सामयिक : छठ पर इनका यमुना रुदन
जब भी छठ पर्व आता है, वर्ष में एक बार दिल्ली में सड़ी हुई यमुना, जहरीले तत्वों से भरी हुई यमुना को लेकर भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो जाता है।
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समाचार माध्यमों के लिए भी स्वाभाविक ही छापने और दिखाने, नेताओं तथा संबंधित विशेषज्ञों आदि के वक्तव्य लेने का अवसर होता है। हालांकि इससे हमारे बीच यमुना मैया की दुखद सच्चाई सामने आ जाती है। पर हर अगले वर्ष छठ के समय यही स्थिति हम देखते आ रहे हैं।
पिछले दिनों दिल्ली भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सचदेवा ने यमुना में डुबकी लगाई, सारे टीवी चैनलों ने उसे दिखाया, बहस की और यह पता चला कि उन्हें दूसरे दिन अस्पताल में जाना पड़ा। हालांकि वे पूरे कपड़े में स्नान कर रहे थे इसलिए शरीर थोड़ा सुरक्षित रह गया अन्यथा स्वाभाविक डुबकी लगाते तो और क्या दशा होती इसकी कल्पना हम सब आसानी से कर सकते हैं। उस दिन मैंने टीवी चैनल पर एक टिप्पणी की कि स्टंट करने के लिए स्टंट के जैसा व्यक्तित्व होना चाहिए और भाजपा दिल्ली प्रदेश में ऐसे नेता हैं जो डुबकी लगाते तो उसको ज्यादा प्रभावी और नाटकीय अंदाज में प्रस्तुत कर सकते हैं जिससे और अच्छा संदेश जाता। प्रश्न है कि सचदेवा डुबकी लगाकर क्या दिखाना चाहते थे? यमुना से जुड़े एक-एक व्यक्ति को असलियत पता है।
हमने छठ पर्व के समय महिलाओं-पुरु षों को इस झाग और गंदगी से भरे जल में डुबकी लगाते देखा है। पता नहीं उनमें से कितनों को क्या-क्या परेशानियां शरीर में आई होंगी? ऐसे पीड़ित आखिर अपनी शिकायत लेकर किसके पास जाएं? दिल्ली के पुराने लोग आज भी बताते हैं कि हम इस नदी का पानी पीते, इसमें स्नान करते, पानी का भोजन बनाने आदि में उपयोग करते हुए देखते रहे हैं। आज आप उपयोग छोड़िए, यमुना के जल को घर में पूजा-पाठ या अन्य कर्म की दृष्टि से रखने तक का साहस जुटा सकते हैं? क्या कोई आस्थावान व्यक्ति चाहेगा भी कि उसके घर में सामान्य आचमन या पवित्रीकरण की दृष्टि से एकाध बोतल यमुना मैया का जल होना चाहिए?
हालांकि यह मत मान लीजिए की यमुना के जल पर जीवन और आजीविका के लिए निर्भर रहने वाले लोग दिल्ली में बिल्कुल नहीं है। यमुना के किनारे बसे पुराने लोगों के यहां जाइए तो आज भी बताएंगे कि हमारा तो पूरा जीवन इसी से चलता रहा है और इतनी बुरी हालत में भी अपनी जीविका के लिए आज भी इसके अंदर उतरते हैं। इनके कारण उनके शरीर और जीवन में कितनी समस्याएं आती होंगी इस पर भी काफी शोध हुए हैं। इस तरह के सारे तथ्य और आंकड़े अंदर से हिला देने वाले हैं। इसी यमुना में गोताखोरों का एक बड़ा प्रोफेशन होता था नाव चलती थी, इनके कारण दिल्ली झीलों की नगरी थी। आज भी प्रोफेशन पूरी तरह समाप्त नहीं हुए हैं। ऐसा भी नहीं है कि यमुना गंदे नाले में कैसे बदली, कहां-कहां से ऐसी गंदगी और जल इसमें आते हैं और इनको ठीक करने के लिए क्या-क्या कदम उठाए जाने चाहिए, इन सब पर सरकारी, गैर सरकारी अध्ययन व रिपोर्ट हैं, अनुशंसाएं हैं और उन पर काम करने की समयबद्ध योजनाएं भी। लंबे-चौड़े आंकड़े में न जाए तो इतना सबको पता है कि दिल्ली की कारखानों से निकलने वाले जहरीले रसायन और दूषित जल जगह-जगह यमुना में आते हैं।
मल मूत्र तो है ही। तो बात सीधी है कि उनमें से हरसंभव भाग का शुद्धिकरण कर उपयोग में लाया जाए तथा यमुना में आने के पहले उनका पूर्ण शुद्धिकरण हो जाए। यमुना के पूरे कचरे, मल, गंदगी या प्रदूषण में 80 प्रतिशत अंशदान दिल्ली का है। क्या दिल्ली के लोगों के लिए यह शर्म से डूब मरने वाली बात नहीं होनी चाहिए? ऐसा भी नहीं है कि सरकारों ने यमुना की शुद्धता के लिए धन आवंटित करने में कोई कंजूसी की है। दिल्ली प्रदूषण नियंतण्रकमेटी या डीपीसीसी से इस दो प्रतिशत भाग के शुद्धिकरण के लिए 8000 से 9000 करोड़ रुपए खर्च करने का आंकड़ा हमारे पास आ रहा है । इसमें सबसे बड़ा भाग दिल्ली की यमुना में गिरने वाले गंदे पानी के शोध पर खर्च किया जाना था। 2015 से 2023 की पहली छमाही तक केंद्र सरकार ने यमुना की सफाई के लिए दिल्ली जल बोर्ड को लगभग 1200 करोड़ रुपए दिए। इसमें ‘नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा’ के अंतर्गत 1000 करोड़ रु पए और यमुना एक्शन प्लान-3 के तहत 200 करोड़ रुपए थे।
जल शक्ति मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा था कि उसने 11 परियोजनाओं को पूरा करने के लिए दिल्ली सरकार को 2361.08 करोड़ रु पए दिया था। इसका उपयोग यमुना में गिरने वाले गंदे जल को शोधित करने के लिए एसटीपी का निर्माण और संचालन किए जाने पर होना था था। ‘नमामि गंगे योजना’ के अंतर्गत केंद्र सरकार ने 4290 करोड़ रु पए की धनराशि स्वीकृत की थी। इस धनराशि से भी यमुना में गिरने वाले गंदे जल को ट्रीट कर शुद्ध करने के लिए 23 परियोजनाओं पर काम किया जाना था। इसकी कुल क्षमता 1840 एमएलडी थी। इनमें 12 परियोजनाएं राजधानी दिल्ली में ही थीं। इसके अलावा हिमाचल प्रदेश में एक, हरियाणा में दो और उत्तर प्रदेश के अलग-अलग स्थानों पर आठ एसटीपी बनाए जाने थे। इनके निर्माण आरंभ हुए, कुछ पूरे हुए और कुछ का होना शेष है। अगर दिल्ली सरकार के अंदर प्रतिबद्धता होती तो युद्ध स्तर पर इसका निर्माण और संचालन निर्धारित समय से पूर्व किया जा सकता था।
अरविंद केजरीवाल ने न जाने कितनी बार दिल्ली के लोगों को साफ यमुना देने के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त की, कसमें खाई, छठ व्रत्तियों से वायदा किया कि अगले वर्ष आप शुद्ध यमुना में डुबकी लगाएंगे किंतु परिणाम हमारे सामने है। दिल दहलाने का विषय यह कि आम आदमी पार्टी के नेता व मंत्री दिल्ली के लोगों से क्षमा याचना करने तक को तैयार नहीं है। यमुना के साफ न हो पाने के तीन कारण बहुत स्पष्ट हैं। केंद्र-राज्य सरकारों के द्वारा दिल्ली में पैदा हो रहे गंदे जल का पूर्ण शोधन न किया जाना और इसको यमुना में गिराया जाना यमुना की गंदगी का सबसे बड़ा कारण है। यदि एसटीपी बनाकर दिल्ली राजधानी क्षेत्र में पैदा हो रहे गंदे जल का शोधन कर इसे यमुना में गिराया जाए तो इसे गंदा होने से बचाया जा सकता है। कई अन्य फैक्ट्रियों में रसायनों का निर्माण होता है, लेकिन खतरनाक रसायनों को बिना शोधन किए सीधे यमुना में गिरा देना, इसे रोकने के लिए कोई उपयुक्त मैकेनिज्म का न होना इसकी गंदगी का सबसे बड़ा कारण है।
(लेख में विचार निजी हैं)
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