वाल्मिीकि जयंती : डाकू से कैसे ‘महर्षि’ बन गए वाल्मीकि

Last Updated 17 Oct 2024 12:15:29 PM IST

अश्विन मास की पूर्णिमा के दिन ‘रामायण’ के रचयिता महर्षि वाल्मीकि के अनुपम संदेशों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए प्रति वर्ष महर्षि वाल्मीकि जयंती (Maharishi Valmiki Jayanti) मनाई जाती है, और इस वर्ष वाल्मीकि जयंती 17 अक्टूबर को मनाई जा रही है।


महर्षि वाल्मीकि जयंती

मान्यता है कि महर्षि वाल्मीकि के सम्मान में उनकी जयंती रामायण काल से ही मनाई जा रही है। इस अवसर पर देश भर में कई प्रकार के सामाजिक तथा धार्मिंक आयोजन किए जाते हैं।
 सनातन धर्म के प्रमुख ऋषियों में से एक महर्षि वाल्मीकि द्वारा संस्कृत भाषा में लिखी गई रामायण को सबसे प्राचीन माना जाता है, और संस्कृत के प्रथम महाकाव्य ‘रामायण’ की रचना करने के कारण ही उन्हें ‘आदिकवि’ के नाम से जाना जाता है। वाल्मीकि द्वारा लिखी गई मोक्षदायिनी रामायण आज भी समूचे विश्व में वेदतुल्य विख्यात है, जो 21 भाषाओं में उपलब्ध है, और सनातन धर्म मानने वालों के लिए पूजनीय है।

रामायण ने देश को सांस्कृतिक एकता के सूत्र में बांधने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया। राष्ट्र की अमूल्य निधि रामायण का एक-एक अक्षर अमरता का सूचक और महापाप का नाशक माना गया है। वाल्मीकि का रामायण महाकाव्य ज्ञान-विज्ञान, भाषा ज्ञान, ललित कला, ज्योतिष शास्त्र, आयुर्वेद, इतिहास और राजनीति का केंद्रबिन्दु माना जाता है। यह महाकाव्य श्रीराम के जीवन के माध्यम से जीवन के सत्य और कर्त्तव्य से परिचित कराता है। रामायण में जिस प्रकार महर्षि वाल्मीकि ने कई स्थानों पर सूर्य, चंद्रमा तथा नक्षत्रों की सटीक गणना की है, उससे स्पष्ट है कि वे ऐसे परम ज्ञानी थे, जिन्हें ज्योतिष विद्या तथा खगोल शास्त्र का भी गहन ज्ञान था। रामायण को वैदिक जगत का सर्वप्रथम काव्य माना जाता है, जिसमें कुल चौबीस हजार श्लोक हैं। माना जाता है कि महर्षि वाल्मीकि ने ही दुनिया में पहले श्लोक की रचना की थी, जो संस्कृत भाषा का जन्मदाता है।

पौराणिक कथाओं में वर्णित है कि महर्षि वाल्मीकि बनने से पहले उनका नाम रत्नाकर था, जो परिवार का पेट पालने के लिए लोगों को लूटा करते थे। निर्जन वन में एक बार उनकी भेंट नारद मुनि से हुई तो नारद को बंदी बनाकर रत्नाकर ने उन्हें भी लूटने का प्रयास किया। तब नारद जी ने पूछा कि तुम ऐसा निंदनीय कार्य आखिर, करते क्यों हो? रत्नाकर ने उत्तर दिया, अपने परिवार का पेट भरने के लिए। तब नारद मुनि ने उनसे पूछा कि जिस परिवार के लिए तुम इतने पाप कर्म करते हो, क्या वे तुम्हारे पाप कार्य में भागीदार बनने के लिए तैयार होंगे? उत्तर जानने के लिए रत्नाकर नारद मुनि को पेड़ से बांधकर घर पहुंचे और एक-एक कर परिवार के सभी सदस्यों से पूछा, ‘मैं डाकू बन कर लोगों को लूटने का जो पाप करता हूं, क्या तुम उस पाप में मेरे साथ हो?’ सभी सदस्यों ने कहा, ‘आप इस परिवार के पालक हैं, इसलिए परिवार का पेट भरना तो आपका कर्त्तव्य है, इस पाप में हमारा कोई हिस्सा नहीं है।’ सभी का एक ही उत्तर सुन कर रत्नाकर बहुत उदास हुए और नारद मुनि के पास पहुंच कर उनके पैरों में गिर पड़े। तब नारद मुनि ने रत्नाकर को सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने का ज्ञान दिया। रत्नाकर ने उनसे अपने पापों का प्रायश्चित करने का उपाय पूछा तो नारद मुनि ने उन्हें ‘राम’ नाम जपने की सलाह दी लेकिन रत्नाकर ने कहा, ‘मुनिवर! मैंने जीवन में इतने पाप किए हैं कि मेरे मुख से राम नाम का जाप नहीं हो पा रहा है।’ नारद मुनि ने उन्हें ‘मरा-मरा’ का जाप करने को कहा और इस प्रकार ‘मरा-मरा’ का जाप करते-करते रत्नाकर के मुख से ‘राम’ नाम का जाप होने लगा। राम नाम में वह इस कदर लीन हो गए कि एक तपस्वी के रूप में ध्यानमग्न होकर वर्षो  घोर तपस्या करने के कारण उनके शरीर पर चीटियों की बांबी लग गई। ऐसी कठोर तपस्या के बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे रत्नाकर से महर्षि वाल्मीकि बन गए।

पौराणिक आख्यानों में यह उल्लेख भी मिलता है कि जब भगवान श्रीराम ने माता सीता का त्याग कर दिया था, तब माता सीता ने महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में ही वनदेवी के नाम से निवास किया था और वहीं लव-कुश को जन्म दिया था, जिन्हें महर्षि वाल्मिकी द्वारा ज्ञान दिया गया। पहली बार संपूर्ण रामकथा लव-कुश ने ही भगवान श्रीराम को सुनाई थी। यही कारण है कि वाल्मिकीकृत रामायण में लव-कुश के जन्म के बाद का वृत्तांत भी मिलता है।

बहरहाल, महर्षि वाल्मीकि के जीवन से सीख मिलती है कि जीवन की नई शुरुआत करने के लिए खास समय या अवसर की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि आवश्यकता होती है केवल सत्य और धर्म को अपनाने की। उनका जीवन बुरे कर्मो को त्याग कर अच्छे कर्मो और भक्ति की राह पर अग्रसर होने की राह दिखलाता है। महर्षि वाल्मीकि का जीवन समस्त मानव जाति को यही शिक्षा देता है कि मनुष्य के जीवन में कितनी भी कठिनाइयां क्यों न हों, यदि वह चाहे तो अपनी हिम्मत, हौसले और मानसिक शक्ति के बल पर तमाम बाधाओं को पार कर सकता है।

योगेश कुमार गोयल


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