Organ Donation Day: समाज में जागरूकता बढ़ानी होगी

Last Updated 13 Aug 2024 12:59:14 PM IST

तमाम लोग अपने लिए जी लेते हैं, कुछ लोग हैं दुनिया में जो जीते जी और मरने के बाद भी दूसरों के लिए जीवनदान देने का कार्य करते हैं। मतलब अंगदान (Organ Donation Day) से यह संभव है।


Organ Donation Day: समाज में जागरूकता बढ़ानी होगी

भारत में परोपकार की बहुत पुरानी परम्परा रही है। महाराज शिवि, दधीचि और तमाम देवता कहे जाने वाले व्यक्तियों ने दूसरों को जीवन देने के लिए अपनी जिंदगी का दान कर दिया। हालांकि अंगदान के लिए प्रोत्साहित करना एक बड़ी चुनौती है। इस चुनौती के मद्देनजर विश्व स्तर पर अंगदान को बढ़ावा देने के लिए 13 अगस्त को विश्व अंगदान दिवस मनाया जाता है।

मौत जिंदगी का अंतिम सच है। यदि मौत को खूबसूरत बनाया जा सके तो जिंदगी के लिए इससे बड़ा उपहार किसी भी व्यक्ति के लिए नहीं हो सकता। और वह सबसे बड़ा उपहार है मरने के बाद या जीते जी जरूरत पड़ने पर अपने अंगों को दान देने का संकल्प लेना। किसी को जीवन देने का संकल्प इंसानियत का वह खूबसूरत विचार है जिसकी तस्वीर बेहद सुंदर है, जो धरती को स्वर्ग बनाने और दुखों से छुटकारा दिलाने का कार्य करता है। एक पौराणिक संदर्भ है कि ऋषि दधीचि और महाराज शिवि ने किसी की जान बचाने और समाज की भलाई के लिए अपना शरीर दान दे दिया था। इसी तरह के तमाम और भी संदर्भ या मिथक हिन्दू पुराणों में वर्णित हैं जहां जीवित रहते शरीर दान देना सबसे बड़ा दान बताया गया है।

पौराणिक मिथकों या पौराणिक संदर्भ दोनों को समझने की जरूरत है। खासकर हिन्दू, जैन, बौद्ध आदि की मान्यताओं को मानने वाले लोगों को। क्योंकि इसमें वर्णन किए गए संदर्भ आध्यात्मिक और रहस्यमय हैं। आम आदमी साधारण ढंग से इनका मतलब नहीं समझ पाता है। इसलिए अंगदान देने के संदर्भों का सही मतलब व रहस्य जानकर ही मानना चाहिए। इससे जहां समाज को कुछ बेहतर देने और बेहतर समझने में मदद मिलती है वहीं पर तमाम तरह के मिथकों के रहस्य भी समझ में आ जाते हैं। अंगदान के मामले में प्रचलित ऐसे मिथक, अंधविास और अंध आस्थाएं दुनिया के तमाम हिस्सों में भी प्रचलित हैं जिनका नकारात्मक असर समाज में लगातार बना रहता है।

अंगदान किसी इंसान को नया जीवन देना जैसा ही है। नेत्रहीनों को नेत्र देने वाले लोग उन व्यक्तियों के जीवन में उजियारा फैलाने का कार्य करते हैं जो नेत्रहीन हैं। सरकारी आंकड़े बयान करते हैं कि हर साल 5 लाख लोगों की मौत अंगों की अनुपलब्धता की वजह से हो जाती है, जिसमें ऐसे 2 लाख व्यक्तियों की मृत्यु हृदय की बीमारी के कारण, पचास हजार व्यक्तियों की मौत लीवर न मिलने के कारण, हर साल एक लाख व्यक्तियों की मौत गुर्दा न मिलने की वजह से हो जाती है। महज साल में 5 हजार लोगों को ही अंगदान में मिले गुर्दे के प्रत्यारोपण होने से नया जीवन मिल पाता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक स्वभाविक मौत के हालात में कार्निया, हृदय, वाल्ब, त्वचा और हड्डी जैसे ऊतकों का दान किया जा सकता है।

भारत में कर्निया दान की स्थिति काफी बेहतर है, लेकिन मस्तिष्क मौत के बाद किए जाने वाले देहदान की गति बहुत धीमी है। विश्व स्तर पर हर साल लाखों की तादाद में नये गुर्दे, दिल, फेफड़े, अग्नाशय, छोटी आंत, आंख, ऊतक, यकृत जैसे महत्त्वपूर्ण अंगों का दान अपने रिश्तेदारों और अस्पतालों में किसी नि:स्वार्थ भाव से अंगदान करने वाले लोग करते हैं, लेकिन अंगों की कमी बहुत बड़े पैमाने पर हमे बनी रहती है। भारत में यह कमी अत्यंत चिंताजनक है। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक हर साल मांग को पूरा करने में 1,75000 किडनी, 50,000 लीवर, दिल और फेफड़े, 2,500 अग्नाशय की जरूरत बनी रहती है। इससे समझा जा सकता है कि अंगदान के लिए समाज में जागरूकता कितनी कम है। भारत में तो शिक्षित और अशिक्षित दोनों वगरे में अंगदान करने की आदत या स्थिर विचार बेहद कम हैं। केंद्र और राज्य सरकारें जो जागरूकता अभियान इस बाबत चलाती रहीं हैं वे लोगों को प्रभावित करने में बहुत कम असरदायक रहे हैं।

यदि हम अंगदान को इंसान का सबसे पवित्र कर्तव्य मानें तो इसके प्रति हममें पल रहीं तमाम तरह की गलत या उल्टी सोच को बदलने में सहूलियत होगी। क्योंकि अंगदान धर्म, जाति, क्षेत्र, देश, उम्र और वर्ण से हट कर किया जाता है। कोई भी व्यक्ति अपना कोई भी अंग दुनिया के किसी भी जगह दान कर सकता है। अंगदान तो जीवनदान का ही हिस्सा है। फिर यह धर्म के विरुद्ध कैसे हो गया? क्या ईर अपने किसी संतान को बेहतर स्थिति में नहीं देखना चाहता?   सेवा को मानवता का सबसे बड़ा धर्म कहा गया है, उसे यदि हम किसी को जीवन देने के लिए समर्पित कर दें तो, मानवता के लिए इससे बड़ी सेवा क्या हो सकती है?

हमारी जिंदगी भी यदि इसी तरह खूबसूरत बगैर किसी को एहसान जताए काम आ जाए तो, इससे अच्छा जिंदगी का मकसद क्या कोई हो सकता है? इस पर विचार करेंगे तो इस बार अंगदान दिवस पर आप भी अंगदान करने का संकल्प लेंगे ही नहीं, बल्कि दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करेंगे।

अखिलेश आर्येन्दु


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