शतरंज : आनंद के कद पर पहुंचे गुकेश
दुनिया को सबसे कम उम्र वाला विश्व शतरंज चैंपियन मिल गया है। यह उपलब्धि पाने वाले हैं भारत के 18 वर्षीय ग्रैंडमास्टर डोम्माराजू गुकेश। यह भी संयोग ही है कि इस 18 वर्षीय खिलाड़ी ने 18वां विश्व खिताब जीता है। वह चीन के डिंग लिरेन को 7.5-6.5 अंकों से हराकर चैंपियन बने हैं।
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विश्व चैंपियनशिप की ट्रॉफी करीब 11 साल बाद भारत आई है। भारत के पहले विश्व चैंपियन विनाथन आनंद को 2013 में कार्लसन से हारने पर ट्रॉफी देश से चली गई थी। गुकेश ने 2013 में सात साल की उम्र में जब शतरंज खेलना शुरू किया, तब ही उन्होंने इस विश्व खिताब को जीतने का सपना देखा था, जिसे वह एक दशक से कुछ ज्यादा समय में साकार करने में सफल हो गए हैं। गुकेश से पहले सबसे कम उम्र में विश्व चैंपियन बनने का गौरव गैरी कास्पारोव को हासिल था, उन्होंने यह उपलब्धि 22 साल की उम्र में हासिल की थी। वहीं आनंद पहली बार 31 साल की उम्र में चैंपियन बने थे।
सही मायनों में गुकेश के कॅरियर को नई ऊंचाइयां दिलाने वाला पिछला एक साल रहा है। इससे पहले शायद किसी ने भी उनके इतनी जल्दी चैंपियन बनने की कल्पना नहीं की थी। वह एक साल पहले फीडे रैंकिंग में 25 वें नंबर पर थे। यही नहीं वह भारत के भी पहले चार खिलाड़ियों तक में शामिल नहीं थे। उस समय उनसे आगे रैंकिंग में आनंद, प्रगनानंदा, अर्जुन एरिगेसी और विदित गुजराती थे। उनके केंडीडेट टूर्नामेंट में खेलने की पात्रता हासिल करने पर भी उन्हें विश्व चैंपियन बनने का मजबूत दावेदार नहीं माना जा रहा था। पर इस युवा ने सभी को चकित करके केंडीडेट टूर्नामेंट जीता और अब वह विश्व चैंपियन भी बन गए हैं। इन दो सफलताओं के साथ भारत के शतरंज ओलंपियाड का खिताब जीतने वाली भारतीय टीम में भी वह शामिल थे। यह सफलताएं उनके लिए साल का यादगार बनाती हैं। चौदह बाजियों के इस मुकाबले की आखिरी बाजी में सफेद मोहरों से खेल रहे डिंग लिरेन और गुकेश ड्रा की तरफ बढ़ते नजर आ रहे थे, यह लिरेन के लिए बेहतर संकेत था।
इसकी वजह 14 बाजियों में अंक बराबर रहने पर टाईब्रेकर को अपनाया जाता, जिसमें रैपिड बाजियां खेली जातीं और इसमें लिरेन को बेहतर माना जाता है, लेकिन तब ही लिरेन 55वीं चाल में हाथी की गलत चाल चल बैठे और इस गलती को गुकेश ने जीत में बदलकर खिताब पर कब्जा जमा लिया। लिरेन ने बाद में कहा कि मुझे अपनी गलती का अहसास चाल चलने के बाद हुआ। पर साथ ही यह भी कहा कि 13वीं बाजी में भाग्यशाली था, जो हार से बच गया था। मुझे हार का पछतावा नहीं है। मौजूदा समय में शतरंज सिर्फ दिमाग का ही खेल नहीं रहा। इसके लिए खिलाड़ी को फिटनेस के साथ मेंटल स्ट्रेंथ पर भी काम करना पड़ता है। गुकेश ने मानसिक मजबूती के लिए मेंट्रल हेल्थ कोच पैडी अप्टन की सेवाएं ली। पैडी भारतीय खेलों के लिए हमेशा शुभ साबित हुए हैं। इस दक्षिण अफ्रीकी कोच के रहते भारत ने 2011 में महेंद्र सिंह धोनी की अगुआई में आईसीसी विश्व कप जीता था और व 2024 के पेरिस ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के साथ भी वह जुड़े हुए थे। गुकेश के बारे में कहा जाता है कि वह झटका लगने पर जोरदारी से वापसी करना जानते हैं। अपनी यह खूबी उन्होंने इस मुकाबले में दिखाई भी। वह पहली ही बाजी हारने के बाद तीसरी बाजी जीतकर यह दिखाने में कामयाब रहे कि उनमें वापसी करने का माद्दा है। उन्होंने तीसरी बाजी के बाद 11वीं बाजी जीतकर अपनी बेहतर संभावनाएं बनाई।
पर 12वीं बाजी हारने से लगा कि खिताब हाथ से निकलने जा रहा है। पर वह लिरेन की गलती को अपने को चैंपियन बनाने में बदलने में सफल रहे। गुकेश भले ही जन्मजात प्रतिभा के धनी हैं पर उनके कॅरियर को एक साल पहले वेस्टब्रिज आनंद शतरंज अकादमी के साथ जुड़ने पर नया आयाम मिला है। आनंद गुकेश के चैंपियन बनने पर कहा कियह भारत के लिए बहुत गर्व का क्षण है। यह शतरंज के लिए बहुत बड़ा गर्व का क्षण है। मेरे लिए व्यक्तिगत तौर पर भी गर्व का क्षण है। गुकेश ने इस सफलता को पाने के बाद कहा कि मुझे चैंपियन बनाने में विनाथ आनंद की एक सलाह बहुत काम आई। उन्होंने बताया कि पहले ही दिन बाजी हारना बहुत परेशान करने वाला था। मैं जब लिफ्ट से अपने कमरे में जा रहा था, तब आनंद सर भी मेरे साथ थे। उन्होंने कहा कि 2010 की विश्व चैंपियनशिप में टोपालोव के खिलाफ पहली बाजी हारा था, तब मेरे पास 11 ही गेम थे, तुम्हारे पास तो अभी 13 गेम हैं। उनकी इस बात ने मेरे अंदर नया उत्साह भर दिया।
आनंद की विश्व शतरंज पर बादशाहत से भारतीय शतरंज को भरोसा मिला और अब यह गुकेश की सफलता दुनिया पर भारत का दबदबा बना सकती है। हमें याद है कि 1980 के दशक में आनंद जब ग्रैंडमास्टर बने थे, तब यह बहुत बड़ी उपलब्धि हुआ करती थी, लेकिन आनंद के विश्व चैंपियन बनने ने भारतीय शतरंज की बिसात ही बदल दी और आज देश के पास 85 के करीब ग्रैंडमास्टर हैं। भारत की इस प्रगति में तमिनाडु प्रांत का बहुत बड़ा योगदान है। अकेले इस राज्य से 31 ग्रैंडमास्टर निकले हैं। इसमें भी करीब दो दर्जन ग्रैंडमास्टर चेन्नई से ताल्लुक रखते हैं। भारत के पास गुकेश जैसी क्षमता वाले प्रगनानंद, अजरुन एरिगेसी, विदित गुजराती जैसे युवा है। अगर तमिलनाडु की तरह ही इसे देश के अन्य भागों में भी बढ़ावा दिया जाए तो भारत का शतरंज में ऐसा दबदबा बना सकता है, जैसा कभी सोवियत संघ का हुआ करता था।
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