महापर्व छठ : प्रार्थना की अंजुरी का शिल्प

Last Updated 06 Nov 2024 01:13:51 PM IST

छठ के ‘सुरुज’ का उगना मानो आकाश की गहरी नीलिमा पर स्वर्णिम किरणों का अलौकिक हस्ताक्षर है। जल में खड़े व्रतधारी उस तरंग की तरह प्रतीत होते हैं, जो सूर्य की पहली किरण पाकर हर्ष विस्मय में थरथराने लगती है।


सूर्यास्त के समय घाट पर सजी दीयों की पंक्तियां मानो तारों का एक झुरमुट बन कर धरती को आकाश से जोड़ रही हों। व्रतधारियों की अंजुरी जैसे प्रकृति के प्रति समर्पण का प्रतीक बन जाती है। घाट के किनारे खड़ी स्त्रियां अपनी आंखों में भक्ति और करु णा का वह दीप जलाए होती हैं, जो जल में बसी किसी देवी की छवि-सी लगती हैं। ‘कांच ही बांस के बहंगिया’ की मधुर लय हवा में ऐसे घुल जाती है, जैसे शब्द भी कोई स्पर्श हो जो आत्मा को छू जाता है।

अस्ताचलगामी सूर्य के साथ अर्पित अघ्र्य मानो संपूर्ण अस्तित्व का एक नि:स्वार्थ समर्पण हो। घाट की सीढ़ियों पर रखे दीये मानो पृथ्वी पर आकाश के तारे हों जो हर ओर रोशनी बिखेर रहेैहैं। सूर्य की प्रथम किरण जैसे संपूर्ण जीवन को आशा का संदेश देने के लिए धरती का आलिंगन करती है। जल पर तैरते नारियल और फूलों की खुशबू में छठ का हर अघ्र्य मानो एक मौन कविता बन कर लहरों के साथ गूंजता है। छठ भारतीय जनमानस की गहरी आस्थाओं, सांस्कृतिक संवेदनाओं तथा धार्मिंक उल्लास का ऐसा समुच्चय है, जो इसे मात्र अनुष्ठान से ऊपर उठाकर एक कविता का रूप देता है।

यह एक ओर हमारी पुरातन परंपराओं का प्रतीक है तो दूसरी ओर आधुनिक समाज में बसी आध्यात्मिक आवश्यकता का संजीवित प्रमाण भी। छठ में जो तत्त्व निहित हैं, वे मनुष्य को न केवल प्रकृति से, बल्कि आत्मिक उन्नति और लौकिक जीवन के समन्वय से जोड़ते हैं। इस पर्व का अनुष्ठान सूर्योपासना का है, जो अत्यंत ही गूढ़ और विशाल प्रतीकात्मकता से भरा हुआ है। सूर्य, जो समस्त जीवन का केंद्र है, का प्रकाश धरती पर जीवन की हर हलचल का मूल कारण है, वही सूर्य छठ पर्व में पूज्य बन जाता है। यह पर्व मनुष्य और सूर्य के बीच के उस संबंध की ओर संकेत करता है, जिसमें सूर्य देवता मात्र नहीं, बल्कि एक पिता, मित्र और सखा के रूप में देखा जाता है। छठ पर्व में सुबह और शाम को दिए गए अघ्र्य, जीवन के दोनों छोरों यानी प्रारंभ और अंत के प्रतीक हैं। इस पूजा में निहित है एक संपूर्णता का भाव जो जीवन के आरंभ से अंत तक का प्रतिनिधित्व करता है। छठ के समय गांव का प्रत्येक अणु, धूल का प्रत्येक कण विशेष चेतना से भर जाता है। जलाशयों की छविश्व और उनके किनारों पर रची हुई दीयों की कतारें ऐसा दृश्य रचती हैं, जो केवल देखा नहीं, बल्कि अनुभूत किया जाता है। जैसे-जैसे सूर्य की पहली किरण धरती पर गिरती है, मानो वह किसी अदृश्य ज्योति से संपूर्ण परिवेश को एक चेतना से भर देती है। छठ के इस अद्भुत वातावरण में व्रतधारियों के चेहरे पर उभरता आत्मविश्वास और श्रद्धा का भाव ऐसा प्रतीत होता है मानो वे अपने अस्तित्व का पुनर्निर्माण कर रहे हों।

व्रती अपने आत्मसंयम और संकल्प के बल पर सूर्य देवता की आराधना करते हैं। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व में प्रत्येक दिन एक नई यात्रा होती है-पहले दिन का नहाय-खाय, दूसरे दिन का खरना, और उसके बाद के दो दिन अस्त और उदय सूर्य को अघ्र्य देने के अनुष्ठान। यह चार दिन का तप, मन और आत्मा की शुद्धि का माध्यम बन जाता है। इस पूरे अनुष्ठान में आत्म-शुद्धि की प्रक्रिया एक काव्यात्मक प्रवाह में चलती है, जिसमें हृदय से लेकर आत्मा तक की परिष्कृति की साधना होती है। गांव की पगडंडियां, घरों की चौखटें, आंगन और छतें, सब कुछ छठ के पावन अवसर पर एक नई ऊर्जा से भर जाते हैं। लोगों के मन में उल्लास की लहरें उठती हैं, और हर व्यक्ति मानो इस महान पर्व का अंग बन जाता है। नदी के तटों पर व्रतधारियों का समूह, महिलाओं के सिर पर रखी सुपली, जिसमें नारियल, फल और प्रसाद भरा होता है, यह दृश्य मानो एक प्राचीन कविता का सजीव चितण्रहै। छठ का मुख्य आकषर्ण वह संध्या का क्षण होता है, जब सभी व्रती जल में खड़े होकर सूर्य देव को अघ्र्य अर्पित करते हैं। सूर्यास्त का यह दृश्य जीवन के अंत की ओर संकेत करता है, और इसी के साथ हमें जीवन की क्षणभंगुरता का अनुभव कराता है। जब दीयों की लौ मंद पड़ती है, और सूर्य धीरे-धीरे अस्ताचल की ओर बढ़ता है, तब घाट पर खड़े लोग मानो अपनी समस्त चिंता, कष्ट और दुखों को सूर्य के साथ प्रवाहित कर देते हैं।

यह केवल अघ्र्य नहीं, बल्कि आत्मा की गहराई से एक समर्पण का भाव है, जहां मनुष्य अपनी समस्त सीमाओं को छोड़कर प्रकृति की शरण में जाता है। प्रात:काल जब सूर्य की पहली किरण जल पर पड़ती है, तब उस जल में पड़े हुए नारियल, दीये और प्रसाद मानो उस नवीन ऊर्जा को आत्मसात कर लेते हैं। यह क्षण जीवन के नवप्रारंभ का प्रतीक है। इस समय जब लोग एकत्र होकर सूर्य को अघ्र्य अर्पित करते हैं, तो एकता और सामूहिकता की भावना पूरे माहौल में गूंजती है। छठ के गीतों में जो भावना समाहित है, वह भी इस पर्व की आत्मा को प्रकट करती है। छठ के गीत गांव के जीवन का संपूर्ण प्रतिबिंब हैं। इन गीतों में केवल श्रद्धा नहीं, बल्कि करु णा और एक अनकही पीड़ा भी है जो हर व्रतधारी के त्याग और तपस्या में प्रतिध्वनित होती है। इन गीतों के माध्यम से छठ की सजीवता और उसका काव्यात्मक स्वरूप हमारे समक्ष आता है। गीतों में उस कठिनाई और सादगी का जिक्र होता है, जो इस पर्व का आधार है।

छठ लोक जीवन की उन अनुभूतियों का जीवंत दस्तावेज है, जो मनुष्य को जीवन और प्रकृति के मर्म से जोड़ता है। छठ न केवल सूर्य की उपासना का माध्यम है, बल्कि मनुष्य के भीतर छुपी उस सृजनात्मकता को भी जागृत करता है, जो उसे अपने जीवन में नई दिशा प्रदान करती है। छठ पर्व जीवन की एक कविता है, जो हर वर्ष प्रकृति और मनुष्य के बीच के संवाद को पुन: जागृत करती है। यह पर्व हमें सिखाता है कि कैसे जीवन में भक्ति, त्याग, और तप के माध्यम से हम अपने भीतर छुपे उस अनंत प्रकाश को प्राप्त कर सकते हैं।
(लेखक के निजी विचार हैं)

परिचय दास


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