुछ नरमी के बावजूद, खाद्य कीमतों पर दबाव बने रहने से चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में मुख्य महंगाई के ऊंचे स्तर पर बने रहने की संभावना है। उन्होंने कहा था कि महंगाई के मद्देनजर वैश्विक अर्थव्यवस्था में अभी बॉन्ड प्रतिफल में वृद्धि, जिंस कीमतों में उतार-चढ़ाव और बढ़ते भू-राजनीतिक जोखिम जैसी कई तरह की बाधाएं हैं। आयात शुल्क में वृद्धि और वैश्विक कीमतों में वृद्धि के बाद घरेलू खाद्य तेल की कीमतों की बदलती दिशा पर भी बारीकी से नजर रखने की जरूरत है।

दास ने कहा था कि रिकॉर्ड खरीफ उत्पादन के अनुमान से चावल और तुअर दाल की बढ़ी हुई कीमतों में राहत मिलेगी। सब्जियों की कीमतों में भी सुधार की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि आगे चल कर, खाद्य मुद्रास्फीति के दबाव को कम करने के लिए एक अच्छा रबी सीजन महत्त्वपूर्ण होगा। प्रारंभिक संकेत पर्याप्त मिट्टी की नमी और जलाशय के स्तर की ओर इशारा करते हैं, जो रबी की बुवाई के लिए अनुकूल हैं। ऐसे में चालू वित्त वर्ष 2024-25 की चौथी तिमाही में विकास दर बढ़ने की उम्मीद है। निस्संदेह आरबीआई द्वारा मौद्रिक नीति समीक्षा के तहत महंगाई नियंत्रण को सर्वोच्च प्राथमिकता दिया जाना सही कदम है। वस्तुत: पिछले दो महीनों अक्टूबर-नवम्बर, 2024 में महंगाई दर के बढ़ने की स्थिति आश्चर्यचकित करने वाली रही है।

पिछले माह आरबीआई ने 2-11 नवम्बर, 2024 में परिवारों को महंगाई को लेकर कैसी उम्मीदें हैं, इस विषय पर सर्वेक्षण कराया था। आरबीआई के सर्वेक्षण से अंदाजा मिलता है कि सितम्बर, 2024 के चरण की तुलना में नवम्बर के सर्वेक्षण में शामिल प्रतिभागियों में एक बड़े वर्ग को लगता है कि नये साल 2025 में कीमतें और महंगाई, दोनों ही बढ़ेंगी। यह बढ़ोतरी मुख्य तौर पर खाद्य वस्तुओं और घर से जुड़े खचरे के बढ़ते दबाव की वजह से होगी। इस बीच, उपभोक्ता आत्मविश्वास सर्वेक्षण से अंदाजा मिला है कि सर्वेक्षण के प्रतिभागियों की मौजूदा कमाई की धारणा में भले ही कमी आई हो लेकिन उन्हें इस बात की उम्मीद है कि भविष्य में आमदनी बढ़ेगी, रोजगार की स्थिति में भी सुधार आएगा। निस्संदेह खाद्य पदाथरे की महंगाई रोकने के लिए सरकार द्वारा तात्कालिक उपायों के साथ दीर्घकालीन उपायों पर भी ध्यान दिया जाना जरूरी होगा।

इस समय ग्रामीण भारत में जल्द खराब होने वाले ऐसे कृषि उत्पादों की आपूर्ति श्रृंखला बेहतर करने पर प्राथमिकता से काम करना होगा, जिनकी खाद्य महंगाई के उतार-चढ़ाव में ज्यादा भूमिका होती है। ऐसे में सरकार को खाद्य उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ कृषि उपज की बर्बादी रोकने के बहुआयामी प्रयासों के तहत खाद्य भंडारण और वेयरहाउसिंग की कारगर व्यवस्था की डगर पर बढ़ना होगा। उम्मीद करें कि आरबीआई के नये गवर्नर संजय मल्होत्रा सरकार के साथ आरबीआई के विभिन्न समन्वित रणनीतिक प्रयासों से महंगाई को नियंत्रित करने और सुस्त विकास दर को बढ़ाने के परिप्रेक्ष्य में नई रणनीति के साथ आगे बढ़ेंगे। इससे आरबीआई के लक्ष्य के मुताबिक, खुदरा महंगाई दर चालू वित्त वर्ष 2024-25 में 4.5 प्रतिशत तथा आगामी वित्त वर्ष 2025-26 में चार प्रतिशत के दायरे में रहते हुए दिखाई दे सकेगी।
(लेख में विचार निजी हैं)

डॉ. जयंतीलाल भंडारी


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